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Friday, November 22, 2013

ek main


एक मैं




एक हरे पेड़
बहती नदी
थिर झील
उमड़ते समंदर
इनकी विराटता
प्रवाह
धैर्य
असीमता
मन महसूस कर
सोचता है
हम क्यों नहीं जीते
दूसरों के  लिए
दूसरों को अर्पित हो
जीवन का आनंद
प्रतिपल
बहते
रुकते
सम्भलते
तुम भी
इस पल में
अपनी नरम हथेली में
मेरे अँगुलियों को
अपने होने का
अहसास दे जाओ
ताकि अब
फर्क न रह जाए
अपने
और गैर में



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