मैं चली जा रही थी
उस ओर जहाँ
कोयल कूकती थी
मोर मेघ निहार रहा था
मेरे कानों में
तुम्हारी आवाज़ आई
मैं उधर ही चल दी
बहुत जतन से संजोया सपना
कई संकल्पों की दुनिया
ख्वाहिशों के समंदर में तिरती है मन की नाव
खुद से संवारना
जब यह नाव तुम्हारे गाँव के किनारे रुके
तब फिर से मन की
नई बस्ती बसाएँगे फूलों की खुशबू से तर
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