देखो आज कैसी
हवाएँ ठंडी बह रही हैं
मन के कदम्ब की डाली
हिलती है
न जाने क्यों ?
कान्हा, अब तुम कदम्ब तले नहीं आते
मैं तो बावली बन
यमुना के तट और मधुबन में फिरती हूँ
आओ जरा चुपके से
जी-भर के निहार लूँ , तुम भी चुप रहना
मैं खामोश रहूंगी
तुम बांसुरी की टेर देना मन भर जाएगा
क्योंकि तब मयूर नाचने लगेंगे
और मधुबन सुरों से सुवासित हो जाएगा
हवाएँ ठंडी बह रही हैं
मन के कदम्ब की डाली
हिलती है
न जाने क्यों ?
कान्हा, अब तुम कदम्ब तले नहीं आते
मैं तो बावली बन
यमुना के तट और मधुबन में फिरती हूँ
आओ जरा चुपके से
जी-भर के निहार लूँ , तुम भी चुप रहना
मैं खामोश रहूंगी
तुम बांसुरी की टेर देना मन भर जाएगा
क्योंकि तब मयूर नाचने लगेंगे
और मधुबन सुरों से सुवासित हो जाएगा
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