बचपन के बगीचे में
सखियाँ के संग
आम की डालियों का झुला
निम्बू ,आम ,इमली की
कच्ची-पक्की मिठास
घर से छिप-छिपा कर
कुछ करने का संबल
उन्होंने ही दिया
जिनके न अब पतें हैं
न कभी ख़त आतें हैं
सिर्फ यादों की
महीन डोर में
अब वो रिश्ते जिन्दा हैं
याद आता है, जब बुआ आती थी
दादी से फलां-फलां का हाल पूछती थी
मन नहीं मानता तो
सहेलियों के घर उनकी अम्मा-बाबा से मिलती थीं
हमारे तो कालोनी छुटी
सबका साथ ही छुट गया
जो जहाँ के थे लौट गए
फिर, भी मन बात देखता है
बचपन की सहेलियों का
अब न गुट्टे हैं
न पड़ोस का आँगन
न दालान में झूलें
नन्हीं चिड़िया के पाँव में
एक ख़त बांध दी हूँ
शायद वह पहुंचा दे.....
सखियाँ के संग
आम की डालियों का झुला
निम्बू ,आम ,इमली की
कच्ची-पक्की मिठास
घर से छिप-छिपा कर
कुछ करने का संबल
उन्होंने ही दिया
जिनके न अब पतें हैं
न कभी ख़त आतें हैं
सिर्फ यादों की
महीन डोर में
अब वो रिश्ते जिन्दा हैं
याद आता है, जब बुआ आती थी
दादी से फलां-फलां का हाल पूछती थी
मन नहीं मानता तो
सहेलियों के घर उनकी अम्मा-बाबा से मिलती थीं
हमारे तो कालोनी छुटी
सबका साथ ही छुट गया
जो जहाँ के थे लौट गए
फिर, भी मन बात देखता है
बचपन की सहेलियों का
अब न गुट्टे हैं
न पड़ोस का आँगन
न दालान में झूलें
नन्हीं चिड़िया के पाँव में
एक ख़त बांध दी हूँ
शायद वह पहुंचा दे.....
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