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Friday, December 6, 2024

#कोणार्क उत्सव 2024 -शास्त्रीय नृत्य का महाकुंभ कोणार्क उत्सव @शशिप्रभा तिवारी

                                                                   #कोणार्क उत्सव 2024

                                                       शास्त्रीय नृत्य का महाकुंभ कोणार्क उत्सव 

                                                           @शशिप्रभा तिवारी

भारतीय संगीत-नृत्य के लंबे और गहरे अंतर-संबंध हैं। उनको ऐतिहासिक या व्यवहारिक नजरिए से देखना एक सदी के इतिहास के अध्ययन करने जैसा है। हर कलाकार अपनी शिल्प के अघ्र्य से कला के समुद्र में अपना योगदान देता है। कुछ सौभाग्यशाली कलाकारों को समय याद रखता है और कुछ कलाकार काल के गर्त में समाकर धूमिल हो जाते है। कलाएं ही हमारा ऐसा स्वअर्जित लोकतंत्र हैं, जहां उनके प्रभाव में रहने पर दर्शक को अभय की सीख मिलती है। ऐसा ही अहसास हुआ, कोणार्क उत्सव 2024 की संध्याआंे में भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुतियों को देखते हुए।

कोणार्क उत्सव का समापन दिवस यानी पांच दिसंबर को दीक्षा मंजरी और नाट्य वृक्ष के कलाकारों ने शिरकत किया। नाट्य वृक्ष ने भरतनाट्यम शैली में नृत्य संरचना प्रवाहति पेश किया। इसकी परिकल्पना गुरु गीता चंद्रन ने किया था। इस प्रस्तुति में मल्लारी, सखी स्वरम और रास के माध्यम से देवी पार्वती के भावों को विवेचित किया। समय स्थिर नहीं रहता है। यह परिवर्तनशील है। समय और स्थान के परिप्रेक्ष्य में भावों को विवेचित किया गया। 

समारोह की अंतिम संध्या में ओडिसी नृत्य शैली में दीक्षा मंजरी के कलाकारों ने नृत्य पेश किया। इनका निर्देशन वरिष्ठ ओडिसी नृत्यांगना डोना गांगुली ने किया। प्रस्तुत नृत्य की परिकल्पना गुरु केलुचरण महापात्र और गुरु रतीकांत महापात्र की थी। संगीत रचना पंडित भुवनेश्वर मिश्र और देबाशीष सरकार की थी। दीक्षा मंजरी के कलाकारों ने सूर्य वंदना, मंगलाचरण-विष्णु वंदना, सावेरी पल्लवी और दुर्गा प्रस्तुत किया।  

कोणार्क उत्सव की चैथी संध्या में कुचिपुडी नृत्यांगना दीपिका रेड्डी और शिष्याओं ने मोहक नृत्य पेश किया। दीपांजलि कलाकारों की पहली प्रस्तुति कुचिपुडी वंदना थी। इस प्रस्तुति में गणपति के साथ कुचिपुडी गांव के मुख्य देवता भगवान शिव का आह्वान किया गया। गणेश की वंदना ‘जय गणपति वंदे‘ में गणपति, कार्यसिद्धिप्रदायक, शुभम, जगतपिता, करूणाकर रूपों को दर्शाया गया। साथ ही, देवी के त्रिपुरसंुदरी, महालक्ष्मी, परमेश्वरी, जगजननी रूपों को विवेचित किया गया। उनकी दूसरी प्रस्तुति वाग्यकार भक्त रामदासु की रचना ‘थक्कुवेमि मनकु‘ पर आधारित थी। इसमें विष्णु के राम अवतार को प्राथमिकता से चित्रित किया गया। दशावतार को दर्शाते हुए, अंत में राम दरबार का निरूपण मर्मस्पर्शी था। वहीं अगली प्रस्तुति ‘मधुरम मधुरम कस्तूरी तिलकम‘ में कृष्ण की लीलाओं का चित्रण मोहक था। नंद यशोदा के द्वारा पूतना वध, नवनीत चोर, ब्रह्मण्ड दर्शन, कालिया मर्दन, विभिन्न दैत्यों के संहार आदि प्रसंगों को पेश किया गया। भाव भंगिमाओं, आंगिक अभिनय और संचारी भाव के साथ तरंगम की प्रस्तुति में पद संचालन की सामूहिक प्रस्तुति में संतुलन और आपसी तालमेल प्रभावकारी थी। अंतिम प्रस्तुति नृत्य निरंजम राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध थी। इसमें मधुर भक्ति को पेश किया गया। 

चौथी संध्या की अंतिम प्रस्तुति रूद्राक्ष फाउंडेशन के कलाकारों की थी। उन्होंने गुरु बिचित्रनंद स्वाईं की नृत्य रचनाओं को पेश किया। इस प्रस्तुति की संगीत रचना गुरु रामहरि दास व गुरु सृजन चटर्जी ने की थी। ताल पक्ष की परिकल्पना गुरु धनेश्वर स्वाईं ने की थी। उनकी पहली पेशकश हंसकल्याणी पल्लवी थी। यह राग हंसकल्याणी और मŸा ताल में निबद्ध थी। उनकी दूसरी प्रस्तुति गौतम बुद्ध के जीवन चरित्र पर आधारित साक्य मुनि बुद्ध नृत्य रचना थी। इसमें बुद्ध के जन्म, जातक कथाएं, उनके उपदेश-आष्टांगिक मार्ग और धर्म चक्र प्रवर्तन प्रसंगों की व्याख्या की गई थी। कुलमिला कर यह प्रस्तुति अच्छी थी। लेकिन, इसे और बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने की गंुजाईश काफी थी। 

तीसरी संध्या में ओडिसी नृत्य का आगाज महाकवि जयदेव के गीतगोविंद पर आधारित नृत्य से हुआ। यह अष्टपदी श्रित कमल कुच मंडल थी। मधुर पदावली के मधुर संगीत पर श्री विष्णु के रूपों का विवेचन पेश किया गया। नर्तक अर्णव व साथी कलाकारों ने हरि के गरूड़वाहन, राम अवतार प्रसंग के सीता स्वयंवर, रावण वध, दशावतार का विवेचन किया। दूसरी प्रस्तुति हंसध्वनि पल्लवी थी। यह दोनों नृत्य और संगीत का संयोजन गुरु केलुचरण महापात्रा और संगीत पंडित भुवनेश्वर ने किया। 

नृत्य संरचना कृष्ण कथा उनकी अगली प्रस्तुति थी। इसकी परिकल्पना अर्णम बदोपाध्याय और संगीत संरचना हिमांशु शेखर स्वाईं व सौम्या रंजन नायक थी। इसे रचना ‘कृष्ण तुभ्यं नमः‘, श्रीमद्भागवतगीता के श्लोक और श्रीकृष्णाष्टकम् के अंशों को पिरोया गया। कृष्ण के विश्वरूप, चर्तुभुज, गोवर्धनधारी, कालियामर्दन, राम से जुड़े अहिल्या प्रसंगों को नृत्य में चित्रित किया। 


उत्सव की तीसरी संध्या की दूसरी पेशकश मोहिनीअट्टम नृत्य थी। मोहिनीअट्टम नृत्य डाॅ सुनंदा नायर ने गणपति तालम से आरंभ किया। गणपति तालम रचना ‘गजपति ओम गणपति गजेंद्र‘ पर आधारित था। इसमें गणेश के गजपति, गणपति, गणाधिपति, विनायक, सिद्धिविनायक, एकदंत, वक्रतुंड रूपों को दर्शाया गया। उनकी दूसरी प्रस्तुति कात्यायिनी देवी थी। जय जय महिषासुरमर्दिनी व ए गिरिनंदिनी रचनाओं के जरिए देवी दुर्गा के रूपों को चित्रित किया गया। मधुराष्टकम अंतिम प्रस्तुति थी। वल्लभाचार्य की रचना पर कृष्ण के मधुर रूपों को विवेचन प्रस्तुत किया। इन नृत्य संरचनाओं की परिकल्पना डाॅ सुनंदा नायर ने की थी। 

उत्सव की दूसरी संध्या में दो दिसंबर 2024 को मणिपुरी नृत्य शैली की नृत्यांगना प्रीति पटेल और साथी कलाकारों ने नृत्य रचना नाचोम ली पेश किया। इस नृत्य रचना में मणिपुर की संस्कृति में फूलों के महत्व को दर्शाया गया। सुकुमार पुष्प तत्व-भाव, पवित्रता, सौंदर्य, सुगंध, रंग के संवाहक हैं। फूल देवताओं को प्रिय होते हैं। फूल प्रकृति की नैसर्गिक सुष्मा को वहन करते हैं। मणिुपरी संस्कृति में कमल के फूल भक्ति के प्रतीक हैं। इसे संकीर्तन उत्सव में राधा-कृष्ण को अर्पित किया जाता है। बैंगनी आॅर्किड के फूल प्रेम, सौंदर्य और शक्ति के प्रतीक है। इसे भगवान शिव के शौर्य और उत्सर्ग के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए चढ़ाया जाता है। सुनहरा आॅर्किड शुद्धता, धैर्य और दृढ़ता का प्रतीक है। इसे राजा और योद्धाओं को भेंट किया जाता है। श्वेत आॅर्किड आध्यात्मिक पूर्णता, शांति और सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता है। इन्हीं भावों को इस नृत्य रचना में मणिपुरी नृत्यांगना प्रीति पटेल और साथी कलाकारों ने समाहित किया था। इसमें उन्हें एस करूणा देवी और इमोचा सिंह का विशेष सहयोग प्राप्त था। 

नृत्य रचना नाचोम ली के आरंभ और अंत में बाल कलाकार गुनदेबी के गायन ने दर्शकों को विशेष रूप से आकर्षित किया। गुनदेबी ने प्रस्तुति के अंत में ‘मालबाइसु अइदिसु केंदानि‘ गीत को भावपूर्ण अंदाज में गाकर, विश्व को शांति और सद्भाव को संदेश दिया। इस प्रस्तुति के दौरान रचना ‘गजगामिनी चंद्रबदनी प्रेमतरंगिणी हंसिनी‘ व ‘अनंतशायी कोमला श्रीहरि‘ के माध्यम से श्रीकृष्ण और राधा के रास नृत्य का संक्षिप्त चित्रण भी प्रसंगानुकूल था। इसमें मणिपुरी नृत्य शैली के विभिन्न आयाम-पुंगचोलम, चाली, जागोई, अभिनय और हुयन लांगलाॅन को मोहक अंदाज में पेश किया। गोप रास और उद्धत अकान्बा के क्रम में उत्प्लावन व भ्रमरी का प्रयोग प्रभावकारी था। 


वहीं दूसरी प्रस्तुति ओडिसी नृत्य में रंगों के महत्व और प्रभाव का बखान था। शिंजन नृत्यालय के कलाकारों ने वंदे मातरम् प्रस्तुत किया। यह कवि बंकिम चंद्र चटर्जी की अमर रचना वंदे मातरम् पर आधारित थी। इसमें तिरंगे के तीनों रंगों के माध्यम से देश की वीरता, अखंडता, विविधता, एकता और संपन्नता को प्रदर्शित किया गया। वहीं अंतिम प्रस्तुति सूर्य लावण्यम में सूर्य मंदिर की पृष्ठभूमि में सूर्य के विविध रंगों और उसके प्रभाव को निरूपित किया गया। यह संस्कृत विद्वान नित्यानंद मिश्रा की रचना पर आधारित था। उदयमान सूर्य का गुलाबी रंग और अस्ताचल का सूर्य जीवन का संदेश देता है। वहीं बारिश के दौरान सूर्य की किरणें इंद्रधनुष के सात रंगों में बिखर जाती हैं। इन सात रंगों का प्रकृति और मानवीय जीवन पर क्या और कैसा प्रभाव पड़ता यह नृत्य में पेश किया गया। नृत्य रचना सम्मोहक थी। शिंजन नृत्यालय के कलाकारों ने त्रिभंग और चैक का सुंदर प्रयोग नृत्य में किया। वहीं, तारा पल्लवी जो राग तारा और ताल मालिका में निबद्ध थी। इसमें विविध चाली भेद और गतियों से मोहक छवियां उकेरी गईं। यह प्रस्तुति जानदार रही। इन प्रस्तुतियों की संगीत हिमांशु स्वाईं, संगीता पंडा, गुरु धनेश्वर स्वाईं और लक्ष्मीकांत पालित ने तैयार किया था। नृत्य परिकल्पना आलोका कानूनगो की थी। 

समारोह की पहली संध्या का उद्घाटन नव निर्वाचित मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और उपमुख्यमंत्री पार्वती परीडा ने किया। कोणार्क उत्सव का आरंभ उत्कल संगीत महाविद्यालय के कलाकारों की प्रस्तुति से हुआ। इस संगीत महाविद्यालय की स्थापना वर्ष 1964 में हुई थी। यहां ओडिसी नृत्य और संगीत की शिक्षा दी जाती है। यहां के विद्यार्थियों ने अपने मोहक नृत्य प्रस्तुति से उत्सव का शुभ आरंभ किया। उन्होंने उड़ीसा की पावन भूमि के मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ जी हैं। उन्हीं की वंदना में पहली प्रस्तंुति श्री जगन्नाथ अष्टकम थी। यह आदि शंकराचार्य रचित श्री जगन्नाथ अष्टकम ‘कदाचित्कालिंदीतटविपिनसंगीतकरवो‘ पर आधारित थी। इसमें पुरी की प्रसिद्ध रथ यात्रा प्रसंग का चित्रण परंपरागत धुन में प्रस्तुति लासानी बन पड़ी। भगवान जगन्नाथ को दयासिंधु, जगतधारी, प्रमथपति, परब्रह्म के रूप में निरूपित करना मोहक था। 


उत्कल संगीत महाविद्यालय के कलाकारों की दूसरी प्रस्तुति भावरंग थी। यह परंपरागत घन वाद्यों की धुनों के साथ श्रीकृष्णाष्टकम के अंश-‘भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं‘ पर आधारित थी। श्रीकृष्णाष्टकम भी आदिशंकराचार्य की रचना है। इस प्रस्तुति में ओडिसी संगीत और छंदों का मोहक प्रयोग नजर आया। छंद ‘नाचे गिरिधर नागर‘ के माध्यम से कृष्ण और सखाओं की लीलाओं को दर्शाया गया। इसमें कंदुक क्रीडा और कलिया मर्दन प्रसंग का चित्रण प्रभावकारी थी। 

उनकी अगली प्रस्तुति शक्ति थी। इसमें देवी दुर्गा के रौद्र रूपों को विशेषतौर पर निरूपित किया गया। इसमंे जगतपालिनी, घोरा, गौरी, दुर्गा, नीलसंुदरी आदि रूपों को दर्शाया गया। यह रचना ‘नमस्ते चंड मुंड विनाशिनी‘ व ‘नारायणी विष्णु पूज्या‘ पर आधारित थी। इन सभी प्रस्तुतियों का संगीत श्रीनिवास सत्पथी और गुरु बिजय कुमार जेना व बिजय कुमार बारिक ने निर्देशित किया। इस दल में धनेश्वर स्वाईं भी शामिल थे। नृत्य रचना गुरु लिंगराज प्रधान और गुरु पंकज कुमार प्रधान ने किया था। 

पैतींसवे कोणार्क उत्सव की पहली संध्या की दूसरी कलाकार थीं-कथक नृत्य गुरु मालती श्याम और उनकी शिष्याएं। उन्होंने नृत्य रचना-नर्तन मंजरी पेश किया। इसकी शुरूआत में कृष्ण वंदना थी। यह रचना ‘दर्शन दीजै त्रिभुवन पाली‘ पर आधारित थी। दूसरी प्रस्तुति शुद्ध नृŸा थी। यह नौ मात्रा की ताल बसंत थी। इसमें कथक के तकनीकी पक्ष को पेश किया गया। साथ में पंडित बिरजू महाराज की कविŸा-‘जब कृष्ण ताल देत जमुना हिलोर लेत‘ को कथक में पिरोया गया। अगले अंश में नायिका के भावों को पेश किया गया। यह तीन ताल और तिश्र जाति में निबद्ध था। इसमें रचना ‘मनमोहना तोरी मुरलिया‘, ‘चंचल चतुर नार‘ और तराने के जरिए नायिका के भावों को उकेरा गया। कथक की तिहाइयां, चलन, गत और चक्कर का प्रयोग किया गया। अंत में जुगलबंदी की प्रस्तुति थी। इस प्रस्तुति के संगतकारों में शामिल थे, तबले पर योगेश गंगानी, पखावज पर महावीर गंगानी और गायन पर समीउल्लाह खां। 

कोणार्क सूर्य मंदिर, चंद्रभाग समुद्र तट, रामचंडी मंदिर और हरे भरे सुष्मा के इस गोद में स्थित कोणार्क उत्सव स्थल। मुक्ताकाशी मंच के चारों ओर हरियाली, टिमटिमाते बिजली की लड़ियां और साथ में अल्पना से सजी भूमि एक कलात्मक परिदृश्य रचते हैं। इस वातावरण में रंग बिरंगे तोरण, मरदल और तबले जैसे वाद्ययंत्रों के सेल्फी प्वाइंट आमलोगों को आकर्षित करते हैं। फिर ऐसे माहौल में हर शाम विशिष्ट अतिथियों, देशी-विदेशी पर्यटकों और आम लोगों की उपस्थिति हजारों की संख्या में। ऐसे ही माहौल में सुरमई संध्या के समय शास्त्रीय नृत्य के कलाकार अपनी प्रस्तुतियों से रसमय संसार का सृजन करते हैं। इस माहौल में लोक कलाकारों द्वारा लोक वाद्यों की मंगल ध्वनि तीसरे प्रहर से ही गंुजायमान होने लगती है। ऐसा लगता है कि वह दर्शकों को समारोह स्थल पर आने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।

यह उत्सव एक दिसंबर से पांच दिसंबर तक कोणार्क के सूर्य मंदिर के पृष्ठभूमि में आयोजित था। समारोह का आयोजन ओडिसा पर्यटन विकास निगम और ओडिसा संगीत नाटक अकादमी के सहयोग से किया गया था। यह समारोह मुक्ताकाशी मंच पर संपन्न हुआ। समारोह के आयोजन में संगीत नाटक अकादमी की सचिव शकुंतला मलिक की आयोजनकर्ता के रूप में थी। वहीं, अकादमी के भावोग्राही साहू, भवानचरण पंडा, देव प्रसाद महापात्र आदि ने अपना योगदान दिया। उत्सव मंे उद्घोषणा के कार्य को डाॅ मृत्यंुजय महापात्र, शोभना मिश्रा और मानसी मिश्रा ने संपादित किया। पूरे उत्सव को संयोजन करने का दायित्व डाॅ संगीता गोस्वामी ने निभाया। 








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