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Wednesday, January 8, 2025

#आज के कलाकार ----पांचवें सूरदास महोत्सव में नृत्य प्रस्तुतियां @शशिप्रभा तिवारी

                                                                   #आज के कलाकार

पांचवें सूरदास महोत्सव में नृत्य प्रस्तुतियां

@शशिप्रभा तिवारी


बीते तीस दिसंबर 2024 को गीतांजलि इंटरनेशनल फाउंडेशन की ओर से पांचवी संत शिरोमणि सूरदास महोत्सव का आयोजन किया गया। यह महोत्सव दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित था। समारोह में विदुषी रंजना गौहर, विदुषी कमलिनी व नलिनी, गुरु गीतांजलि लाल, विदुषी उमा डोगरा, जयप्रभा मेनन, विदुषी भारती शिवाजी जैसे विद्वतजन उपस्थित थे। इसके अलावा, बड़ी संख्या में कलाकार भी कार्यक्रम के साक्षी बने। इससे इस समारोह की गरिमा और बढ़ गई।

सूरदास समारोह का आरंभ विदुषी उमा डोगरा की शिष्याओं की प्रस्तुति से हुआ। शिष्याएं दीक्षा रावत और कार्तिका उन्नीकृष्णन ने युगल कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने पंद्रह मात्रा की पंचम सवारी ताल पर आधारित शुद्ध नृŸा में अपने नृत्य को पिरोया। उपज में लयकारी का अंदाज पैर के काम में आकर्षक अंदाज में पेश किया। इसमें पंद्रहवें और आठवें मात्रा पर उनका सम पर आने का ढंग लासानी था। वहीं खाली मात्राओं को दर्शाना भी सहज था। रूख्सार और घूंघट की गतों के साथ साथ तिहाइयों और परणों का प्रयोग लासानी था। उनका आहार्य और आभूषणों को धारण करने में पारंपरिक छवि दिखी, जो आजकल कथक कलाकारों में कम ही दिखता है। यह श्रेय उनकी गुरु उमा डोगरा को जाता है कि उन्होंने यह सलीका शिष्याओं में कायम रखा है। शास्त्रीय नृत्य में आहार्य का विशेष महत्व और गरिमा है। इसे युवा कलाकारों को ध्यान में रखना जरूरी है।



इस समारोह की मुख्य आकर्षण भरतनाट्यम नृत्यांगना विदुषी रमा वैद्यनाथन का नृत्य रहा। उनके साथ संगत कलाकारों में सुधा रघुरामन, जी रघुरामन, वरूण राजशेखर और मनोहर बालचंद्रन शामिल थे। उन्होंने वरणम के जरिए मधुर भक्ति को नायिका के भावों में दर्शाया। यह श्यामा शास्त्री की रचना ‘स्वामी रम्यभावे‘ पर आधारित थी। यह राग आनंद भैरवी और चैदह मात्रा की अट ताल में निबद्ध था। कांचिपुरम के मुख्य देवता वरदराजन की शोभा यात्रा के प्रति नायिका के विभिन्न अवस्थाओं के भावों को नृत्यांगना रमा ने चित्रित किया। उन्होंने हस्तमुद्राओं, भंगिमाओं, विशेषकर अंगुलियों का बहुत ही मनोरम प्रयोग किया। संचारी
भाव में गजब की परिपक्वता और निमग्नता दिखी। एक ओर गायिका सुधा रघुरामन का गायन ओजपूर्ण था, दूसरी ओर नृत्यांगना रमा वैद्यनाथन का अभिनय प्रवाहमान बन पड़ा। अपनी पूरी प्रस्तुति के दौरान उन्होंने दर्शकों को बांधे रखा। यह शास्त्रीय नृत्य की पहली शर्त होती है कि कलाकार तादात्म्य स्थापित कर लें। इसमें दोनों ही कलाकारों को महारत हासिल है।



वरिष्ठ कथक नृत्यांगना विदुषी रानी खानम ने मोहक कथक नृत्य पेश किया। उन्होंने सूरदास के पद ‘सुंदर बदन सुखद सदन‘ से नृत्य आरंभ किया। इसमें श्रीकृष्ण की स्तुति थी। अगले अंश में तीन ताल में उन्होंने शुद्ध नृŸा पेश किया। इसमें उपज, छूट की तिहाई, रेला, पंडित बिरजू महाराज की रचना में शिकार के क्रम में तीर चलाने का अंदाज, नाव की गत, सवाल-जवाब का अंदाज शामिल था। उनके साथ प्रांशु चतुरलाल, जयवर्धन दधीच, नासिर खान और निशा केसरी ने संगत किया।

सूरदास महोत्सव में दोनों वरिष्ठ नृत्यांगनाओं ने युगल नृत्य पेश किया। भरतनाट्यम और कथक नृत्य के अभिनय का अंदाज इस प्रस्तुति में दिखा। इसके लिए सूरदास के पद ‘भूलत हौं कत मीठी बातन‘ का चयन किया गया था। दोनों ही कलाकारों ने सरस अभिनय से मोहक छवि उकेरी। यह प्रस्तुति हिंदुस्तानी संगीत पर आधारित थी, यदि कर्नाटक शैली में भी संगीत होता तो बात और बन जाती है। यह एक कमी खल गई। लेकिन, कुल मिलाकर यह शाम वाकई सार्थक रही।


विदुषी उमा शर्मा की शिष्या कथक नृत्यांगना गीतांजलि शर्मा ने इस समारोह का आयोजन किया था। गीतांजलि शर्मा इससे पहले संत शिरोमणि सूरदास महोत्सव का आयोजन मथुरा में करती रही हैं। उनके आयोजन में उनकी गुरु शामिल होती हैं। गुरु के मार्ग दर्शन में वह अपना आयोजन करती हैं। यह सराहनीय है।

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