कैसी अनुभूतिओं के वो क्षण थे
एक दूसरे को जानने को
बिना कुछ कहे सब कह दिया था
अंतस में कहीं एक सूखी धमनी को
तुम्हारे स्पर्श ने
जीवंत कर दिया था
उस पल को आज भी जीती हूँ
तुमसे दूर जाते हुए
उसी स्पर्श की गर्माहट को
मैं महसूस करती रही
पता नहीं
आती-जाती रेल की पटरी
जिन्दगी की कहानी-सी कहती लगती है
वहीँ पर कहानी कभी शुरू होती है
वहीँ बहुत अनकहा रह जाता है
तब हमारा सफ़र भी पूरा नहीं होता
मैं फिर-से निहारती हूँ
गुजरती रेल-पटरी को
वह कहती-सी लगती हैं
तुम्हारी तरह
यह अहसास हर पल नया है
सिर्फ, तुम ऑंखें बंद कर
मुझे देखो तो पलकों में .....
एक दूसरे को जानने को
बिना कुछ कहे सब कह दिया था
अंतस में कहीं एक सूखी धमनी को
तुम्हारे स्पर्श ने
जीवंत कर दिया था
उस पल को आज भी जीती हूँ
तुमसे दूर जाते हुए
उसी स्पर्श की गर्माहट को
मैं महसूस करती रही
पता नहीं
आती-जाती रेल की पटरी
जिन्दगी की कहानी-सी कहती लगती है
वहीँ पर कहानी कभी शुरू होती है
वहीँ बहुत अनकहा रह जाता है
तब हमारा सफ़र भी पूरा नहीं होता
मैं फिर-से निहारती हूँ
गुजरती रेल-पटरी को
वह कहती-सी लगती हैं
तुम्हारी तरह
यह अहसास हर पल नया है
सिर्फ, तुम ऑंखें बंद कर
मुझे देखो तो पलकों में .....
No comments:
Post a Comment