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Monday, October 28, 2013

दूर से कभी आवाज़ आती
मैं कुछ पल
सहम कर
उस आवाज़ में
 बहुत कुछ तलाशने की कोशिश करती

आवाज़ के सहारे जानना चाहती
तुम्हारे मन के भाव क्या हैं
तुम्हारी तबीयत कैसी है
तुम ठीक तो हो न

उसमें जब ख़ुशी छलकती
मन पंछी गुनगुनाता और
तुम्हारे पास उड़ आना चाहता है
लेकिन, मन चुप रह महसूस करना चाहता है

तुम जब भी अनमने रहे
मैं दूर बैठी तुम्हारी आवाज़ को
अपने भीतर बहुत गहरे गुनगुनाती रही
पल-पल की नरमी-मिठास को
तुम्हारी आवाज़ यूँ ही बयां करती है

जिसे कभी-कभी
तुम नहीं बोलते हो
तब भी मैं सुनती रहती हूँ
तुम्हारी मीठी बातें, यूँ मेरे कानो में गूंजती हैं 

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