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Wednesday, October 23, 2013

सांवरे बदन को निरख
मन ही मन असीसता है, मन
क्यों विमुख होते हो कान्हा
तुम बिन
अब तो उदास है, मन
क्यों दूर जाते हो तुम

जानते हो
सांवले घन में से झांकता
मन ही मन अठखेलियाँ करता है, मन
क्यों उन्मेष होते हो कान्हा
तुम बिन
अब तो खामोश है, मन
क्यों चुप हो जाते हो तुम

तुम्हारे
मीठी बांसुरी की धुन में रमता
मन ही मन नाचता है, मन
क्यों अभिलासित होते हो कान्हा
तुम बिन
अब तो निरखता है, मन
क्यों नहीं बजाते हो बांसुरी तुम

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