एक हल्की-सी
नरम चादर यादों की
मैं तुम्हारे सिरहाने तान आई हूँ
मेरी बंद मुठियों में
तुम्हारे आँखों की
नरमाई समाई है
जब मन अनमना-सा होता है
मुट्ठी खोल
तुम्हारी पुतलियों में
अपनी अक्स को निहारती हूँ
कुछ-कुछ बादल की
रुई-जैसी अनुभूति मन
तुम्हारे आस-पास
छा जाने को आतुर
पता नहीं
कब गुलाबी हो
तुम्हारी सांसों की खुशबू से
महक उठता है
देखना जब आँखे खोलो
उसी खुशबू से
तुम्हारी सांसें महकें
तब मुझे याद कर
हल्के-से मुस्कुराना
ताकि सुबह-सुबह बन जाए सुनहरी
नरम चादर यादों की
मैं तुम्हारे सिरहाने तान आई हूँ
मेरी बंद मुठियों में
तुम्हारे आँखों की
नरमाई समाई है
जब मन अनमना-सा होता है
मुट्ठी खोल
तुम्हारी पुतलियों में
अपनी अक्स को निहारती हूँ
कुछ-कुछ बादल की
रुई-जैसी अनुभूति मन
तुम्हारे आस-पास
छा जाने को आतुर
पता नहीं
कब गुलाबी हो
तुम्हारी सांसों की खुशबू से
महक उठता है
देखना जब आँखे खोलो
उसी खुशबू से
तुम्हारी सांसें महकें
तब मुझे याद कर
हल्के-से मुस्कुराना
ताकि सुबह-सुबह बन जाए सुनहरी
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