#आज के कलाकार
नृत्य संरचना-पधारो म्हारे देश जी! की प्रस्तुति
@शशिप्रभा तिवारी
बीते दिनों लोकसभा का 96 वां स्थापना दिवस मनाया गया। इस अवसर पर बालयोगी सभागार में लोकसभा कर्मचारी संघ की ओर से समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह के सह आयोजकों में कथक धरोहर और गांधी मंडेला फाउंडेशन शामिल थे। इस आयोजन में नृत्य परिकल्पना ‘पधारो म्हारे देश‘ पेश किया गया। इसकी नृत्य संरचना कथक नर्तक सदानंद विश्वास ने की थी। आलेख शशिप्रभा तिवारी की थी।
समारोह के मुख्य अतिथि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि अपने अब तक के कार्यकाल में मैंने सचिवालय की कार्य प्रणाली को बहुत करीब से देखा है। लोकसभा कर्मचारियों के समर्थन और सहयोग से देर रात तक बैठकर भी सभा का कार्य सुचारू रूप से संचालित किया गया है। आशा है कि आगे भी सभी अधिकारी और कर्मचारीगण इस संस्था को ईमानदारी, समर्पण और कड़ी मेहनत का जीवंत उदाहरण बनाने के लिए अपने निष्ठावान प्रयास जारी रखेंगें।
नृत्य परिकल्पना पधारो म्हारे देश की शुरूआत राजस्थान के प्रसिद्ध मांड पधारो म्हारे देश से हुई। इस लोकगीत पर कथक नर्तक सदानंद विश्वास ने स्वागत नृत्य किया। इसके बाद पूर्वोŸार के लोक व शास्त्रीय नृत्य की झलक बिहू और मणिपुरी के माध्यम से पेश किया गया। अगले अंश में बंगाल के लोकगीत आमारे मोने मानुषेर संग पर कलाकारों ने एक ओर नृत्य पेश किया, दूसरी ओर पुरूलिया व मयूरभंज छऊ नर्तकों ने भ्रमरी और अंग संचालन के माध्यम से पूर्व भारत की उपस्थिति दर्ज किया।
केरल के संदर्भ को कथकलि नृत्य के जरिए प्रेषित किया गया। वहीं, उत्तर भारत की संस्कृति को कथक नृत्त में पिरोया गया। कथक की तिहाइयों, चक्रदार तिहाइयों, लड़ी, तराने और रचना डिमिक डिमिक डमरू बाजे को नृत्य में पेश किया गया। इसके अलावा, कथक नर्तक सदानंद ने गजल ‘कभी बन संवर के जो आ गए‘ में अभिनय को दर्शाया। उन्होंने अपने माध्यम से लखनऊ घराने की नजाकत, सलामी की गत और कई तिहाइयों का प्रयोग किया। हालाकि, वह जयपुर घराने के पंडित राजेंद्र गंगानी के शिष्य हैं। पर कथक के कलाकारों की यह आपसदारी अच्छी है। एक दूसरे की चीजों को अपने नृत्य में शामिल करना एक अच्छी पहल मानी जा सकती है।
पधारो म्हारे दश नृत्य संरचना के अगले अंश में देश के पश्चिमी अंचल को साकार किया गया। इसके लिए गुजरात के डांडिया रास, पंजाब के भांगड़ा और राजस्थान के सपेरा लोकनृत्य को पेश किया गया। डंाडिया रास गीत रंग तार मा चंद्रमा पर नृत्यांगनाओं ने मोहक नृत्य पेश किया। असी फौजी पुत कहांवों पंजाबी लोकगीत पर आधारित भांगड़ा लोकनृत्य बेहद मनोरंजक था। सपेरा नृत्य गीत ‘बाजा बाज गयो डंुगर में‘ पर आधारित था। अंत में भरतनाट्यम नृत्य के जरिए दक्षिण भारत के रंग को नृत्य रचना में समाहित किया गया। तिल्लाना शैली में भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति बेहद संक्षिप्त थी। अंत में नृत्य की पराकाष्ठा वंदे मातरम् और बजे सरगम गूंजे देश राग के माध्यम से सभी कलाकारों ने एक साथ पेश किया।
कथक नर्तक सदानंद विश्वास समय समय पर विभिन्न नृत्य रचनाओं को अपनी कोरियोग्राफी में पिरोकर पेश करते रहे हैं। आज कल यह एक प्रचलन बन गया है। बड़ी संख्या में शास्त्रीय और लोक कलाकारों की सामूहिक प्रस्तुति का। वैसे तो यह एक अच्छी पहल है कि इस तरह के आयोजनों से बड़ी संख्या में कलाकारों को मंच मिलता है। बहरहाल, आयोजकों को शास्त्रीय नृत्य शैली की एकल प्रस्तुतियों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। क्योंकि एकल प्रस्तुतियों में शास्त्रीय नृत्य की शुद्धता को कायम रख पाना कलाकारों के लिए सरल होता है।
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