shashiprabha:
...: फिर बज उठी शहनाई ...
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सुबह होने से पहले मुँह अँधेरे मैं गंगा के किनारे बैठी लहरों को निहारती हर धारा में तुम्हें देख रही थी वही तुम्हारी अंगुली थामे सड़क प...
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कथक और पहाड़ी चित्रों का आपसी रंग कविता ठाकुर, कथक नृत्यांगना रेबा विद्यार्थी से सीख कर आए हुए थे। जिन्होंने लखनऊ घराने की तकनीक को सीखा थ...
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बांसुरी ने जीवन की समझ दी-चेतन जोशी, बांसुरीवादक पहाड़ों, घाटियों, नदियों, झरने, जंगल और हरी-भरी वादियों...
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अपनी मूल से जुड़े -शशिप्रभा तिवारी ओडिशी नृत्य गुरू मायाधर राउत राजधानी दिल्ली में रहते है...
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युवा कलाकार...
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सत्रीय नृत्य समारोह ...
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'जीवन की सुगंध है-ओडिशी'-- मधुमीता राउत, ओडिशी नृत्यांगना उड़ीसा और बं...
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जयंतिका की ओर से नृत्य समारोह ‘भज गोविंदम्‘ का आयोजन दिल्ली में हुआ। यह समारोह नौ अप्रैल को इंडिया हैबिटैट सेंटर के स्टेन सभागार में आयोजित ...
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शास्त्रीय नृत्य की एक अनवरत परंपरा है। इसके तहत गुरूओं के सानिध्य में शिष्य-शिष्याएं कला की साधना करते हैं। गुरूमुखी विद्या का यह अवगाहन गु...
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कला के विस्तार का एक और आयाम शशिप्रभा तिवारी ...
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