#आज के कलाकार-शशिप्रभा तिवारी
भारत की समृद्ध संस्कृति प्रभावित रहा हूं
@विनोद केविन बचन
ओडिसी नृत्य गुरु रंजना गौहर के पास इनदिनों विनोद केविन बचन ओडिशी नृत्य सीख रहे हैं। उनके पिता निजी कंपनी में नौकरी करते हैं और मां बिजनेस लेडी हैं। केविन वेम्पति चिन्ना सत्यम के एक शिष्य से कुचिपुडी नृत्य सीख रहे थे। उन्हीं दिनों उन्हें ओडिसी नृत्यंागना संगीता दाश का नृत्य नवरस देखा था। वह उन्हें बहुत अनूठा और अद्भुत लगा। इसलिए वह नृत्य सीखने भारत आ गए। उन्हें संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां सम्मान से सम्मानित किया गया है।
आप भारत कैसे आए?
केविन वचन-शुरूआत में त्रिनिदाद में ही रहकर सीखना चाहता था। पर वहां जो टीचर थे वह लड़कों को ओडिसी सिखाने में दिलचस्पी नहीं लेेते थे, सो मैं कलाक्षेत्र के कुछ दोस्तों के साथ भारत आ गया। भुवनेश्वर में लगभग साढ़े तीन साल रहा। वहां मैं विŸाीय संकट और भावनात्मक अकेलेपन से जूझता रहा था। जापानी डांसर इको शिनोहारा भी मेरी तरह परेशान थी। संयोगवश, मैं दिल्ली आया और यहां मेरी मुलाकात रंजना जी से हुई। शुरू में ‘उत्सव‘ यानि गुरु जी की डांस एकेडमी में डांस करते हुए, थोड़ी झिझक होती थी। शर्म भी आती थी क्योंकि, तीन साल तक भुवनेश्वर में एक स्कूल से दूसरे स्कूल जाता रहा पर कुछ सीख नहीं पाया था। देर से ही सही मुझे समझ में आया है कि इच्छा और लक्ष्य जब एक हो जाते हैं तो कड़ी मेहनत से उसको प्राप्त किया जा सकता है।
अपनी वर्तमान गुरु रंजना गौहर जी से आपने क्या सीखा?
केविन वचन-मैं वहां सीखकर संतुष्ट नहीं हो पाया था। इसी दौरान वर्ष-2014 में गुरु रंजना गौहर से परिचय हुआ और मैं दिल्ली आ गया। उनसे ओडिशी नृत्य सीखने के लिए। पहले ही सप्ताह में ‘चित्रांगदा‘ के रिहर्सल के दौरान गुरु जी के डांस को करीब से देखने का मौका मिला। हमारी गुरु जी बताती हैं कि शास्त्रीय नृत्य या संगीत सीखने की जब आप शुरूआत करते हैं। तब आप कोई उद्देश्य लेकर नहीं सीखते। यह सोचकर सीखना शुरू नहीं करते कि मैं एक दिन बहुत नामी कलाकार बन जाऊंगी।
एक बार गुरु जी ने खुद बताया कि उनकी मां ने तो बस ऐसे ही डांस क्लास ज्वाइन करवा दिया था। वह कहती हैं कि वह अपने गुरू मयाधर राउत की परछाईं से भी सीखने की कोशिश करती थी। उनके पास जब क्लास के लिए जाती तो लगता उनसे ज्यादा-से-ज्यादा सीखूं। सीखने की भूख उनकी गजब की थी। शायद, उनके गुरु जी को यह बात समझ में आती होगी। यह मेरा अनुमान है। कितना सही होगा! पता नहीं। वह अपने क्लास के बाद, जब दूसरे बैच की क्लास चलती तो उसमें भी अपने गुरु जी की इजाजत लेकर बैठने की कोशिश करती ताकि कुछ और देख सकंे और गुरूजी का सानिध्य मिले। उनदिनों गुरूजी भारतीय कला केंद्र में सिखाते थे। वह दस बजे क्लास के लिए चली जाती थी। एक बजे तक क्लास होती। दोपहर में लंच होता। फिर, शाम को चार बजे दोबारा क्लास शुरू होती। उनका तब घर जो जंगपुरा में था, बार-बार आना-जाना संभव नहीं था। सो वह लंच लेकर जाती थी। गुरूजी से कहती कि आप जाईए मैं यहीं कमरे में प्रैक्टिस करूंगी। वह बाहर से ताला लगा कर चले जाते। वह अंदर से बंद करके और बिना घुंघरू के रियाज करती थी, जो गुरू जी सिखाए होते। उसे बड़े-से कमरे में शीशे के सामने खड़े होकर देख-देखकर रियाज करती। उनके अंदर कला को सीखने की भूख थी। वह उन दिनों करीब दस-बारह घंटे का रियाज करतीं थीं।
ओडिसी नृत्य में सीखना क्या आसान है?
केविन वचन-ओडिसी नृत्य बहुत सरल, भावनाओं से भरपूर, स्वाभाविक, इसमें अंगों की गतियां नजाकत से भरी हुई हैं। इससे कलाकार को अपने नृत्य में भावनाओं को अभिव्यक्त करना बहुत सरल और सहज लगता है। मुझे ओडिसी का तकनीकी और अभिनय दोनों ही पक्ष अच्छा लगता है। ओडिसी में पल्लवी में शुद्ध नृत्त पेश किया जाता है। इसमें विलंबित से मध्य और दु्रत लय में नृत्य एक पूरी यात्रा करते हैं। हमारे इस यात्रा में दर्शक भी शामिल होते हैं। अभिनय में साहित्य के साथ शुद्ध नृत्त का प्रयोग इसे एक नया विस्तार देता है।
एक डांसर को शारीरिक पीड़ा भी झेलना होता है। जब नृत्य सीखने की शुरूआत होती है, उस समय मांसपेशियों में दर्द उठना तो स्वाभाविक होता है। हाथ, पैर और पूरे शरीर को एक भंगिमा या गति में रखने से दर्द का अनुभव होता ही है। पर जब सीखनेवाला नृत्य का आनंद चख लेता है, तो वो शारीरिक पीड़ा जाती रहती है। अक्सर देखा जाता है कि कुछ लोग दो-तीन महीने डंास की प्रैक्टिस ही नहीं करतीं। फिर अचानक जब प्रोग्राम आता है तब आठ-दस घंटे का रीहर्सल करती हैं, जो उनके लिए घातक सिद्ध होता है। इसलिए मेरा मानना है कि प्रोफेशनल डंासर को नियम से रोजाना घंटे भर के रियाज के साथ-साथ योगासन और कसरत करना चाहिए। इससे बाॅडी की क्षमता बनी रहती है। क्योंकि एक डांसर का बाॅडी ही उसका इंस्टूमेंट है। वैसे भी डंासर और डांस एक ही सिक्के के पहलू हैं।
आपको भारत में क्या अपनापन मिला?
केविन वचन-मैं परफाॅर्मेंस करना शुरू किया। धीरे-धीरे मुझे लगा कि मुझे एकेडमिक लेवल पर भी कुछ करना चाहिए। मैं अपने देश त्रिनिदाद में बच्चों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य सिखाना चाहता था, लेकिन वहां लोगों में बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाई दी। मैं भारत की समृद्ध संस्कृति और नृत्य शैली से बहुत प्रभावित रहा हूं। मुझे गुरु और यहां के कलाकारों से बहुत अपनापन और प्यार मिला। मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं भारत का नहीं हूं। मेरे पेरेंट्स ने भी यहां रहने की अनुमति दे दिया। अब तो मुझे लगता है कि भारत ही मेरा अपना घर है।
आप नृत्य के अलावा क्या करना चाहते हैं?
केविन वचन-ंजब मैं दीदी के पास शुरू-शुरू में सीखना शुरू किया तो बहुत संकोच लगता था। मैं अपनी बातें उनसे शेयर नहीं कर पाता था। पर वह मुझे अपने साथ सारे दिन रखतीं थीं। उन्होंने बहुत प्यार से उड़िया गीत, अपने गुरु जी, ओडिसी नृत्य सबके बारे में बताया और समझाया। उन्होंने गुरु मायाधर की ओडिसी नृत्य शैली को अपनाया है। मैं भी उन्हीं की शैली में नृत्य करता हंू। धीरे-धीरे अब महसूस करता हूं कि हमारे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। अपने गुरु की परंपरा को निभाने और उसे जारी रखने की जिम्मेदारी है। यह आसान नहीं है। यह सच है कि कलाकार अपनी कला के कारण अमर होते हैं। मैं अपने शोध कार्य के माध्यम से दादा गुरु मायाधर राउत जी के संघर्ष और उनके कार्यों को प्रकाश में लाना चाहता हूं। उनके नृत्य शैली की अद्भुत और अनूठे योगदान को हमें नहीं भूलना चाहिए। हालांकि, गुरु जी के अलावा, किरण सहगल और गीता महालिक उनकी परंपरा को निभा रहीं हैं। फिर भी एक युवा कलाकार के तौर पर इसे मैं अपना कर्तव्य समझता हूं। ईश्वर से प्रार्थना है कि मुझे शक्ति दें ताकि मैं इस कार्य को पूरा कर सकूं।
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