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Friday, January 17, 2020

अनबाउंड बीट्स आॅफ इंडिया समारोह





                                    अनबाउंड बीट्स आॅफ इंडिया समारोह
                                 
                                    शशिप्रभा तिवारी


उत्सव की ओर से आयोजित किया जाने वाला यह सलाना जलसे का कलाकार वर्ष भर इंतजार करते हैं। वरिष्ठ कलाकारों की ओर से युवा कलाकारों को यह अवसर देना, वास्तव में, उन्हें मान्यता प्रदान करने जैसा है। यह प्रयास सराहनीय है।





पिछले दिनों राजधानी में अनबाउंड बीट्स आॅफ इंडिया समारोह का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न नृत्य शैली के युवा कलाकारों ने नृत्य पेश किया। समारोह में ओडिशी, भरतनाट्यम, कुचिपुडी, कथक, मोहिनीअट्टम नृत्य शैली में अंकिता बख्शी, विनोद केविन बचन, मोहित श्रीधर, दीक्षा रावत, आयना मुखर्जी, चित्रा दलवी वारटक और वाणी भल्ला पाहवा ने नृत्य पेश किया। इस समारोह का आयोजन उत्सव की ओर से किया गया।







कुचिपुडी गुरू जयराम राव और वनश्री राव की शिष्या आयना मुखर्जी ने समारोह में शिरकत किया। आयना ने दशावतार पेश किया। यह राग मोहनम और मिश्र चापू ताल में निबद्ध था। इसकी परिकल्पना डाॅ वेम्पति चिन्नासत्यम ने की थी। आयना ने गुरू वनश्री राव की नृत्य रचना चित्रसभा पेश किया। इसमें कैलाश पर्वत पर भृंगी व भूत गणों के साथ नृत्य करते भगवान शिव को उन्होंने नृत्य में दर्शाया। भगवान शिव को भस्म विभूषित, त्रिनेत्रवाले और रूद्राक्ष धारण किए हुए हैं। यह राग गौरी और आदि ताल में निबद्ध थी। 
इसी प्रसंग को भरतनाट्यम नृत्यांगना चित्रा दलवी वारटक ने पेश किया। स्वाति तिरूनाल की यह रचना राग हंसध्वनि और आदि ताल में निबद्धि था। यह डाॅ संध्या पुरेचा की नृत्य रचना थी। रचना ‘शंकर श्री गिरिनाथ प्रभु‘ पर यह आधारित थी। 




इंडिया हैबिटाट सेंटर में आयोजित इस नृत्य समारोह का आरंभ अंकिता बख्शी के ओडिशी नृत्य से हुआ। गुरू रंजना गौहर की शिष्या अंकिता और विनोद केविन बचन ने नृत्य किया। दोनों शिष्या-शिष्य ने नृत्यांगना रंजना गौहर की नृत्य रचनाओं को पेश किया। समारोह की शुरूआत में अंकिता ने मंगलाचरण पेश किया। यह रचना ‘जय जय जननी‘ पर आधारित थी। यह राग प्रथम मंजरी और एक ताली में निबद्ध था। नर्तक विनोद केविन बचन ने अर्धनारीश्वर में शिव-पार्वती के रूप को पेश किया। यह आदि शंकराचार्य की रचना पर आधारित था। राग मालिका और ताल मालिका में इसे पिरोया गया था। उनकी दूसरी प्रस्तुति विश्व रूप दर्शन थी। यह श्रीमद्भगवत गीता के श्लोक पर आधारित थी। यह राग मालकौंस व अहीर भैरवी और एक ताली में निबद्ध थी। इसमें व्यथित अर्जुन के भाव को विनोद केविन ने दर्शाया। यहीं कृष्ण ने उन्हें कर्म का संदेश और विश्व रूप का दर्शन दिया। इन नृत्य रचना की संगीत रचना आचार्य बंकिम सेठी की थी।

मोहिनीअट्टम नृत्य शैली में वाणी भल्ला ने नृत्य पेश किया। गुरू भारती शिवाजी की वरिष्ठ शिष्या वाणी ने शुद्ध नृत्त का अंदाज मुखचालम में पेश किया। विभिन्न ताल अवर्तनों पर अंग, पद और हस्त संचालन उन्होंने पेश किया। यह सोपानम संगीत के राग मालिका-बेगड़, सावेरी व देसखी में पिरोई गई थी। वाणी ने जयदेव की अष्टपदी ‘ललित लवंग लता‘ को नृत्य में पिरोया। यह राग पुरूनीर, बसंत और मध्यमावती में निबद्ध थी। राधा कृष्ण के भावों का यह विवेचन मार्मिक था।

इस समारोह में कथक नृत्य को नृत्यांगना दीक्षा रावत और नर्तक मोहित श्रीधर ने पेश किया। गुरू उमा डोगरा की शिष्या दीक्षा रावत ने धमार ताल में शुद्ध नृत्त पेश किया। इसके अलावा, ठुमरी ‘बाट चलत‘ पर भाव दर्शाया। दीक्षा ने तीन ताल में निबद्ध तराने को भी नृत्य में पिरोया। जबकि, पंडित राजेंद्र गंगानी के शिष्य मोहित श्रीधर ने जयपुर घराने की तकनीकी बारीकियों को नृत्य में पिरोया। उन्होंने तीन ताल में पैरों के काम के जरिए तैयारी और विभिन्न लयकारी को दर्शाया। गोस्वामी तुलसीदास की रचना रूद्राष्टकम में शिव के रूप को उन्होंने चित्रित किया। यह राग रागेश्वरी और बागेश्वरी में निबद्ध था। उन्होंने धमार ताल में पखावज के बोलों पर वीर रस का अंदाज दर्शाया।

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