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Thursday, February 27, 2020

नृत्य ने मुझे अनुशासन सिखाया-विधा लाल,कथक नृत्यांगना


                      

                                   नृत्य ने मुझे अनुशासन सिखाया-विधा लाल,कथक नृत्यांगना


कथक नृत्यांगना विधा लाल गुरू गीतांजलि लाल की शिष्या हैं। विधा  लेडी श्रीराम काॅलेज की छात्रा रही हैं। वर्ष 2011 में गीनिज वल्र्ड रिकार्ड में उनका नाम दर्ज हुआ, जब उन्होंने एक मिनट में 103चक्कर कथक नृत्य करते समय लगाया। उन्हें नृत्य में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए खैरागढ़ विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक मिला है। इसके अलावा, विधा लाल को बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार, जयदेव राष्टीय युवा प्रतिभा पुरस्कार, कल्पना चावला एक्सीलेंस अवार्ड व फिक्की की ओर से यंग वीमेन अचीवर्स अवार्ड मिल चुका है। इस बार आप रूबरू हो रहें हैं, जयपुर घराने की कथक नृत्यांगना विधा लाल से। 

-प्रस्तुति शशिप्रभा तिवारी

नृत्य आपके लिए क्या महत्व रखता है?

विधा लाल-शास्त्रीय नृत्य को पूजनीय समझती हूं। दरअसल, शास्त्रीय नृत्य बहुत सारे अनुशासन हमें सिखाता है। इस नृत्य में करने को बहुत कुछ होता हैं जिन्हें हम अपने जीवन का हिस्सा बनाते हैं। गुरू के सानिध्य में रहकर, हम नृत्य के साथ-साथ और भी बहुत कुछ सीखते हैं। गुरू और नृत्य दोनों जीवन के मार्गदर्शक बन जाते हैं। जो हमें ईश्वर की तरह रास्ता दिखाते हैं। वास्तव में, नृत्य मेरा जीवन, मेरा पहला प्यार, मेरा सबकुछ है। आज मैं जो कुछ भी हूं, वह नृत्य की वजह से ही हूं। इससे मुझे दुनिया में पहचान मिली है।

नृत्य से आपके जीवन में क्या बदलाव आया?

विधा लाल-नृत्य के तालीम की शुरूआत का पहला अध्याय ही-अनुशासन है। अनुशासित जीवन जीने के साथ हमारा स्वभाव खुद-ब-खुद सौम्य होता जाता है। अक्सर, हम कलाकार पौराणिक कथाओं में रमे रहते हैं। उन्हीं को सुनते हैं, उन्हीं की व्याख्या नृत्य में करते हैं। इससे हमारा स्वभाव मृदु हो जाता है। साथ ही, हम माफ करना सीख जाते हैं। मेरे अंदर अध्यात्मिक भावना जागृत हुई है। मैं अपने पहले की अपेक्षा काफी बदलाव महसूस करती हूं।

मैं अपने को ज्यादा संवदेनशील मानती हूं। मैं पहले से ज्यादा खुश रहती हूं। हम कभी राम के भावों को महसूस कर रहे होते हैं, कभी कृष्ण तो कभी शिव-पार्वती। ऐसे में बाहरी दुनिया की चीजें धीरे-धीरे हम पर कम असर डालने लगती हैं। और हम दिल से प्रेम करने की प्रक्रिया से गुजरने लगते हैं। मुझे लगता है कि हम जीवन के वास्तविक सत्य से साकार होने लगे हैं। यह हमारे लिए बहुत उपयोगी हीलर की तरह है। क्योंकि हर परफाॅर्मेंस हमारे लिए किसी बोर्ड परीक्षा की तरह होता है। हर पल उससे बेहतर करने की कोशिश में लगे रहते हैं।








आप अपने करियर का लगभग बीस वर्ष पूरी कर चुकी हैं। अब आप किस तरह का परिवर्तन अपने नृत्य में महसूस करती हैं?

विधा लाल-मैंने कथक नृत्य बहुत कम उम्र में सीखना शुरू कर दिया था। शुरूआती दिनों में मुझे दु्रत लय में नृत्य का तकनीकी पक्ष आकर्षित करता था। उसी उर्जा से मैं काम भी करती थी। यह सच है। धीरे-धीरे महसूस हुआ कि नृत, नृत्य और नाट्य तीनों का समावेशन नृत्य में जरूरी है। अब मुझे लगता है कि फुट वर्क या चक्कर करने से नृत्य पूरा नहीं होता है। फिर यह भी महसूस करती हूं कि भाव कोई सिखा नहीं सकता। यह उम्र के साथ हमारे भीतर से उपजता है। अगर, किसी सोलह साल की बच्ची को माता यशोदा का भाव करने को कहा जाएगा, तब उसे मुश्किल होगी ही। लेकिन, उसके लिए अभिसारिका या मुग्धा नायिका का भाव करना कुछ सरल होगा। हम जीवन के अनुभव के जरिए बहुत कुछ आत्मसात करते हैं और उसे अपनी कला में पिरोते हैं।
आपको किस नृत्यांगना का नृत्य बहुत भाता है?

मेरी कोशिश होती है कि हम नृत्य शैली के नृत्य को देखूं। मुझे भरतनाट्यम नृत्यांगना रमा वैद्यनाथन का नृत्य बहुत पसंद है। वह बहुत सोचती हैं। चीजों की बारीकियों को सोच-समझ कर और उसे तैयार करना। नए-नए विषय को तलाशना उनकी खासियत है।


अपनी गुरू के किस गुण को आप खुद में समाहित करना चाहती हैं?

विधा लाल-गुरू जी नृत्य की तो महारथी हैं ही। वह गाती बहुत अच्छा हैं। उन्होंने शास्त्रीय नृत्य के साथ संगीत भी सीखा है। वह नृत्य के लिए जो संगीत क्रिएट कर सकती हैं, उसकी परिकल्पना कर पाना सबके वश की बात नहीं है। मेरा सपना है कि मैं भी उनकी तरह शास्त्रीय संगीत को सीख सकूं। हालांकि, कुछ-कुछ शास्त्रीय गायन सीखा है। लेकिन मैं गायन को और गहराई के साथ सीखने की इच्छुक हूं।




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