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Thursday, June 27, 2024

#आज के कलाकार-शशिप्रभा तिवारी --संगीत की अनवरत यात्रा@पंडित दुर्जय भौमिक

 #आज के कलाकार-शशिप्रभा तिवारी

                                                       

                                                        संगीत की अनवरत यात्रा
                                                         पंडित दुर्जय भौमिक

पंडित दुर्जय भौमिक के पहले गुरू बनारस घराने के पंडित दुलाल नट्टा थे। उसके बाद, उन्होंने पंडित वी मालवीय से वादन सीखा। दुर्जय भौमिक आकाशवाणी और दूरदर्शन के ए-ग्रेड के कलाकार हैं। वह आईसीसीआर के एम्पैन्ल्ड कलाकार हैं। उन्हें शंकर लाल संगीत समारोह, तानसेन संगीत समारोह, ताज महोत्सव, मैहर उत्सव जैसे समारोह में शिरकत करने का अवसर मिल चुका है। उन्हें वर्ष-2022 में न्यु एज तबला माइस्त्रो अवार्ड प्रदान किया गया। यह इंडो अफी्रकन चैम्बर आॅफ काॅमर्स ने दिया। इसके अलावा, उन्हें संगीत साधक सम्मान, संगीत सहोदर सम्मान, सप्तऋषि लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड आदि सम्मान मिल चुके हैं। इनदिनों वह तालयोगी पंडित सुरेश तलवरकर के सानिध्य में तबले की बारीकियो को सीख रहे हैं। साथ ही, सिखा भी रहे हैं। 

पंडित सुरेश तलवरकर जी के सानिध्य में आप कैसे आए?

दुर्जय भौमिक-दरअसल, गुरु जी के सानिध्य में आने के बाद तबले के संदर्भ में नए ज्ञान की प्राप्ति हुई है। उनके अनुभवी नजर से ताल को देखना एक अलग ही नजरिया विकसित हो रहा है। हम कलाकार धीरे-धीरे सीखते हैं और आगे बढ़ते हैं। हमें अवसर और रास्ते का पहचानने की कोशिश करनी पड़ती है। गुरु जी के पास जब सीखते और समझते हैं, तब लगता है कि अभी तो हमारी यात्रा शुरू ही हुई है। आगे लंबा सफर तय करना शेष है। संगीत में एक मुकाम हासिल करने के बाद भी सफर जारी रहता है। और इसके लिए कलाकार को निरंतर प्रयास जारी रखना पड़ता है।

काॅलेज के दिनों में कोलकाता में अक्सर गुरु जी को सुनता था। उस समय मैं मन में सोचता था कि कभी न कभी गुरु जी से सीखना है। उन्हें दिल्ली में शंकरलाल संगीत समारोह में करीब से मिलने का मौका मिला। मैं बहुत हिम्मत जुटाकर उनसे निवेदन किया कि मैं आपसे सीखना चाहता हूं। तब उन्होंने कहा कि तुम मुम्बई आ जाओ। उन्होंने मार्च 1999 में बुलाया था। पर रेल का टिकट नहीं मिला। सो मैं पश्चिम एक्सप्रेस के चालू डिब्बे में बैठकर, उनके पास पहंुच गया। पहली बार उनके पास एक सप्ताह रहा। उस दौरान पहले उन्होंने मुझसे तबला बजवाया। उसके बाद मुझे समझाया और धीरे-धीरे सीखने का दौर फिर से शुरू हुआ। 

                                                   

तबला बजाना और उसके मर्म को समझकर बजाना क्या है?

दुर्जय भौमिक-मुझे याद आता है कि पहली बैठक में उन्होंने कायदा सीखाते हुए, कहा कि एक कायदा ठीक से बजा लोगे तो समझ लेना कि आगे कुछ और सीख पाओगे। सुबह नौ बजे से रात को आठ बजे तक सिर्फ तबला और संगीत की बातें, चर्चा और सीखने का सिलसिला चलता रहता था। एक-एक ताल को महीनों तक सीखना और रियाज करना। यह हमारा ध्येय होता था। 

मुझे लगता है कि गुरु जी का सानिध्य मेरे जीवन की परम प्राप्ति है। उनसे अद्भुत ज्ञान दर्शन मिला है। तबला सिखाते हुए, बातचीत में संगीत का अनमोल दर्शन मिला है। दरअसल, इंसान को अंदर यानी मन से साफ होना चाहिए। तभी आपके बजाने में एक-एक शब्द शुद्धता से उतर पाता है। क्योंकि आपका संगीत में दिल-दिमाग का संयोग होता है। ऐसा संगीत ही आध्यात्मिक संगीत और रसमय संगीत कहा जाता है। तैयारी और रियाज से बजा लेना अलग बात है और ताल को समझकर, उसके भावों को अनुभूति कर बजाना अलग बात है। यह संगीत के मर्म को छूने जैसा ही है। बहुत नाजुक और बहुत कोमल! इसलिए नीचे की लय में बजाना मुश्किल होता है, वह बजाना तो उम्र की परिपक्वता और अनुभव से ही आता है। यह जन्मों की तपस्या से ही संभव है।  

आपके प्रोफेशनल करियर की शुरूआत कैसे हुई?

दुर्जय भौमिक-मेरे करियर का सबसे पहला बड़ा मंच संकटमोचन संगीत समारोह था। इस समारोह में वर्ष 2002 में मुझे पंडित विश्वजीत राय जी के साथ बजाने का अवसर मिला। इसके बाद, पंजाब के पटियाला और कपूरथला के हैरिटेज फेस्टीवल में पंडित राजन एवं साजन मिश्र के साथ बजाया। फिर, बुद्धादित्य जी के साथ वर्ष 2005 में संगत करने का मौका मिला। यह तीन-चार बड़े आयोजनों में बजाकर मेरे अंदर आत्म विश्वास पैदा हुआ कि मैं बड़े-बड़े कलाकारों के साथ संगत कर सकता हूं। 

वास्तव में, प्रतिष्ठित कलाकारों के साथ बजाते हुए, मुझे रोज कुछ नया सीखने का अवसर मिलता था और आज भी मिलता है। मुझे कमानी आॅडिटोरियम की वह शाम कभी नहीं भूलता, फेस्टीवल म्यूजिक फाॅर हारमनी आयोजित था। इस समारोह में मुझे पंडित राजन व साजन मिश्र के साथ संगत करने का अवसर मिला था। मैं इतने बड़े कार्यक्रम और कमानी के नाम से अंदर से थोड़ा घबराया हुआ था। लेकिन, पंडित जी ने बहुत प्यार से मुझसे बजवाया। यह उनकी महानता थी। साथ ही, मुझे पंडित भजन सोपोरी के साथ यूरोप की यात्रा करने का अवसर मिला। मैं वर्ष 2007 से लगातार तीन वर्षों तक उनके साथ जाता है। उस दौरान आॅस्ट्रिया में मेरी कुछ शिष्य भी बन गए थे। वो लोग तबले की ताल और आवाज से बहुत प्रभावित हुए। अपने ड्रम्स को छोड़कर वह तबला वादन मुझसे सीखने लगे। वह सिलसिला आज भी जारी है। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि भारत की संस्कृति बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली है। सांस्कृतिक आदान-प्रदान से संस्कृति का विस्तार होता है।

आपने भविष्य को लेकर क्या सपना संजोया है? 

दुर्जय भौमिक-मेरा सपना है कि मैं एक डिजिटल आॅडियो-विजुअल लाइब्रेरी बनाऊं। बड़े कलाकारों का डिजिटल कलेक्शन हो। इसमें कलाकार, उनके द्वारा गाया या बजाया गया राग, बंदिश, ताल, सबका विस्तार से वर्णन हो। शहर और महानगर में युवाओं के लिए सीखने की सुविधा है। लेकिन, गांव और कस्बों में प्रतिभावान बच्चों को अच्छे गुरु से सीखने का अवसर कम मिलता है या नहीं मिल पाता है। मेरी कोशिश होगी कि आने वाले समय में मैं उन बच्चों को बड़े कलाकारों से सीखने का अवसर मुहैया करवा सकूं। यह मेरा सपना है। बहुत से बच्चे कलाकार नहीं बन पाते क्योंकि करियर की अनिश्चितता रहती है। उनके माता-पिता को समझाने का प्रयास करूंगा और उन्हें वित्तीय सहायता छात्रवृत्तियां प्रदान करूं ताकि उन्हें प्रोत्साहन मिल सके।








 





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