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Friday, July 17, 2020

लाॅकडाउन में कलाकारों का दर्द

                                                लाॅकडाउन में कलाकारों का दर्द

इन दिनों हमारे देश में ही नहीं, पूरे विश्व में लाॅकडाउन का पहरा है। हर घर के दरवाजे खुले हैं। पर लोगों की आवा-जाही बंद है। बंद दरवाजे के पीछे और खिड़की-बालकनी से झांकते लोग, इंतजार में हैं। कब हम सामान्य जिंदगी की ओर लौटेंगें? एक सवाल सबके समाने है। जबकि, कलाकारों की बिरादरी अपनी कला और कला की साधना कर रही है। फिर भी, उनके सामने कई सवाल शेष हैं-जिंदगी के पटरी पर लौटने का, रोजी-रोटी कमाने का, कार्यक्रम के आयोजन का और भी बहुत से सवाल! आज रूबरू में उसी दर्द को कुछ कलाकार बयान कर रहे हैं-शशिप्रभा तिवारी

                                                 उस्ताद अमजद अली खा, सरोद वादक
मेरी तो ईश्वर से प्रार्थना है कि लाॅकडाउन जल्दी खत्म हो। इससे हर फील्ड में मंदी आई है। मेरी दुआ है कि कोरोना पूरे विश्व से फना हो जाए। दुनिया की रौनक फिर से वापस आए। हम दर्शकों के सामने बैठकर, सरोद बजाएं। 
मेरी सरकार से विनती है कि वह कलाकारों को बड़े-बड़े जो सम्मान देती है। उसके बाद, उनकी खबर नहीं लेती है। वह बीमार है या भूखा है या बदहाल। पद्म सम्मान या अन्य सम्मानों के साथ कुछ धनराशि भी दिया जाना चाहिए। यह आज के कलाकारों की जरूरत है। क्योंकि हमें कोई पेंशन तो मिलता नहीं। हम कलाकारों को सांस्कृतिक दूत कहा जाता है, पर हम कोई स्टेटस नहीं है। हमारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।




विदुषी मालिनी अवस्थी, लोक गायिका
जब लाॅकडाउन शुरू हुआ, मैं कलाकारों की स्थिति को देख-सुन कर चिंतित थी। पर मुझे जिंदगी में चुनौतियां स्वीकार करना अच्छा लगता है। मैंने कोरोना पर एक गीत गाया। इसके बाद लगभग 51एपीसोड लाइव संवाद कार्यक्रम फेसबुक पर किया। फिर हमने अन-आॅरगेनाइज सेक्टर के कलाकारों को आर्थिक मदद करने की सोची। हमने सोचा कि कलाकारों के प्रोग्राम का एक सीजन तो निकल चुका है। इसलिए दूसरे से मदद की उम्मीद के बजाय हमें खुद कुछ करना चाहिए। इसकी चर्चा मैंने फेसबुक के माध्यम से किया। इसमें आरजे रौनक और साहित्यकार व लेखक नील ने मेरी मदद की। हमने लगभग तीस लाख रूपए एकत्र किए। इस रकम से अब तक हम 400 कलाकारों को आर्थिक सहायता दे चुके है। इस समय कलाकारों का मनोबल बना रहे, यह सबसे बड़ी चुनौती है।


अलरमेल वल्ली, भरतनाट्यम नृत्यांगना
हाल की परिस्थितियों में कोरोना आपदा ने हर किसी की जिंदगी को बदल दिया है। हमें अब बेहतर जिंदगी के लिए खुद को बदलना होगा। हमें सोचना होगा कि हमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और चेतना के साथ सोचना होगा। हमें सचेत होना होगा कि हमारे समाज के वंचित और गरीब वर्ग पर दोहरी मार पड़ी है। हमारा देश ही नहीं पूरा विश्व इस त्रासदी के दौर से गुजर रहा है। एक भय और खौफ के माहौल में हम जी रहे हैं। अब हमें बहुत जिम्मेदार नागरिक की तरह अपने जीवन को जीना पड़ेगा। हमें चीजों या सेवाओं के उपभोग के प्रति भी पूरी जिम्मेदारी निभानी होगी।
हमें मानवीय मूल्य सभी के लिए अपनाना समय की मांग है। हमें नई शुरूआत करनी हैं। हम जिस दिशा में बढ़ रहे थे, उसे हमें बदलना होगा। हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों, जीवन मूल्यांे और नैतिक मूल्यों को अपनाना होगा। हमें अपने जड़ों से जुड़ना होगा। इसी में हमारा और देश का कल्याण है। हमें जिम्मेदार नागरिक के तौर पर बार-बार सोचना चाहिए कि हम किधर जा रहे हैं? हमारा समाज या देश कहां और किस ओर जा रहा है? अपनी जरूरतों का पुर्नमूल्यांकन, उनको विंदु केंद्रित और प्राथमिकताओं का मूल्यांकन करना हमारी आदत में शामिल होना जरूरी है।  



पंडित मधुप मुद्गल, शास्त्रीय गायक
दरअसल, आशा और विश्वास से ही दुनिया चलती है। पर कलाकारों की दुनिया कला से ही है। स्थापित कलाकारों का गुजारा तो हो जाएगा। जागरण-जगराते, आॅरकेस्ट्रा या रिकार्डिंंग के लिए काम करने वाले कलाकारों की हालत तो शायद लाॅकडाउन खत्म होने के बाद भी न सुधरे। उनको रोजी-रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल होगा। कुछ कलाकारों ने आत्महत्या कर रहे हैं। कहीं मां-बाप को बच्चे घर से निकाल रहे हैं, तो कहीं बीमार बच्चों को मां-बाप। संबंधों और रिश्तों को निभाने का समय है, न कि इन्हें तोड़ने का। मैं अपने शिष्य-शिष्याओं को इन सच्चाइयों से अवगत करवाता हूं। यह समय प्रकृति ने फुर्सत से दिए हैं। इसका सदुपयोग करिए। जमकर रियाज करिए, पुराने रिकार्डिंग सुनिए। अपना, अपने परिवार और समाज का ध्यान रखिए। हमें डरना नहीं है। हमें संभलना है। विश्वास और धैर्य से ही जीवन का पहिया घूमता है। एक स्वामीजी का कहना है कि कोई एक क्षण में है, वह अगले क्षण में नहीं है। यह जीवन क्षणभंगुर है। दुनिया अमर है, दुनिया वाले अमर नहीं है। यह लाॅकडाउन के बाद का कड़ुवा सच होगा। जब हम बहुत से अपनों और गैरों को खो चुके होंगें।   





                                                        विदुषी उमा शर्मा, कथक नृत्यांगना
हम कलाकार कितने भी अंधेरे में जीएं, हमें हर समय कला की रोशनी राह दिखाती है। इस लाॅकडाउन के लगभग डेढ़ महीने बीत गए हैं। शुरू-शुरू में कुछ परेशानी हुई। लेकिन, धीरे-धीरे मैं अपने कथक नृत्य के बारे में फिर से सोचने लगी। कथक नृत्य की उत्पŸिा मंदिर से हुई है। कथक के कलाकार कथावाचन शैली में कथा को बांचते थे और गाते हुए, अभिनय पेश करते थे। कलाकार जब पात्र की भावना को खुद समझकर और महसूस करके अभिनय करता है तो भावनाएं उसके अंदर से निकलती हैं। धीरे-धीरे काफी कुछ बदलता गया। हमारे करियर में एक वो समय आया जब मंच पर कवि या शायर अपनी रचनाओं को पढ़ते थे और मैं उस पर अभिनय पेश करती थी। 
भविष्य तो कोई जानता नहीं क्या होगा? कल अनिश्चितता और अंधकार से भरा है। ऐसे में मुझे गालिब की कुछ पंक्तियां याद आती हैं-‘कोई उम्मीद, कोई सूरत, नजर नहीं आती‘। पर दिल को समझाती हूं कि मेरे अराध्य, मेरे ईश्वर जरूर कोई रास्ता निकालेंगें। हालांकि, आगे सब शून्य है। लेकिन, मेरे दिल से आवाज आती है कि इन पंावों फिर से घुंघरू बांधूंगीं, होठ फिर से नगमों को गाएंगें, फिर से महफिलें सजेंगीं और कलाकारों-दर्शकों का हुजूम होगा। सामने एक प्रश्न चिन्ह जरूर है, पर विराम चिन्ह नहीं। लाॅकडाउन की अंधेरी रात में उम्मीद का एक चिराग जलाए बैठी हूं, कभी तो सवेरा होगा। 

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