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Saturday, July 8, 2017

पंडित बिरजू महाराज



पंडित बिरजू महाराज


जन्म        4फरवरी, 1938
जन्म स्थान  वाराणसी
मूल नाम    बृजमोहन मिश्र
पिता का नाम-जगन्नाथ मिश्र, जो अच्छन महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे।
पिता का व्यवसाय-रायगढ़ दरबार के राजनर्Ÿाक
माता का नाम-महादेवी
लखनऊ घराने की कथक के कालका-बिंदादीन घराने के प्रतिनिधि पंडित बिरजू महाराज का सफर लखनऊ से शुरू हुआ। वह अपने माता-पिता के सबसे छोटी संतान थे। उनसे बड़ीं उनकी तीन बहनें थीं। जब बालक बिरजू सिर्फ आठ साल के थे उनके सिर से पिता का साया उठ गया। हालांकि, बहुत छुटपने से ही वह अपने पिता के साथ कार्यक्रमों शिरकत करने लगे थे। फिर भी, तालीम से अपने को समृद्ध करने के लिए उन्होंने अपने दोनों चाचाजी पंडित लच्छू महाराज और पंडित शंभू महाराज का सानिध्य प्राप्त किया। संघर्ष के उस दौर में उनके पिता के शिष्य ‘नटराज‘ शंकर देव झा ने उनका खूब मार्गदर्शन किया। पंडित बिरजू महाराज की शिष्या कपिला वात्स्यायन ने भी उन्हें आगे बढ़ने में सहयोग दिया। इन सबके इतर किशोर बिरजू को अपनी प्यारी अम्मा की स्नेहमयी छाया में संगीत की बारीकियां सीखने को मिला। उन्होंने अपनी अम्मा से ‘जाने दे मैका‘, ‘सुनो सजनवा‘, ‘मेरी सुनो नाथ‘, ‘छोड़ो-छोड़ो बिहारी‘, ‘जागे हो कहीं रैन‘, ‘झूलत राधे नवल किशोर‘, ‘कैसे खेलूं मैं पिया घर ब्याही‘ जैसी अपने पूर्वजों की बंदिशों को सीखा और इन्हें नृत्य में पिरोया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी पंडित बिरजू महाराज एक महान कथक नर्Ÿाक और कोरियोग्राफर हैं। बल्कि, वह उतने ही महान गायक, काव्य रचनाकार, तबला वादक और नाल वादक भी हैं।
उन्होंने सन्1998 में अपने नृत्य विद्यालय ‘कलाश्रम‘ की स्थापना किया। उस समय उन्होंने कहा था कि मैं चाहता हूं कि कथक नर्Ÿाकों की दीपावली सारे देश में जगमगा उठे, हर जगह कथक के दीप झिलमिलाते रहंे। पंडित बिरजू महाराज के नृत्य की यह जगमगाहट उनके चाचाजी लच्छू महाराज जी की तरह सिनेमा जगत तक पहुंच चुकी है। पंडित लच्छू महाराज ने ‘नरसी मेहता‘, ‘भरत मिलाप‘, ‘राम राज‘, ‘एक ही रास्ता‘, ‘महल‘ फिल्मों में नृत्य निर्देशन किया। उन्हें फिल्म ‘मुगल-ए-आजम‘ में ‘मोहे पनघट पे नंद लाल छेड़ गयो रे‘ गीत पर अभिनेत्री मधुबाला द्वारा भाव प्रदर्शन को उस समय के श्रेष्ठ नृत्य में गिना गया। उसी विरासत को पंडित बिरजू महाराज ने आगे बढ़ाया है। उन्होंने सन्1977 में सत्यजीत रे की शतरंज के खिलाड़ी में पहली बार कोरियोग्राफी किया। उस फिल्म में बिंदादीन महाराज की ठुमरी ‘कान्हा मैं तोसे हारी‘ पर कथक नृत्य की रचना की थी। उन्होंने ‘दिल तो पागल है‘, ‘गदर-एक प्रेम कहानी‘ के गीत ‘आन मिलो सजना‘, देवदास के ‘काहे छेड़े मोहे‘, विश्वरूपम और डेढ़ इश्किया में कथक के रंग को पेश किया। कमल हासन के फिल्म विश्वरूपम में कोरियोग्राफी के लिए पंडित बिरजू महाराज को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया।
पंडित बिरजू महाराज को 28वर्ष की उम्र में संगीत नाटक अकादमी सम्मान मिला। उन्हें पद्मविभूषण, कालीदास सम्मान, लतामंगेशकर पुरस्कार, नृत्य चूड़ामणि, आंध्ररत्न, नृत्य विलास, राजीव गांधी शांति पुरस्कार आदि से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और खैरागढ़ विश्वविद्यालय की ओर से मानद डाॅक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई है।

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