#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी
गुंजायमान संध्या कवि जयदेव की अष्टपदी से
पिछले दिनों जयदेव उत्सव का आयोजन संचारी फाउंडेशन की ओर से किया गया। यह दो दिवसीय आयोजन एक और दो मई 2025 को था। इंडिया हैबिटैट सेंटर में आयोजित उत्सव में कवि जयदेव की अष्टपदी को उड़ीसा की परंपरागत शास्त्रीय संगीत और ओडिसी नृत्य के माध्यम से पेश किया गया। इस उत्सव की आयोजिका ओडिसी नृत्यांगना कविता द्विवेदी वर्षों से यह आयोजन राजधानी में करती रही हैं। शुरुआत में यह तीन दिनों का आयोजन हुआ करता था। इसमें जयदेव के साहित्य और संगीत पर विशद चर्चा विद्वानों और कलाकारों द्वारा किया जाता था। लेकिन, कुछ आर्थिक दिक्कतों के कारण वह कई वर्षों से इसका आयोजन नहीं कर पाईं। इस वर्ष एक बार से जयदेव उत्सव का आयोजन कर नई पहल की है। उनके इस पहल का कलाकारों ने खुले मन से स्वागत किया। यह एक शुभ संकेत माना जा सकता है।
जयदेव उत्सव की पहली संध्या में ओडिसा की गायिका संगीता ने कई अष्टपदियों को विभिन्न रागों में पिरोया। उन्होंने राग गुणकरि या शुद्ध धनाश्री में अष्टपदी ‘सखि हे केसिए मथनमुदारम्‘, राग देसवरणी व रूपक ताल में अष्टपदी ‘तव विरहे वनमाली‘ और राग रामकिरि में अष्टपदी चंदन चर्चित नील कलेवर को पेश किया। उन्होंने खुली और मधुर आवाज में अष्टपदियों को गाकर एक सुंदर शुरूआत की। दूसरी पेशकश ओडिसी नृत्यांगना कविता द्विवेदी की थी। उन्होंने अभिनय से पूर्ण नृत्य पेश किया। कविता और कृष्ण के विरह भावों को बहुत परिपक्वता के साथ किया। इसके लिए अष्टपदी ‘निंदति चंदनम इंदु किरणम निंदति देव अधीरं‘ का चयन किया गया था। यह राग सिंधु काफी और एक ताली में निबद्ध था। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना चित्रा सुकुमारन ने राधिका के भावों को विवेचित किया। उन्होंने अष्टपदी ‘सखी हे केसिहे मथनमुदारम् भावों को दर्शाया। यह राग शुद्ध सारंग में निबद्ध थी।
कथक नृत्यांगना संगीता चटर्जी को अष्टपदी पर नृत्य करते देखना मोहक लगा। कथक नृत्य में इस तरह के प्रयास आजकल युवा कलाकारों में कम ही देखने को मिलता है। इस नजरिए से कथक नृत्यांगना ने बैठकी भाव के जरिए राधा और कृष्ण के भावों को निरूपित किया। अष्टपदी ‘ललित लवंग लता परिशीलन‘ में बसंत ऋतु में राधा और कृष्ण में मधुरिम मिलन के भावों को पूरी कोमलता और मधुरता से संगीता ने दर्शाया। यह अष्टपदी राग बसंत और तीन ताल में निबद्ध थी। वहीं दूसरी अष्टपदी ‘कुरु यदुनंदन चंदन शिशिरे‘ थी।
जयदेव उत्सव की दूसरी संध्या में गायक प्रशांत बेहरा ने अष्टपदियों को सुरों में पिरोया। उन्होंने गायन की शुरुआत जगन्नाथ अष्टकम से किया। उन्होंने राग भैरवी और जती ताल में अष्टपदी ‘याहि माधव याहि केशव‘ को गाया। दूसरी अष्टपदी राम मिश्र खमाज और एक ताली में निबद्ध थी। ‘श्रीता कमला कुचा मंडला हरि‘ को मधुरता से गाया। गायक प्रशांत बेहरा लगभग बीस वर्षों से राजधानी दिल्ली में ओडिसी नृत्यांगनाओं के साथ संगत करते रहे हैं। अब यह कला जगत में एक पहचाना चेहरा बन गया है। उनकी गायकी मधुर और अदायगीपूर्ण है।
भरतनाट्यम नृत्यांगना रागिनी चंद्रशेखर ने मोहक नृत्य पेश किया। उन्होंने कमाल का नृत्य पेश किया। उनके नृत्य में आंगिक और मुखाभिनय के साथ-साथ आंखों के भावों का सुंदर समायोजन दिखा। उन्होंने कम प्रचलित अष्टपदियों का चयन किया था। पहली अष्टपदी ‘किम करिस्यति किम दृश्यति‘ थी। यह राग हमीर कल्याणी और आदि ताल में निबद्ध थी। दूसरी अष्टपदी ‘किशलय शयनम तले कुरु कमिनी‘ थी। यह राग द्विजावंती और मिश्र चापू में निबद्ध थी। राधा और कृष्ण के एक एक भाव को रागिनी ने बहुत बारीकियों से पेशकर दर्शकों को बांध लिया।
जयदेव उत्सव का समापन ओडिसी नृत्यांगना ज्योति श्रीवास्तव के नृत्य से हुआ। उन्होंने देवप्रसाद शैली का अनुसरण करते हुए, अभिनय से पगा नृत्य पेश किया। उनकी पहली पेशकश प्रोषितभर्तृका नायिका थी। उनका नृत्य अष्टपदी-‘विहरति वने राधा साधारणप्रणये‘ पर आधारित थी। यह रचना राग मिश्र काफी और जती ताल में निबद्ध थी। दूसरी प्रस्तुति अष्टपदी ‘रती सुख सारे गतम् अभिसारे‘ थी। इसमें वासकसज्जा नायिका के भावों को दर्शाया।
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