सफर चुनौतिपूर्ण है-आरूषी मुद्गल,
ओडिशी नृत्यांगना
ओडिशी
नृत्यांगना आरूषी मुद्गल ने गुरू माधवी
मुद्गल से नृत्य की
शिक्षा ग्रहण की है। उन्होंने
देश-विदेश के सभी बड़े
समारोह में शिरकत की है। आरूषी
की नृत्य प्रतिभा से प्रभावित होकर,
जर्मनी की डांसर और
कोरियोग्राफर पीना बाउश ने उन्हें विशेषरूप
से जर्मनी में नृत्य प्रस्तुति के लिए आमंत्रित
किया। उन्हें उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार, बालश्री अवार्ड, राजीव गांधी एक्सीलंस अवार्ड मिल चुके हैं। आरूषी को फेमिना वीमेंस
अवार्ड के लिए परफाॅर्मिंग
आटर्् कैटगरी में नामांकित होने का गौरव मिल
चुका है। उन्हें ब्रिटेन सरकार की ओर से
टूरिंग फेलोशिप मिला। इस बार हम
रूबरू में आरूषी मुद्गल से रूबरू हो
रहे हैं- प्रस्तुति शशिप्रभा तिवारी
आपकी
जिंदगी में नृत्य की भूमिका क्या
है?
आरूषी
मुद्गल-मेरी जिंदगी नृत्य और कलाओं के
साथ बीत रही है। हमारे परिवार में शुरू से कला का
माहौल रहा है। बचपन से ही सुबह
हमारी आंखें खुलती तो कानों में
पिताजी या तानपुरे के
सुर या बुआ की
घुंघरूओं की आवाजें पड़तीं।
उनका असर इस कदर रहा
कि हमारे अवचेतन मन में सुर-लय-ताल समा
गए। इसके लिए, हमें कभी अलग से प्रयास करने
की जरूरत नहीं पड़ी।
सच
कहूं तो जब छोटी
थी, तब मैं और
मेरी बड़ी बहन माधवीजी यानि गुरूजी के क्लास में
घुसकर बैठ जाते थे। हालांकि, तब मैंने सीखना
शुरू नहीं किया था। केलू बाबू गुरूजी की क्लास में
भी कई बार बैठकर,
उन्हें देखती रहती थी। कि कैसे वह
नृत्य सिखाते हैं। फिर, उनलोगों की नकल करती।
धीरे-धीरे स्कूल जाना शुरू हुआ। मैं स्कूल की पढ़ाई के
साथ-साथ डांस सीखती रही। मैं खुद को सौभाग्यशाली समझती
हूं कि हमारी टेनिंग
सहज रही है। हमारे परिवार वालों और गुरूओं ने
हम दोनों बहनों को एक अलग
ढंग से शेप दिया।
शास्त्रीय
नृत्य कलाकारों को आध्यात्मिक बनाता
है?
आरूषी
मुद्गल-यह सच है।
नृत्य करते हुए, हम कभी-कभी
अनुभूतियों के अलग स्तर
से गुजरते हैं। वह अध्यात्म या
आत्म साक्षात्कार का पल होता
है। वह क्षण एक
अलग तरह के अनुभव दे
जाता है। इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। वास्तव
में, वह एक अनुभव
की चीज है। यह किसी को
बताया नहीं जा सकता। लेकिन,
एक बात यह भी है
कि यह अनुभव हमेशा
हो ऐसा हो यह भी
संभव नहीं है। पर कभी-कभी
डांस करते हुए, आत्म या ईश्वर के
दर्शन हो जाते हैं।
कभी एकांत में बैठती हूं, उस समय मुझे
ऐसे परफाॅर्मेंस याद आते हैं। मुझे याद आता है कि शोवना
नारायण द्वारा आयोजित अर्पण समारोह में नृत्य कर रही थी।
मैं एक अष्टपदी पर
अभिनय कर रही थी,
मुझे लगा भगवान श्रीकृष्ण मेरे साथ साकार नृत्य कर रहे हैं।
उस समय मेरी आंखों से आंसू लगातार
बह रहे थे। मैं उन्हें रोक नहीं पा रही थी।
अगर, ऐसे अनुभव को कोई दर्शक
साझा कर लेता है,
तो सब कुछ हासिल
हो जाता है। उससे बढ़कर हमारे लिए कोई सम्मान और पुरस्कार नहीं
होता है।
आपकी
कोई यादगार परफार्मेंस, जो आप भूलती
नहीं।
आरूषी
मुद्गल- मैं डांस के जरिए पूरी
दुनिया में घूमी हूं। मैं उन दिनों स्कूल
में पढ़ती थी। उस समय पहली
बार ब्राजील की यात्रा पर
गई थी। उस कार्यक्रम के
दौरान केलू बाबूजी, माधवीजी और मैं तीनों
एकल नत्य करते। इसके बाद, हम तीनों एक
साथ नृत्य प्रस्तुत करते । उस समय
रिहर्सल के समय केलू
बाबू खुद ही पखावज बजाते
थे। वहां के लोग राधा-कृष्ण या शिव-पार्वती
के बारे में नहीं जानते हैं। मुझे याद आता है कि प्रोग्राम
के बाद, हम लोग दर्शकों
से मिलने के लिए खड़े
थे। एक बुजुर्ग महिला
मेरे हाथ पकड़कर, रोई जा रही थी।
मुझे समझ नहीं आ रहा था।
लेकिन, इतना समझ आया कि उनके दिल
को हमारा नृत्य जरूर छू गया है।
अद्भुत उर्जा का वह संचार
नहीं भूलता है। दरअसल, ऐसी भावनाएं कोशिश करने से नहीं आती,
वह सिर्फ आ जाती है।
बस उस पल को
जी लें। उस पल को
पकड़कर रख भी नहीं
सकते।
विरासत
को संभालना क्या चुनौतिपूर्ण है?
आरूषी मुद्गल-समय
और आस-पास का
माहौल बहुत तेजी से बदला है।
हर चीज में व्यावसायिकता का बोल-बाला
होने लगा है। ऐसे में अपने मूल्यों को बनाए रखना
मुश्किल होने लगा है। लेकिन, ऐसे में भी मुझे अपनी
गुरू में प्रेरणा की एक लौ
नजर आती है। मेरी गुरू और पिताजी दोनों
ही प्रोग्राम हो या न
हो रोज सुबह रियाज करते हैं। उनके अंदर जो धैर्य और
आत्मप्रेरणा की भावना है,
उसका एक प्रतिशत भी
मैं अपना सकूं तो खुद को
खुशकिस्मत समझूगीं।
आठ
मार्च को महिला दिवस
के अवसर पर क्या संदेश
देना चाहेंगीं?
आरूषी
मुद्गल-आज की महिला
घर-गृहस्थी से लेकर बाहर
भी निर्माण में किसी न किसी रूप
में सक्रिय हैं। अपने परिश्रम से आनंद पाती
है। महिला दिवस नहीं हर पल उसके
लिए उत्सव की तरह होता
है। महिला के लिए घर,
समाज के लिए काम
करते हुए, आनंद की प्राप्ति एक
बात है। आज वह किसी
चीज के लिए मोहताज
नहीं है। वह जल, थल
और नभ सबको अपने
कदमों से नाप रही
है। समाज से उसे स्वीकृति
मिल रही है। हर दिन उसके
लिए वंीमेंस डे है। हम
युवाओं को नहीं भूलना
चाहिए कि आज हमारी
पीढ़ी जहां खड़ी है, वहां तक पहुंचाने के
लिए हमारी पूर्वजों की पीढ़ियों को
बहुत संघर्ष करना पड़ा है। इसलिए वीमेंस डे पर कमर्शियल
प्रोडक्ट्स पर विशेष छूट
या मुफ्त के उपहार दिया
जाता है। इस तरह के
प्रलोभन मुझे पसंद नहीं आता । मैं इस
पृथ्वी पर अपने अस्तित्व
का हर पल उत्सव
मनाती हूं। हमारे समाज में महिलाओं को हर पल
और हर दिन सम्मान
दिया जाना चाहिए। मैं हर पल खुद
को याद दिलाती हूं कि खुद की
खुशी के लिए साल
के एक दिन की
जरूरत नहीं है।
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