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Wednesday, July 16, 2025
shashiprabha: #आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी ------रश्मि खन्ना --...
#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी ------रश्मि खन्ना -----नई पौध तैयार करने में जुटी हैं
#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी
रश्मि खन्ना -----नई पौध तैयार करने में जुटी हैं
नृत्य सीखना और सिखाना दोनों आनंद की अनुभूति से गुजरना है। ऐसा भरतनाट्यम नृत्यांगना और गुरु रश्मि खन्ना मानती हैं। वह गुरु कल्याणी शेखर की शिष्या हैं, जिनके गुरु के एन दंडयुद्धपाणी पिल्लै रहे। गुरु रश्मि ने भरतनाट्यम के अलावा, लोकनृत्य, कथक और छऊ भी सीखा है। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य कला परिषद और दूरदर्शन की मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। रश्मि ने कर्नाटक संगीत की शिक्षा विजय लक्ष्मी कृष्णन और विद्वान जी इलंगोवन के सानिध्य में ग्रहण की है। नटुवंगम की बारीकियों को हेमंत लक्ष्मण से सीख रही हैं।
गुरु रश्मि मानती हैं कि कला की दुनिया में सीखना निरंतर चलता रहता है। वह कहती हैं कि मैं अपनी गुरु कल्याणी शेखर से बहुत प्रभावित रही। जब तक वह जीवित रहीं, मैं अपनी सारी व्यस्तताओं के बावजूद हर वृहस्पतिवार उनके सान्निध्य में रह कर व्यतीत करती थी। मुझे उन्होंने बहुत ज्ञान दिया है। उसको संभाल कर पाऊं। वही मेरे लिए बहुत है। इनदिनों मैं गुरु गोविंदराजन पर शोधकार्य कर रही हूं। उन्होंने राजधानी दिल्ली में रहकर भरतनाट्यम नृत्य और कर्नाटक संगीत के क्षेत्र में अपूर्व योगदान दिया है। उन्होंने जी इलंगोवन, मैरी इलंगोवन और जी रघुरामन जैसे बहुत से कलाकारों को तैयार किया। अपने शोध के माध्यम से मैं उनको आज की पीढ़ी के सामने लाना चाहती हैं।
बहरहाल, राजधानी दिल्ली में उन्होंने अपने नृत्य संस्थान का नामकरण गुरु कल्याणी शेखर के नाम पर कल्याणी कला मंदिर रखा है। यह संस्थान पिछले पच्चीस सालों में लगभग दौ सौ प्रस्तुतियों का आयोजन कर चुका है। कल्याणी कला मंदिर में लगभग दो सौ छात्राएं भरतनाट्यम सीख रही हैं। अब तक गुरु रश्मि खन्न ने बीस छात्राओं को अरंगेत्रम के जरिए मंच प्रवेश की अनुमति प्रदान की है। इन प्रस्तुतियों में गुरु के एन दंडयुद्धपाणी पिल्लै, गुरु कल्याणी शेखर और गुरु रश्मि खन्न की नृत्य रचनाओं को पेश किया गया है। नृत्य समारोह में गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर, काजी नजरूल, तुलसीदास, संत कबीरदास, महाराजा स्वाति तिरूनाल आदि की रचनाओं पर आधारित प्रस्तुतियां दर्शकों को मोह लेती हैं।
गुरु रश्मि खन्ना ने एकल साधना के जरिए अपनी शिष्याओं को अरंगेत्रम के लिए तैयार किया है। पिछले दिनों इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित अरंगेत्रम समारोह में उनकी दो युवा शिष्याएं आद्या और श्रेशा ने नृत्य प्रस्तुत किया। उनकी युगल प्रस्तुति में प्रथम पुष्पांजलि थी। यह राग गंभीर नाटई और आदि ताल में निबद्ध थी। इसके अगले अंश में गणेश तांडव थी। मराठी अंभग रचना ‘तांडव नृत्य करि गजानन‘ राग हंसध्वनि और आदि ताल में निबद्ध थी। वरणम में वात्सल्य भाव का विवेचन था। इसमें परिवार के महत्व को पेश किया गया। रचना ‘नंदनंदन आरा रो इंदुड‘ राग आभोगी और आदि ताल में निबद्ध थी। संत दयानंद सरस्वती की रचना ‘भो शंभो स्वयंभो‘ पर आधारित अगली पेशकश थी। यह राग रेवती और आदि ताल में निबद्ध थी। गायक जी इलंगोवन रचित और संगीतबद्ध रचना पर आद्या और श्रेशी ने नृत्य में पिरोया। ‘राम मेरे राम, श्याम मेरे श्याम‘ को इलंगोवन ने राग पीलू का आधार लेकर गाया। अंतिम प्रस्तुति तिल्लाना थी। यह राग हिंदोलम में थी।
अरंगेत्रम समारोह में प्रस्तुत नृत्य रचनाओं की परिकल्पना गुरु कल्याणी शेखर और गुरु रश्मि खन्ना ने की थी। शिष्याएं आद्या और श्रेशा ने संुदर नृत्य पेश किया। उनका अंग संचालन, पैर संचालन, भाव भंगिमा उम्र और अनुभव के अनुकूल था। समय के साथ धीरे धीरे वह दोनों और परिपक्व होंगी।
Thursday, June 19, 2025
#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी/चर्चित पुस्तक ‘चंदन किवाड़-संस्कृति के आंगन में खुलती है!
Wednesday, May 14, 2025
#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी----गुंजायमान संध्या कवि जयदेव की अष्टपदी से
Friday, May 9, 2025
shashiprabha: #आज के कलाकार @शशिप्रभा तिवारी
#आज के कलाकार @शशिप्रभा तिवारी
#आज के कलाकार @शशिप्रभा तिवारी
मंगलोत्सव में गुरु का स्मरण
मंगलोत्सव का आयोजन पिछले दिनों इंडिया हैबिटैट सेंटर में किया गया। यह आयोजन बनारस घराने की प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका विदुषी गिरिजा देवी की स्मृति में था। गिरिजा दर्शन ट्रस्ट की ओर से गिरिजा देवी के 96वें जन्म दिवस पर यह समारोह आयोजित था।
आठ मई की शाम कुछ बोझिल सी थी। एक तरफ देश की सीमाओं पर तनाव का माहौल बना हुआ था। और लगातार पत्रकार मित्रों के संदेश आ रहे थे। जिससे हर किसी का थोड़े से तनाव में आ जाना लाजिमी था। इन सब के बावजूद, कलाकारों का संकल्प नमन करने योग्य है, क्योंकि आयोजिका शास्त्रीय गायिका और अप्पा जी की शिष्या सुनंदा शर्मा ने कार्यक्रम में शिरकत भी किया और आयोजन को सफलतापूर्वक संपन्न करवाया। शायद, इसलिए कला के उपासक भारतीय संस्कृति में वाग्देवी के आराधक श्रेष्ठ माने जाते हैं। वैसे भी भारत में तो युद्ध से पहले भी रणभेरी, नगाड़े, शंख आदि बजाने की परंपरा है। वास्तव में, यह नाद अराधन भी राष्ट्र अराधन का ही रूप है। अतः इस आयोजन में भाग लेने वाले कलाकारों के साथ-साथ सभागार में उपस्थित हर श्रोता वंदनीय है।
शास्त्रीय गायिका सुनंदा शर्मा ने अपनी गुरु को याद करते हुए, कहा कि अप्पा जी सिर्फ मेरी गुरु नहीं थीं, वे मेरी संगीत और जीवन यात्रा की प्रेरणा थीं। मंगलोत्सव का यह आयोजन मेरे लिए उनको एक श्रद्धांजलि है। साथ ही यह वादा भी कि मैं उनकी परंपरा को पूरे समर्पण से आगे बढाऊंगी।
पठानकोट में जन्मी और पली बढ़ी गायिका सुनंदा शर्मा ने अपने गुरु के साथ लंबा समय बीताया। वह बनारस में रहकर गुरु शिष्य परंपरा में संगीत की शिक्षा लीं, बल्कि बनारस की संस्कृति-संस्कारों को अपनाया है। इसलिए, उनके संगीत में सिर्फ बनारस घराने के सुर ही नहीं हैं, बल्कि बनारसीपन भी झलकता है। बहरहाल, समारोह में वह जुगलबंदी पेश करने को उपस्थित थीं। उनके साथ बांसुरीवादक रूपक कुलकर्णी थे। दोनों ही कलाकार एकल प्रस्तुति के लिए जाने जाते हैं। लेकिन, सुनंदा शर्मा और रूपक कुलकर्णी ने बहुत ही संतुलित और संयमित संगीत पेश किया। संगीत में मुख्य कलाकार को संगत करना एक बात होती है और जुगलबंदी विशेष हो जाती है। इस प्रस्तुति का आगाज, राग यमन कल्याण के आलाप से हुआ। दोनों ही कलाकारों ने सांध्यकालीन राग के आलाप में तीव्र मध्यम और अन्य शुद्ध स्वरों का प्रयोग मोहक था। इसी क्रम में सुनंदा ने मध्य लय में रचना ‘न जानू कैसी प्रीत‘ को सुरों में पिरोया। इसके बरक्स बांसुरी पर रूपक कुलकर्णी में लयकारी और तानों को पेश किया। तीन ताल में निबद्ध बंदिश की बढ़त में बोल और आकार की तानों का प्रयोग भी सरस था। अगले अंश में गायिका सुनंदा शर्मा ने मिश्र खमाज में ठुमरी ‘इतनी अरज मान मान ले‘ गाया। यह जत ताल में थी। अंत में, अप्पा जी की मशहूर कजरी ‘कहनवा मान ओ राधा रानी‘ को सुरों में पिरोया। तबले पर पंडित मिथिलेश झा और हारमोनियम पर डाॅ सुमित मिश्रा ने रसमय संगत किया। कलाकारों की इस प्रस्तुति ने अच्छा समां बांधा।
अगले कलाकार वरिष्ठ शास्त्रीय गायक पंडित साजन मिश्रा और उनके शिष्य स्वरांश मिश्रा थे। उन्होंने राग बागेश्वरी पेश की। उन्होंने राग बागेश्वरी के आलाप से गायन आरंभ करने के बाद, विलंबित लय की बंदिश को सुरों में पिरोया। बंदिश के बोल थे-‘रे कौन गत भई‘। यह एक ताल में निबद्ध थी। उन्होंने मध्य लय की बंदिश ‘एरी मैं कैसे घर जाऊं‘ को सुरों में ढाला। उन्होंने पंडित राजन मिश्रा रचित बंदिश ‘जमुना जल भरन न देत कन्हाई‘ को पेश किया। उन्होंने तराने को भी गाया। उनके साथ तबले पर पंडित विनोद लेले और हारमोनियम पर डाॅ विनय मिश्रा थे।
कार्यक्रम में गाने से पूर्व पंडित साजन मिश्र ने कहा कि आज का कार्यक्रम गुरु की याद में सुनंदा जी कर रही हैं। अप्पा जी बनारस घराने की वरिष्ठ कलाकार थीं। मेरा बचपन से उनसे तालुक था। यह अद्भुत संयोग है कि उनको समर्पित सुबह बनारस में एक कार्यक्रम में गाया और शाम को भी उन्हीं को समर्पित उत्सव में गा रहा हूं।
Tuesday, May 6, 2025
shashiprabha: #आज का कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी-------- गुरु मौन प्...
#आज का कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी-------- गुरु मौन प्रकाश है-ज्योति श्रीवास्तव
गुरु मौन प्रकाश है-ज्योति श्रीवास्तव
पिछले दिनों जयदेव उत्सव का आयोजन संचारी फाउंडेशन की ओर से किया गया। यह दो दिवसीय आयोजन एक और दो मई 2025 कां था। इंडिया हैबिटैट सेंटर में आयोजित उत्सव का समापन ओडिसी नृत्यांगना ज्योति श्रीवास्तव के नृत्य से हुआ। उन्होंने देवप्रसाद शैली का अनुसरण करते हुए, अभिनय से पगा नृत्य पेश किया। उनकी पहली पेशकश प्रोषितभर्तृका नायिका थी। उनका नृत्य अष्टपदी-‘विहरति वने राधा साधारणप्रणये‘ पर आधारित थी। यह रचना राग मिश्र काफी और जती ताल में निबद्ध थी। दूसरी प्रस्तुति अष्टपदी ‘रती सुख सारे गतम् अभिसारे‘ थी। इसमें वासकसज्जा नायिका के भावों को दर्शाया।
ओडिसी नृत्यांगना ज्योति श्रीवास्तव देश की जानीमानी ओडिसी नृत्यांगना हैं। उन्होंने गुरु दुर्गा चरण रणबीर और गुरु श्रीनाथ राउत की नृत्य रचनाओं को परंपरागत अंदाज में पेश किया। उन्होंने अभिनय में नायिका राधा और नायक कृष्ण के भावों को बहुत परिपक्वता और सुघड़ता से निभाया। उन्होंने नेत्रों, मुख और हस्तकों के जरिए एक एक बारीकी को खूबसूरती से उकेरा। अष्टपदी में राधा और कृष्ण के अलौकिक प्रेम का वर्णन है। देवप्रसाद ओडिसी नृत्य शैली में गुरुओं का मानना है कि राधा और कृष्ण दोनों एक हैं। राधा प्रकृति के हर अंश में कृष्ण का दर्शन करती है। नायिका राधा का विशेष प्रकृति प्रेम ही नृत्यांगना ज्योति के अभिनय में रूपायित होता दिखा। उनका अभिनय स्थूल से सूक्ष्म या द्वैत से अद्वैत को परिभाषित करता प्रतीत हुआ। इसमें नृत्य, गुरु और कला के प्रति समर्पण भाव का योगदान है, क्योंकि लंबे समय तक अपने नृृत्य कला को संजोकर रखना कलाकार के लिए एक चुनौती होती है। यह लगातार अभ्यास और कला के प्रति विशेष लगाव से ही संभव है। वास्तव में, अभिनय की सूक्ष्मता में अपने गुरु की शैली की शुद्धता कायम रखना आज के समय कलाकारों के लिए बड़ी जिम्मेदारी है। यही उनकी विशेषता भी है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों उनके गुरु दुर्गा चरण रणबीर पùश्री से सम्मानित हुए। गुरु को सम्मान मिलना एक शिष्य के लिए गौरव का विषय होता है। इस बात को ओडिसी नृत्यांगना ज्योति श्रीवास्तव भी मानती हैं। और इसी मद्देनजर उन्होंने गुरु के सम्मान में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रात्री भोज का आयोजन किया। इस सम्मान मिलन समारोह में राजधानी दिल्ली की कई नृत्यांगनाएं शामिल हुईं। इस अवसर पर गुरु दुर्गा चरण रणबीर, उनकी पत्नी और नृत्यांगना पुत्री भी उपस्थित थे।
ओडिसी नृत्यांगना ज्योति आगे कहती हैं कि गुरु के ज्ञान से पूरा जगत प्रकाशित होता है। आज मैं जो कुछ भी हूं, उसका पूरा श्रेय गुरु जी को ही जाता है। गुरु कृपा कई जन्मों के सुकर्म का फल होता है। हम अपनी संतान के जन्म के साथ ही उसके पालन पोषण में अपना सर्वस्व न्योछावर करते हैं। लेकिन कला जगत में गुरु को तो हम जानने के बाद ही उनसे जुड़ते हैं। उनको स्वीकार करते हैं। गुरु का सम्मान हम नहीं करते, तो यह कला के साथ बेईमानी है। गुरु के प्रति प्रेम, गुरु की सीख, गुरु की डांट, उनके द्वारा दी गई सजा, सब कुछ गुरु का प्रसाद है। उसे इसी रूप में हम ग्रहण करते हैं। तभी गुरु शिष्य का संबंध प्रगाढ़ बन पाता है। गुरु से जुड़कर ही हम कला के पथ के पथिक बन पाते हैं क्योंकि हमारी कलाएं अध्यात्मिक हैं। इसे अपनाने से पहले हमें भक्ति और अध्यात्म भाव से खुद को परिपूर्ण करना जरूरी है। गुरु दीपक की तरह है। दीपक कुछ बोलता नहीं है। दीपक मौन रहता है, उसका प्रकाश ही उसका परिचय देता है। सफल व्यक्ति कभी खुद को उजागर नहीं करते, बल्कि उनकी उपलब्धियां उन्हें उजागर करती हैं। गुण या कला या हुनर ही गुरु का प्रकाश है, जो शिष्यों के भी ज्योतिरूप में प्रकाशित होता है।
Wednesday, January 15, 2025
#आज के कलाकार-- नृत्य संरचना-पधारो म्हारे देश जी! की प्रस्तुति @शशिप्रभा तिवारी
#आज के कलाकार
नृत्य संरचना-पधारो म्हारे देश जी! की प्रस्तुति
@शशिप्रभा तिवारी
बीते दिनों लोकसभा का 96 वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर बालयोगी सभागार में लोकसभा कर्मचारी संघ की ओर से समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह के सह आयोजकों में कथक धरोहर और गांधी मंडेला फाउंडेशन शामिल थे। इस आयोजन में नृत्य परिकल्पना ‘पधारो म्हारे देश‘ पेश किया गया। इसकी नृत्य संरचना कथक नर्तक सदानंद विश्वास ने की थी। आलेख शशिप्रभा तिवारी की थी।
समारोह के मुख्य अतिथि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि अपने अब तक के कार्यकाल में मैंने सचिवालय की कार्य प्रणाली को बहुत करीब से देखा है। लोकसभा कर्मचारियों के समर्थन और सहयोग से देर रात तक बैठकर भी सभा का कार्य सुचारू रूप से संचालित किया गया है। आशा है कि आगे भी सभी अधिकारी और कर्मचारीगण इस संस्था को ईमानदारी, समर्पण और कड़ी मेहनत का जीवंत उदाहरण बनाने के लिए अपने निष्ठावान प्रयास जारी रखेंगें।
नृत्य परिकल्पना पधारो म्हारे देश की शुरूआत राजस्थान के प्रसिद्ध मांड पधारो म्हारे देश से हुई। इस लोकगीत पर कथक नर्तक सदानंद विश्वास ने स्वागत नृत्य किया। इसके बाद पूर्वोŸार के लोक व शास्त्रीय नृत्य की झलक बिहू और मणिपुरी के माध्यम से पेश किया गया। अगले अंश में बंगाल के लोकगीत आमारे मोने मानुषेर संग पर कलाकारों ने एक ओर नृत्य पेश किया, दूसरी ओर पुरूलिया व मयूरभंज छऊ नर्तकों ने भ्रमरी और अंग संचालन के माध्यम से पूर्व भारत की उपस्थिति दर्ज किया।
केरल के संदर्भ को कथकलि नृत्य के जरिए प्रेषित किया गया। वहीं, उत्तर भारत की संस्कृति को कथक नृत्त में पिरोया गया। कथक की तिहाइयों, चक्रदार तिहाइयों, लड़ी, तराने और रचना डिमिक डिमिक डमरू बाजे को नृत्य में पेश किया गया। इसके अलावा, कथक नर्तक सदानंद ने गजल ‘कभी बन संवर के जो आ गए‘ में अभिनय को दर्शाया। उन्होंने अपने माध्यम से लखनऊ घराने की नजाकत, सलामी की गत और कई तिहाइयों का प्रयोग किया। हालाकि, वह जयपुर घराने के पंडित राजेंद्र गंगानी के शिष्य हैं। पर कथक के कलाकारों की यह आपसदारी अच्छी है। एक दूसरे की चीजों को अपने नृत्य में शामिल करना एक अच्छी पहल मानी जा सकती है।
पधारो म्हारे दश नृत्य संरचना के अगले अंश में देश के पश्चिमी अंचल को साकार किया गया। इसके लिए गुजरात के डांडिया रास, पंजाब के भांगड़ा और राजस्थान के सपेरा लोकनृत्य को पेश किया गया। डंाडिया रास गीत रंग तार मा चंद्रमा पर नृत्यांगनाओं ने मोहक नृत्य पेश किया। असी फौजी पुत कहांवों पंजाबी लोकगीत पर आधारित भांगड़ा लोकनृत्य बेहद मनोरंजक था। सपेरा नृत्य गीत ‘बाजा बाज गयो डंुगर में‘ पर आधारित था। अंत में भरतनाट्यम नृत्य के जरिए दक्षिण भारत के रंग को नृत्य रचना में समाहित किया गया। तिल्लाना शैली में भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति बेहद संक्षिप्त थी। अंत में नृत्य की पराकाष्ठा वंदे मातरम् और बजे सरगम गूंजे देश राग के माध्यम से सभी कलाकारों ने एक साथ पेश किया।
कथक नर्तक सदानंद विश्वास समय समय पर विभिन्न नृत्य रचनाओं को अपनी कोरियोग्राफी में पिरोकर पेश करते रहे हैं। आज कल यह एक प्रचलन बन गया है। बड़ी संख्या में शास्त्रीय और लोक कलाकारों की सामूहिक प्रस्तुति का। वैसे तो यह एक अच्छी पहल है कि इस तरह के आयोजनों से बड़ी संख्या में कलाकारों को मंच मिलता है। बहरहाल, आयोजकों को शास्त्रीय नृत्य शैली की एकल प्रस्तुतियों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। क्योंकि एकल प्रस्तुतियों में शास्त्रीय नृत्य की शुद्धता को कायम रख पाना कलाकारों के लिए सरल होता है।
Wednesday, January 8, 2025
#आज के कलाकार ----पांचवें सूरदास महोत्सव में नृत्य प्रस्तुतियां @शशिप्रभा तिवारी
#आज के कलाकार
पांचवें सूरदास महोत्सव में नृत्य प्रस्तुतियांसूरदास समारोह का आरंभ विदुषी उमा डोगरा की शिष्याओं की प्रस्तुति से हुआ। शिष्याएं दीक्षा रावत और कार्तिका उन्नीकृष्णन ने युगल कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने पंद्रह मात्रा की पंचम सवारी ताल पर आधारित शुद्ध नृŸा में अपने नृत्य को पिरोया। उपज में लयकारी का अंदाज पैर के काम में आकर्षक अंदाज में पेश किया। इसमें पंद्रहवें और आठवें मात्रा पर उनका सम पर आने का ढंग लासानी था। वहीं खाली मात्राओं को दर्शाना भी सहज था। रूख्सार और घूंघट की गतों के साथ साथ तिहाइयों और परणों का प्रयोग लासानी था। उनका आहार्य और आभूषणों को धारण करने में पारंपरिक छवि दिखी, जो आजकल कथक कलाकारों में कम ही दिखता है। यह श्रेय उनकी गुरु उमा डोगरा को जाता है कि उन्होंने यह सलीका शिष्याओं में कायम रखा है। शास्त्रीय नृत्य में आहार्य का विशेष महत्व और गरिमा है। इसे युवा कलाकारों को ध्यान में रखना जरूरी है।
सूरदास महोत्सव में दोनों वरिष्ठ नृत्यांगनाओं ने युगल नृत्य पेश किया। भरतनाट्यम और कथक नृत्य के अभिनय का अंदाज इस प्रस्तुति में दिखा। इसके लिए सूरदास के पद ‘भूलत हौं कत मीठी बातन‘ का चयन किया गया था। दोनों ही कलाकारों ने सरस अभिनय से मोहक छवि उकेरी। यह प्रस्तुति हिंदुस्तानी संगीत पर आधारित थी, यदि कर्नाटक शैली में भी संगीत होता तो बात और बन जाती है। यह एक कमी खल गई। लेकिन, कुल मिलाकर यह शाम वाकई सार्थक रही।
विदुषी उमा शर्मा की शिष्या कथक नृत्यांगना गीतांजलि शर्मा ने इस समारोह का आयोजन किया था। गीतांजलि शर्मा इससे पहले संत शिरोमणि सूरदास महोत्सव का आयोजन मथुरा में करती रही हैं। उनके आयोजन में उनकी गुरु शामिल होती हैं। गुरु के मार्ग दर्शन में वह अपना आयोजन करती हैं। यह सराहनीय है।