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Friday, November 29, 2013

 तुम उस जगह पर बैठे
अहसासों के
 बुलबुलों को महसूस कर लेते
जहाँ कभी
 हम साथ बैठ
कभी चहलकदमी करते हुए
 न जाने!
 कितने बार
एक-दूसरे के करीब आये थे
तुमने जब पहली बार
मेरी हथेलियों को चूमा था
 या कि मेरी आँखों के
 गहरे झील में
तुम यूँ ही समां गए थे
या मेरे चेहरे पर
पानी की कुछ बूंद रुक गए थे
 तुम्हारी नज़रों की तरह
बहुत कुछ रुक जाता है
 वहाँ जहाँ तुम होते हो
 तुम्हारी बातें होती हैं .....

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