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Thursday, August 8, 2013

देखो आज कैसी
हवाएँ ठंडी बह रही हैं

मन के कदम्ब की डाली
हिलती है

न जाने क्यों ?
कान्हा, अब तुम कदम्ब तले नहीं आते

मैं तो बावली बन
यमुना के तट और मधुबन में फिरती हूँ

आओ जरा चुपके से
जी-भर के निहार लूँ , तुम भी चुप रहना

मैं खामोश रहूंगी
तुम बांसुरी की टेर देना मन भर जाएगा

क्योंकि तब मयूर नाचने लगेंगे
और मधुबन सुरों से सुवासित हो जाएगा

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