Popular Posts

Friday, June 23, 2017


                                           मौन की ताकत 


इन दिनों हमारे पास तरह-तरह के गैज़ेट और मोबाइल ऍप आ गए हैं. घर, दफ्तर या सफर सभी जगह आपके हाथ में मोबाइल फोन या लैपटॉप या आईपैड होता है. ऐसे में सहज संवाद या बातचीत का दौर ही ख़त्म हो गया है।  कहीं-कहीं तो हालत यह होती है की आप किसी चीज या सामान या व्यक्ति का नाम लेना चाहते हैं, पर या तो आपको याद नहीं आते या जुबान फिसल जाती है. दरअसल , शब्दहीनता मौन नहीं है।  महात्मा गाँधी अपनी किताब 'हम सब एक पिता के बालक' में लिखते हैं कि सच्चा मौन वो होता है, जो बोलने की क्षमता होने पर भी व्यर्थ का एक शब्द नहीं बोलता। 

गांधीजी मानते हैं कि विचार ही वाणी और सारी  क्रियाओं का मूल होता है, इसलिए वाणी और क्रिया भी विचार का ही अनुसरण करती  हैं. पूर्णतः नियंत्रित विचार खुद ही सर्वोच्च प्रकार की शक्ति है और ऐसे विचार स्वयं ही अपना सोचा हुआ काम करने लगते हैं।  मनुष्य जाने-अनजाने ही अतिश्योक्ति करता है, या जो बात कहने योग्य है उसे छिपाता  है, या उसे दूसरे ढंग से कहता  है। ऐसे परेशानी से बचने के लिए मितभाषी होना जरुरी है।  कम बोलने वाला आदमी बिना विचारे नहीं बोलेगा , वह अपने हर शब्द को तौलेगा। जब आप मौन का नियमित अभ्यास करते हैं तो यह आपकी शारीरिक और आध्यात्मिक  जरुरत बन जाती है।  शुरू-शुरू में काम के दबाव से राहत पाने में भी मौन से मदद मिलती है।  धीरे-धीरे प्रतीत होता है कि मौन के समय ईश्वर से अच्छी तरह लौ लग जाती है।  और, मैं शक्ति और क्षमता से खुद को पूर्ण महसूस करता हूँ। 

वास्तव में, 'मौन' से वाणी और मन दोनों को शांति मिलती है।  एक मौन जिसमें  आप जुबान को ख़ामोशी देते हैं जबकि, दूसरे में मन की गति को भी रोक देते हैं।  जिह्वा से काम बोलने के लिए साधना करनी पड़ती है और मन के लिए तप. जीवन को सरल और सहज बनाने के वास्ते यह जरुरी है। 

आज बस इतना ही........  


No comments:

Post a Comment