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Friday, March 13, 2020

शिकारा का यूं तैरना




                                                       शिकारा का यूं तैरना
                                                       अभय सोपोरी, संतूर वादक


अभी हाल ही में, फिल्म विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘शिकारा‘ आई। इस फिल्म में संगीत निर्देशन युवा संतूर वादक अभय रूस्तम सोपोरी ने किया। कश्मीर के संगीत की मधुर सुरों से सराबोर इस फिल्म के संगीत को अभय सोपोरी ने भी संवारा है। हालांकि, इस फिल्म में एआर रहमान, कुतुब ए कृपा, संदेश शांडिल्य और रोहित कुलकर्णी ने भी संगीत दिया है। कश्मीरी लोक संगीत की खुशबू इस फिल्म में खासतौर पर सराही गई है। इसका श्रेय संगीत निर्देशक और कम्पोजर अभय सोपोरी को दिया जा रहा है। इस संदर्भ में रूबरू के लिए अभय रूस्तम सोपोरी से चर्चा की गई। उसके कुछ अंश पेश हैं-शशिप्रभा तिवारी


फिल्म शिकारा में संगीत देने के बारे में आपने कैसे सोचा?
अभय-करीब तीन साल पहले विधु जी से मिला था। उन्होंने स्क्रिप्ट पढ़ने को दिया। उसे पढ़ने के बाद, उन्होंने बताया कि यह अस्सी के शादी के दृश्य के हिसाब से संगीत का चयन करना है। मेरे लिए एक चुनौती थी। सेट पर उसी दौर के डेªस कोड, शामियाने, साज-सामान, साज-सज्जा थी। हमने लाइव सेट पर सारा म्यूजिक रिकार्ड किया। शिकारा में तीन कश्मीरी गीत हैं। एक शादी का गीत और थीम सांग है। इसका संगीत निर्देशन मैंने किया है।

बतौर संगीत निर्देशक कार्य करना आपको कैसा लगा?
अभय-मैं इस फिल्म से पहले कई डाॅक्यूमेंटरी फिल्म और कुछ शाॅर्ट फिल्मों में संगीत निर्देशन का काम कर चुका हूं। दरअसल, इस फिल्म के गीत अलग-अलग मूड के हैं। जिन गीतों को मैंने चुना, वह पहले हिंदी में थे। धीरे-धीरे इसमें कश्मीरी तासिर लाने के लिए इसे कश्मीरी में किया गया। मैंने रिकाॅर्डिंग से पहले उन कलाकारों के साथ दस दिनों तक रियाज किया। म्यूजिक में एक ही रिद्म चल रहा है। इसमें कश्मीरी सारंगी, रबाब, मटका, संतूर, सहतार बजाए गए हैं। मैंने कोशिश की है कि अस्सी के दशक में जिस तरह गीत गाए-बजाए जाते थे, उसी तरह पेश करूं। इससे फिल्म के अनुरूप एक गहराई की अनुभूति हुई। इस फिल्म में उस दौर के कश्मीर की जिंदगी को दिखाया गया है। वह सच है। मुझे लगता है कि फिल्म में उतना ही दिखाया जाना चाहिए, जिससे कि समाज में नफरत न बढ़े। उन दुखद घटनाओं को दिखाकर भी क्या फायदा?

आपने कश्मीर के लोक कलाकारों के साथ काम किया है। उस दौरान आप का अनुभव कैसा रहा?
अभय-कश्मीर में शादी, विवाह और खुशी के मौके पर बचनगमा डांस की परंपरा है। इसमें किशोर लड़के लड़की के वेश में डांस करते हैं। यानि बचनगमे के लिए बच्चा कलाकार होना चाहिए। मेरे जन्म से पहले के बचनगमा के मशहूर कलाकार गुलाम नबी बुलबुल थे। वह एक बेहतरीन कलाकार हैं। अब वह सारंगी वादन करते हैं। इस बार, उन्होंने कलाकारों को बचनगमा की टेªेनिंग दिया। उन्हें हमारी संस्था समप की ओर से कुछ साल पहले सम्मानित भी किया गया था।

इस फिल्म के विवाह गीत ‘शुक्राना गुल खिले‘ और ‘दिलबर लाग्यो‘ को गायक मुनीर अहमद मीर ने गाया है। इसके गीत को बशीर आरिफ ने लिखा है। मुनीर अहमद ने आॅन स्पाॅट गीतों को गाया है। जिसे जब विधुजी ने सुना तो उन्होंने मुझे और मुनीरजी को गले से लगा लिया।  बाकी कलाकार मेरे साथ लंबे समय से परफाॅर्म करते रहे हैं। मैं जब भी कश्मीर या देश के अलग हिस्से में कश्मीरी संगीत पेश करता हूं, वो लोग मेरे साथ होते हैं।






शिकारा के संगीत को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया कैसी रही?

अभय-कश्मीर की समृद्ध संगीत परंपरा है। मेरी कोशिश रही है कि फिल्म की तरह संगीत में भी वहां की सांस्कृतिक झलक मिले। सोशल मीडिया में जिस तरह की प्रतिक्रिया आती है कि कश्मीरीयत खत्म हो गई है। मेरी परवरिश कश्मीरी माहौल में हुई है। मैंने बचपन में कश्मीर की खूबसूरत वादियों को देखा है। वहां के लोगों के आंखों में प्यार-मोहब्बत देखा है। उसे महसूस किया है। मैं अपने संगीत के जरिए नफरत के बजाय प्यार-मोहब्बत का संदेश देना चाहता हूं। प्यार और धैर्य संगीत और कला के जरिए बढ़ता है। संगीत से लोगों के बीच प्रेम, सौहार्द और मित्रता को दिन पर दिन बढ़ते देखना चाहता हूं।






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