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Tuesday, October 1, 2013

यह लौ बहुत धीरे-धीरे जलती है
हवा का एक झोंका
कब इसे बुझा दे
डरती हूँ मैं
अपनी हथेलियों की  ओट में
छुपा कर रखा है
जानती हूँ मैं
तपन से जल जाएगी  मेरी कोमल हथेली
जानते हो बहुत कुछ बस में नहीं होता
आँख बंद कर जिन्दगी जीना
कौन चाहता होगा भला
पर सूने परकोटे पर
दीया जलाये रखना जिद नहीं
जिन्दगी की सांसों को
भरते रहने का अंदाज़ भर है
इस लौ को तुम इतनी तेज से मत सांसें देना
वर्ना जिन्दगी अँधेरे से भर जाएगी
फिर,गुमनाम से फिरने लगेंगी
मेरी सांसे जिन्दगी को
 तलाशने के खातिर

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