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Wednesday, January 15, 2025

#आज के कलाकार-- नृत्य संरचना-पधारो म्हारे देश जी! की प्रस्तुति @शशिप्रभा तिवारी

                                                            #आज के कलाकार 

                                                   नृत्य संरचना-पधारो म्हारे देश जी! की प्रस्तुति

                                                      @शशिप्रभा तिवारी 

बीते दिनों लोकसभा का 96 वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर बालयोगी सभागार में लोकसभा कर्मचारी संघ की ओर से समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह के सह आयोजकों में कथक धरोहर और गांधी मंडेला फाउंडेशन शामिल थे। इस आयोजन में नृत्य परिकल्पना ‘पधारो म्हारे देश‘ पेश किया गया। इसकी नृत्य संरचना कथक नर्तक सदानंद विश्वास ने की थी। आलेख शशिप्रभा तिवारी की थी। 

समारोह के मुख्य अतिथि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि अपने अब तक के कार्यकाल में मैंने सचिवालय की कार्य प्रणाली को बहुत करीब से देखा है। लोकसभा कर्मचारियों के समर्थन और सहयोग से देर रात तक बैठकर भी सभा का कार्य सुचारू रूप से संचालित किया गया है। आशा है कि आगे भी सभी अधिकारी और कर्मचारीगण इस संस्था को ईमानदारी, समर्पण और कड़ी मेहनत का जीवंत उदाहरण बनाने के लिए अपने निष्ठावान प्रयास जारी रखेंगें। 

नृत्य परिकल्पना पधारो म्हारे देश की शुरूआत राजस्थान के प्रसिद्ध मांड पधारो म्हारे देश से हुई। इस लोकगीत पर कथक नर्तक सदानंद विश्वास ने स्वागत नृत्य किया। इसके बाद पूर्वोŸार के लोक व शास्त्रीय नृत्य की झलक बिहू और मणिपुरी के माध्यम से पेश किया गया। अगले अंश में बंगाल के लोकगीत आमारे मोने मानुषेर संग पर कलाकारों ने एक ओर नृत्य पेश किया, दूसरी ओर पुरूलिया व मयूरभंज छऊ नर्तकों ने भ्रमरी और अंग संचालन के माध्यम से पूर्व भारत की उपस्थिति दर्ज किया। 

केरल के संदर्भ को कथकलि नृत्य के जरिए प्रेषित किया गया। वहीं, उत्तर भारत की संस्कृति को कथक नृत्त में पिरोया गया। कथक की तिहाइयों, चक्रदार तिहाइयों, लड़ी, तराने और रचना डिमिक डिमिक डमरू बाजे को नृत्य में पेश किया गया। इसके अलावा, कथक नर्तक सदानंद ने गजल ‘कभी बन संवर के जो आ गए‘ में अभिनय को दर्शाया। उन्होंने अपने माध्यम से लखनऊ घराने की नजाकत, सलामी की गत और कई तिहाइयों का प्रयोग किया। हालाकि, वह जयपुर घराने के पंडित राजेंद्र गंगानी के शिष्य हैं। पर कथक के कलाकारों की यह आपसदारी अच्छी है। एक दूसरे की चीजों को अपने नृत्य में शामिल करना एक अच्छी पहल मानी जा सकती है। 

पधारो म्हारे दश नृत्य संरचना के अगले अंश में देश के पश्चिमी अंचल को साकार किया गया। इसके लिए गुजरात के डांडिया रास, पंजाब के भांगड़ा और राजस्थान के सपेरा  लोकनृत्य को पेश किया गया। डंाडिया रास गीत रंग तार मा चंद्रमा पर नृत्यांगनाओं ने मोहक नृत्य पेश किया। असी फौजी पुत कहांवों पंजाबी लोकगीत पर आधारित भांगड़ा लोकनृत्य बेहद मनोरंजक था। सपेरा नृत्य गीत ‘बाजा बाज गयो डंुगर में‘ पर आधारित था। अंत में भरतनाट्यम नृत्य के जरिए दक्षिण भारत के रंग को नृत्य रचना में समाहित किया गया। तिल्लाना शैली में भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति बेहद संक्षिप्त थी। अंत में नृत्य की पराकाष्ठा वंदे मातरम् और बजे सरगम गूंजे देश राग के माध्यम से सभी कलाकारों ने एक साथ पेश किया। 

कथक नर्तक सदानंद विश्वास समय समय पर विभिन्न नृत्य रचनाओं को अपनी कोरियोग्राफी में पिरोकर पेश करते रहे हैं। आज कल यह एक प्रचलन बन गया है। बड़ी संख्या में शास्त्रीय और लोक कलाकारों की सामूहिक प्रस्तुति का। वैसे तो यह एक अच्छी पहल है कि इस तरह के आयोजनों से बड़ी संख्या में कलाकारों को मंच मिलता है। बहरहाल, आयोजकों को शास्त्रीय नृत्य शैली की एकल प्रस्तुतियों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। क्योंकि एकल प्रस्तुतियों में शास्त्रीय नृत्य की शुद्धता को कायम रख पाना कलाकारों के लिए सरल होता है। 


 



 


Wednesday, January 8, 2025

shashiprabha: #आज के कलाकार ----पांचवें सूरदास महोत्सव में नृत्य...

shashiprabha: #आज के कलाकार ----पांचवें सूरदास महोत्सव में नृत्य...:                                                                     #आज के कलाकार पांच...

#आज के कलाकार ----पांचवें सूरदास महोत्सव में नृत्य प्रस्तुतियां @शशिप्रभा तिवारी

                                                                   #आज के कलाकार

पांचवें सूरदास महोत्सव में नृत्य प्रस्तुतियां

@शशिप्रभा तिवारी


बीते तीस दिसंबर 2024 को गीतांजलि इंटरनेशनल फाउंडेशन की ओर से पांचवी संत शिरोमणि सूरदास महोत्सव का आयोजन किया गया। यह महोत्सव दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित था। समारोह में विदुषी रंजना गौहर, विदुषी कमलिनी व नलिनी, गुरु गीतांजलि लाल, विदुषी उमा डोगरा, जयप्रभा मेनन, विदुषी भारती शिवाजी जैसे विद्वतजन उपस्थित थे। इसके अलावा, बड़ी संख्या में कलाकार भी कार्यक्रम के साक्षी बने। इससे इस समारोह की गरिमा और बढ़ गई।

सूरदास समारोह का आरंभ विदुषी उमा डोगरा की शिष्याओं की प्रस्तुति से हुआ। शिष्याएं दीक्षा रावत और कार्तिका उन्नीकृष्णन ने युगल कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने पंद्रह मात्रा की पंचम सवारी ताल पर आधारित शुद्ध नृŸा में अपने नृत्य को पिरोया। उपज में लयकारी का अंदाज पैर के काम में आकर्षक अंदाज में पेश किया। इसमें पंद्रहवें और आठवें मात्रा पर उनका सम पर आने का ढंग लासानी था। वहीं खाली मात्राओं को दर्शाना भी सहज था। रूख्सार और घूंघट की गतों के साथ साथ तिहाइयों और परणों का प्रयोग लासानी था। उनका आहार्य और आभूषणों को धारण करने में पारंपरिक छवि दिखी, जो आजकल कथक कलाकारों में कम ही दिखता है। यह श्रेय उनकी गुरु उमा डोगरा को जाता है कि उन्होंने यह सलीका शिष्याओं में कायम रखा है। शास्त्रीय नृत्य में आहार्य का विशेष महत्व और गरिमा है। इसे युवा कलाकारों को ध्यान में रखना जरूरी है।



इस समारोह की मुख्य आकर्षण भरतनाट्यम नृत्यांगना विदुषी रमा वैद्यनाथन का नृत्य रहा। उनके साथ संगत कलाकारों में सुधा रघुरामन, जी रघुरामन, वरूण राजशेखर और मनोहर बालचंद्रन शामिल थे। उन्होंने वरणम के जरिए मधुर भक्ति को नायिका के भावों में दर्शाया। यह श्यामा शास्त्री की रचना ‘स्वामी रम्यभावे‘ पर आधारित थी। यह राग आनंद भैरवी और चैदह मात्रा की अट ताल में निबद्ध था। कांचिपुरम के मुख्य देवता वरदराजन की शोभा यात्रा के प्रति नायिका के विभिन्न अवस्थाओं के भावों को नृत्यांगना रमा ने चित्रित किया। उन्होंने हस्तमुद्राओं, भंगिमाओं, विशेषकर अंगुलियों का बहुत ही मनोरम प्रयोग किया। संचारी
भाव में गजब की परिपक्वता और निमग्नता दिखी। एक ओर गायिका सुधा रघुरामन का गायन ओजपूर्ण था, दूसरी ओर नृत्यांगना रमा वैद्यनाथन का अभिनय प्रवाहमान बन पड़ा। अपनी पूरी प्रस्तुति के दौरान उन्होंने दर्शकों को बांधे रखा। यह शास्त्रीय नृत्य की पहली शर्त होती है कि कलाकार तादात्म्य स्थापित कर लें। इसमें दोनों ही कलाकारों को महारत हासिल है।



वरिष्ठ कथक नृत्यांगना विदुषी रानी खानम ने मोहक कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने सूरदास के पद ‘सुंदर बदन सुखद सदन‘ से नृत्य आरंभ किया। इसमें श्रीकृष्ण की स्तुति थी। अगले अंश में तीन ताल में उन्होंने शुद्ध नृŸा पेश किया। इसमें उपज, छूट की तिहाई, रेला, पंडित बिरजू महाराज की रचना में शिकार के क्रम में तीर चलाने का अंदाज, नाव की गत, सवाल-जवाब का अंदाज शामिल था। उनके साथ प्रांशु चतुरलाल, जयवर्धन दधीच, नासिर खान और निशा केसरी ने संगत किया।

सूरदास महोत्सव में दोनों वरिष्ठ नृत्यांगनाओं ने युगल नृत्य पेश किया। भरतनाट्यम और कथक नृत्य के अभिनय का अंदाज इस प्रस्तुति में दिखा। इसके लिए सूरदास के पद ‘भूलत हौं कत मीठी बातन‘ का चयन किया गया था। दोनों ही कलाकारों ने सरस अभिनय से मोहक छवि उकेरी। यह प्रस्तुति हिंदुस्तानी संगीत पर आधारित थी, यदि कर्नाटक शैली में भी संगीत होता तो बात और बन जाती है। यह एक कमी खल गई। लेकिन, कुल मिलाकर यह शाम वाकई सार्थक रही।


विदुषी उमा शर्मा की शिष्या कथक नृत्यांगना गीतांजलि शर्मा ने इस समारोह का आयोजन किया था। गीतांजलि शर्मा इससे पहले संत शिरोमणि सूरदास महोत्सव का आयोजन मथुरा में करती रही हैं। उनके आयोजन में उनकी गुरु शामिल होती हैं। गुरु के मार्ग दर्शन में वह अपना आयोजन करती हैं। यह सराहनीय है।