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Tuesday, June 18, 2019

भरी दोपहर में

भरी दोपहर में
वह आता था बगीचे में
उसके साथ दोस्तों की टोली होती
कभी आम, कभी लीची
कभी फालसे और कभी जामुन
उनके निशाने पर होता
आज कोई हलचल नहीं है

बगीचे सूने हैं
हर जगह मातम-सा पसरा है
गलियां सूनी है
मोहल्ला वीराना है
उसके दोस्त दरवाजे पर आते हैं
बंद दरवजों को देख लौट जाते हैं
कुछ उदास-से
कुछ सहमे-से
पता नहीं अगले पल क्या खबर आए?

पड़ोस का टुन्नी
आज न पतंग उड़ाया
न क्रिकेट ही खेला
न बर्फ-पानी
सब सहमे से हैं
केवल, बंद होठों से
विनती करते हैं
भगवन! हमारे दोस्त राजा को
बक्श देना, चमकी की नज़र से बचा लेना 

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