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Thursday, June 4, 2020




कला ने जीवन दिया-शरण्या चंद्रन

वरिष्ठ भरतनाट्यम नृत्यांगना गीता चंद्रना वर्षों से राजधानी दिल्ली में नृत्य सिखा रही हैं। उन्होंने नाट्य वृ़क्ष के बैनर तले शिष्याओं को मंच भी प्रदान किया है। उनकी पुत्री व शिष्या शरण्या चंद्रन उनसे नृत्य सीख भी रही हैं और अपनी गुरू के साथ नृत्य भी प्रस्तुत करती हैं। भरतनाट्यम शरण्या चंद्रन बचपन से ही कला के माहौल में पली-बढ़ी हैं। उन्हें गुरू को तलाशना नहीं पड़ा। उन्हें यह सुयोग मिला। आज के रूबरू में शरण्या चंद्रन से बातचीत के अंश पेश हैं-शशिप्रभा तिवारी
आपका जन्म एक नृत्यांगना के घर में हुआ। ऐसे में आपको घर का माहौल कैसा मिला?
शरण्या चंद्रन-मैं जब चार साल की थी। मम्मी घर पर ही नाटय वृक्ष की क्लास लेती थीं। मैं भी उनके साथ क्लास में पूरे समय रहती। जब वह लड़कियों को सिखाती, तब मैं भी उनको देखकर, उनकी काॅपी करती। धीरे-धीरे कुछ-कुछ समझ आने लगा। मैं क्लास से पहले घंुघरू बंाधकर, तैयार रहने लगी। मुझे लगता है कि मेरे लिए मम्मी ने कभी अलग से क्लास रखी हो, ऐसा नहीं लगता। सभी स्टूडेंट्स के साथ ही उन्होंने मुझे डांस सिखाया। अब तो लगता है कि नृत्य तो जीवन का हिस्सा बन चुका है।
गुरू का सहयोग कैसे मिलता है?
शरण्या चंद्रन-मुझे अपने गुरू का सहयोग हमेशा मिला। उनका डांस सिखाने का अंदाज अनूठा है। वह यह नहीं चाहतीं कि उन्होंने जो सिखाया, उसकी हम सिर्फ काॅपी करें। बल्कि, उनका मानना है कि हम उनकी सिखाए सबक को अलग-अलग तरीके से सोचें और विचारे। फिर, अपने व्यक्तित्व के अनुरूप अपने नृत्य में ढालें। मैं थोड़ी लंबी हूं। इसलिए, जब अभिनय के बारे में चर्चा होती है, तब मुझे अपने बाॅडी स्ट्रक्चर के अनुरूप थोड़ा अलग से सोचना पड़ता है। यह सोच गुरूजी ने मेरे भीतर डाली है। क्योंकि वह मानती हैं कि एक विषय को सभी शिष्याएं एक जैसा नृत्य में नहीं करें। उनकी छाप तो हर शिष्या में दिखे, पर वह उनकी काॅपी न लगें। मैं उनके इस विचार से सहमत हूं। अतः मेरी कोशिश है कि मैं नृत्य के प्रसंगों को अपने नजरिए से भी सोचूं।



अपनी यादगार परफाॅर्मेंस के बारे में थोड़ा बताईए
शरण्या चंद्रन-कुछ साल पहले हमने संकट मोचन संगीत समारोह में मम्मी के साथ युगल नृत्य किया था। मंदिर प्रांगण में स्थित मंच बहुत छोटा है। जब नृत्य के लिए मंच पर पहुंची, तब मन में ख्याल था कि आज मैं यहां डांस किसके लिए कर रही हूं। खुद के लिए या गुरू के लिए या दर्शकों के लिए। फिर, पता नहीं देवी स्तुति ‘ए गिरि नंदिनी‘ करते हुए, महसूस किया कि यह नृत्य मैं केवल और केवल मंदिर में विराजित संकट मोचन हनुमान जी की सेवा में एक अंजलि भर दे रही हूं। ऐसे ही मथुरा के राधा रमण मंदिर में हम अपनी नृत्य सेवा देने हर साल जाते हैं। मैं वहां मीरा बाई के पद ‘बसो मेरे नैनन में नंदलाल‘ कर रही थी। उसी समय भगवान के पट खुल रहे थे। उस समय अंग-प्रत्यंग में गजब की अनुभूति हुई। दरअसल, मंदिरों से जन्मी इस नृत्य शैली को देवताओं के समक्ष पेश करना, वाकई अद्भुत अनुभूतियों से भर देता है।
आपकी दिनचर्या क्या होती है?
शरण्या चंद्रन-सच कहूं तो मेरी सोशल लाइफ जीरो है। मेरी जिंदगी नौकरी, परिवार और नृत्य इन तीनों के इर्द-गिर्द घूमती है। दक्षिण एशिया में विकास और गरीबी निवारण नीतियों पर बतौर शोधकर्ता मैं काम करती हूं। गरीबी उन्मूलन, सामाजिक समस्या, टीम वर्क, संवेदनशीलता और एक समग्र सोच के साथ काम करना। इन सबके लिए अनुशासन में होना जरूरी है। नृत्य में भी संवेदनशीलता और अनुशासन जरूरी है। अपनी शोध विषय, आर्थिक विकास और नृत्य को समग्रता में देखना और उस पर काम करना मेरा लक्ष्य है। इनदिनों अपने को और समृद्ध करने के लिए संगीत भी सीख रही हूं। ताकि, अपनी गुरू की अपेक्षाओं को पूरी कर सकूं। जिससे मुझे संतोष मिले।

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