एक मैं
एक हरे पेड़
बहती नदी
थिर झील
उमड़ते समंदर
इनकी विराटता
प्रवाह
धैर्य
असीमता
मन महसूस कर
सोचता है
हम क्यों नहीं जीते
दूसरों के लिए
दूसरों को अर्पित हो
जीवन का आनंद
प्रतिपल
बहते
रुकते
सम्भलते
तुम भी
इस पल में
अपनी नरम हथेली में
मेरे अँगुलियों को
अपने होने का
अहसास दे जाओ
ताकि अब
फर्क न रह जाए
अपने
और गैर में
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