शिव के अनंत रूप का दर्शन
शशिप्रभा तिवारी
इंडिया हैबिटाट सेंटर में नृत्य समारोह आयोजित था। इस समारोह में रस यूनाइटेड के कलाकारों ने नृत्य रचना त्र्यंबक पेश किया। इस नृत्य की परिकल्पना नृत्यांगना और कोरियोग्राफर वनश्री राव ने किया था। नृत्य में शिरकत करने वाले कलाकारों में शामिल थे-भरतनाट्यम नर्तक एस वासुदेवन, छऊ के कलाकार कुलेश्वर ठाकुर, अर्जुन देव, प्रशांत कालिया और कुचिपुडी नृत्यांगना-वनश्री राव, मौतुश्री मजूमदार, आयना मुखर्जी व शेफाली भारती। प्रस्तुति की बेजोड़ संगीत को कर्नाटक संगीत के गायक के वेकेंटेश्वरन व एस वासुदेवन ने सुसज्जित किया था।
वरिष्ठ कुचिपुडी नृत्यांगना वनश्री राव पौराणिक कथाओं को नृत्य शैलियों में पिरोकर पेश कर रही हैं। उनकी इस पहल में युवा कलाकारों की स्फूर्ति, ऊर्जा और तेजस्विता से मंच का ओज बढ़ जाता है। इस प्रस्तुुति की खासियत है कि इसमें भरतनाट्यम, छऊ और कुचिपुड़ी नृत्य शैलियों का संगम है। जबकि, पाश्र्व संगीत कुचिपुडी नृत्य संगीत होती है।
प्रस्तुति के आरंभ में त्र्यंबकम से हुआ। इसमें शिव के अर्धनारीश्वर, कामेश्वर, पशुपति, आदिरूपों को निरूपित किया गया। यह राग भैरवी, अमृतवर्षिणी, पूर्वी कल्याणी में निबद्ध था। रचना ‘नम नमस्तेषु वपुधराय‘ में शिव के रूप का चित्रण नर्तक वासुदेवन ने किया। यहीं कलाकारांे ने छंद ‘भवं भवं भवानि, शिवं शिवं शिवानी‘ पर शिव व पार्वती के रूपों को दर्शाया। साथ ही, शंकर के डमरू वादन और नृत्य को अपने नृत्य में मोहक अंदाज में पेश किया। सती दाह, महिषासुरमर्दिनी और अर्जुन को पाशुपत अस्त्र प्रदान के प्रसंग को निरूपित किया। धनंजय प्रसंग की इस प्रस्तुति को देखते हुए, महाबलिपुरम के रथ मंदिर में अंकित अर्जुन की तपस्या और शिव के द्वारा उनको पाशुपत अस्त्र प्रदान का दृश्य रूपायित होता प्रतीत हुआ। इस नृत्यांश का समापन रचना ‘शंकर शंभू दीन दयाला‘ पर प्रभावकारी सामूहिक नृत्य से हुआ।
दूसरे अंश में द्वादशज्योर्तिलिंग का प्रतीकात्मक चित्रण था। यह राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध था। शिव त्याग, तपस्या, वात्सल्य, करूणा के मूर्ति हैं। वह स्वयंभू, शाश्वत, चेतन स्वरूप बारह ज्योर्तिलिंग में ज्योति रूप में विराजित हैं। हस्तकों, मुद्राओं और भंगिमाओं के जरिए बहुत संक्षिप्त अंदाज में बारह ज्योर्तिलिंग का निरूपण प्रभावकारी था। वहीं महामृत्यंुजय मंत्र और श्लोक ‘महादेवाय त्र्यंबकाय त्रिपुरांतकाय‘ में मारकंडेय प्रसंग के साथ शिव के अन्य रूपों को कलाकारों ने पेश किया। सभी कलाकारों का आपसी संयोजन, संतुलन और समायोजन संुदर था। यह चुनौतीपूर्ण प्रस्तुति मर्म स्पर्शी थी।
अगली पेशकश देवी महिषासुरमर्दिनी थी। शिव की शक्ति दुर्गा हैं। उन्होंने इसी के मद्देनजर इस प्रसंग को पेश किया। इसके लिए मारकंडेय पुराण के दुर्गासप्तशती के श्लोक, आदि शंकराचार्य की रचना ‘जय जय हे महिषासुरमर्दिनी का चयन किया गया। शुरू में श्लोक ‘कांचि कालि कुंभ लता‘ पर देवी दुर्गा के रूप को दिखाया गया। ‘या देवी सर्वभूतेषु‘ पर देवी के शक्ति को दर्शाया। यहीे दैत्य के साथ देवी के संघर्ष को ‘दुर्गे दुगर्ति नाशिनी देवी‘ छऊ और कुचिपुडी नृत्य शैली में प्रभावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया। देवी चंद्रघंटा और महिषासुर मर्दिनी के रूपों को मनोरंजक अंदाज में प्रदर्शित किया गया। संक्षिप्त रूप में व्यर्थ के विस्तार से बचते हुए, संक्षिप्त रूप में यह प्रस्तुति वास्तव में, सागर को गागर में भरने जैसा था। आगे भी रस यूनाइटेड के कलाकार ऐसे ही प्रयासों से कला का समृद्ध करते रहेंगें ऐसी अपेक्षा है। क्योंकि, ऐसे पहल से कला परंपरा और कलाकार दोनों समृद्ध होते हैं। शायद, यह समय की मांग भी है।
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