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अंतरराष्ट्रीय भारतीय नृत्य महोत्सव--महती आयोजन @ शशिप्रभा तिवारी
राजधानी दिल्ली में पिछले सोलह अक्टूबर से धूम मची हुई है. यह मौका- अंतरराष्ट्रीय भारतीय नृत्य महोत्सव है . इसमें देश के अलग अलग प्रान्तों से कलाकार आये हुए हैं. एक तरफ चर्चाओं का जोर है दूसरी तरफ कमानी सभागार में हर शाम कलाकर नृत्य पेश कर रहे है. वहीँ लोक कलाकार अपनी लोकसंगीत से समां बांध रहें हैं. संगीत नाटक अकादमी की लगभग सात दशक की यात्रा को फोटो के माध्यम से ललित कला अकादमी के कला दीर्घा में प्रदर्शित किया गया है .
अंतरराष्ट्रीय भारतीय नृत्य महोत्सव का आयोजन संगीत नाटक अकादमी की ओर से आयोजित किया गया। यह समारोह राजधानी दिल्ली में 16अक्तूबर को शुरू हुआ। एपीजे शिंदे सभागार में समारोह का उद्घाटन केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के उद्धबोधन से हुआ। उन्होंने कहा कि अतीत में भारत की संस्कृति और सनातन परंपरा को मिटाने के प्रयास किए गए लेकिन हमारी संस्कृति लगातार शाश्वत बनी हुई है। भारत गंगा और गीता तथा समृद्ध संस्कृति और लोक परंपराओं का देश है। शास्त्रीय और लोक नृत्य अविश्वसनीय है और संस्कृति को कई आयाम प्रदान करते हैं।
असम राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य ने अपने संबोधन में 18अक्तूबर की संध्या को कमानी सभागार में कहा कि हमारी पहचान हमारी सांस्कृतिक इतिहास है। इन्हें संजोकर रखना चाहिए। यह आयोजन ऐतिहासिक महत्व का है। इसके अंतर्गत वैश्विक सांस्कृतिक संवाद अतीत, वर्तमान और भविष्य के संदर्भ में हो रहा है।
अंतरराष्ट्रीय भारतीय नृत्य महोत्सव के दौरान सांस्कृतिक संध्या का आयोजन कमानी सभागार में किया गया। इसका आरंभ नृत्य नाटिका मीरा से हुआ। यह डॉ सोनल मानसिंह की परिकल्पना थी। भक्ति काल की कवयित्री मीरा के जीवन चरित्र को संक्षिप्त तौर पर पेश किया। नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने मीरा बाई के पदों को गाते हुए, भावों को दर्शाया।
इसे प्रस्तुत करने के लिए मीरा बाई की रचनाओं का चयन किया गया था। इनमें शामिल रचनाएं थीं- म्हारी घूमर नखराली सा,मोरे तो गिरिधर गोपाल ,एरी मैं तो प्रेम दीवानी ,हरि तुम हरो जन की भीर, पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे, मणे चाकर राखो जी आदि। इस प्रस्तुति में द्रौपदी, प्रहलाद, गजराज की कथा को दर्शाया गया। कृष्ण मथुरा से द्वारका चले गए थे। मीरा बाई भी वृंदावन से द्वारका चली जाती हैं। कुछ समय बाद चितौड़ के महाराणा के दूत मीरा से क्षमा मांगने जाते हैं। मीरा द्वारकाधीश मंदिर में अनुमति के लिए अंदर चली गईं। फिर नहीं लौटीं। इसे गीत -अतर माही अवता न जाता मारग के जरिए दिखाया गया। द्वारकाधीश ने अपने आप में समा लिया था।पहली संध्या की दूसरी पेशकश कथकली नृत्य प्रस्तुति थी। महोत्सव की द्वितीय प्रस्तुति केरल कलामंडलम की प्रस्तुति गीतोपदेशम थी।
महोत्सव की दूसरी संध्या 17अक्तूबर को ममता शंकर और साथी कलाकारों ने नृत्य रचना प्रकृति पेश किया। आधुनिक समकालीन नृत्य शैली में प्रकृति के विविध पक्षों को चित्रित किया। हिरण्यागर्भा धरती के अनंत क्षमता का प्रदर्शन प्रभावकारी था। दूसरी पेशकश कुचिपुड़ी नृत्य थी। कलाकार थीं -शांता रत्ती। नृत्यांगना शांता ने तरंगम पेश किया। यह महाराजा स्वाति तिरुनाल की रचना -नाच रही गोपी पर आधारित थी। यह राग धनाश्री और आदि ताल में निबद्ध था। नटुवंगम और मृदंगम के विभिन्न ताल आवर्तन पर मोहक अंग संचालन और पद संचालन पेश किया।
तीसरी प्रस्तुति इंडोनेशिया के कलाकारों की थी । तक्शु आर्ट के कलाकारों ने रामायण के आख्यान को पेश किया। यह संस्था 1990से रामायण और इंडोनेशिया के लोकजीवन को पेश करती रही है। तक्शु आर्ट के कलाकारों ने सीता हरण, जटायु वध, राम रावण युद्ध के प्रसंग का निरुपण किया।
महोत्सव की तीसरी संध्या 18 अक्तूबर में किर्गिस्तान के जिल्दी समूह के कलाकारों ने लोकनृत्य पेश किया। उनकी प्रस्तुति में भारतीय कलाकारों के साथ संयुक्त रूप से भाग लिया। अगली प्रस्तुति मोहिनीअट्टम नृत्य थी। इसे सुनंदा नायर ने पेश किया। उन्होंने राम और शबरी के संवाद को नृत्य में पिरोया। यह रचना -चक्रवाक शबरी पात्र राग मालिका और ताल मालिका पर आधारित थी। उन्होंने सुंदर अभिनय पेश किया। महारास को मणिपुर नृत्यांगनाओं ने पेश किया। इसे जेएनएमडीए के कलाकारों ने पेश किया।
अंतरराष्ट्रीय भारतीय नृत्य महोत्सव की चौथी संध्या19अक्तूबर में कत्थक नृत्य पेश किया। इसे अर्चना जोगलेकर और उनकी शिष्य-शिष्याओं ने पेश किया। उनकी शिष्याओं ने अपने नृत्य का आरंभ नटराज स्तुति से किया। यह पूनम व्यास की रचना ‘जयदेव नटराज कीजिए कृपा आज‘ से किया। इसकी संगीत रचना श्रीधर फड़के ने की थी। इसमें गंगावतरण, समुद्र मंथन और त्रिपुरासुर वध के दृश्य को पेश किया गया। कथक की तिहाइयों, टुकड़े और भाव का सुंदर समावेश था। दूसरी प्रस्तुति गत निकास थी। इसमें सात्विक भाव, मुद्रा और गत भाव के जरिए रूपगर्विता व शंखिनी नायिका के भावों को दर्शाया गया। साथ ही शठ नायक के भाव को पेश किया गया। उनकी अगली पेशकश आसुय था। इसमें दो कलाकारों के अलग-अलग भावों को दर्शाया गया। एक कलाकार असंतुष्ट और इष्र्यालु है, वहीं दूसरा संतुष्ट, सरल है, वह अपनी कला को पूजा और जीवन मानता है। उनके आपसी भावों को शिष्य देखता है। यह रचना ‘सुर सजे संगिनी‘ पर आधारित थी। इसका संगीत शंकर महादेवन ने तैयार किया था। इसे सुर में गायक राहुल देशपांडे और मनीष काले ने पिरोया था।
अगली पेशकश लोकछंद कल्चरल यूनिट के कलाकारों की थी। मैत्रेयी पहाड़ी की नृत्य रचना सर्वेशम भारतम् कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों का संयोजन था। यह पंडित विनय चंद्र मुद्गल की रचना पर आधारित था। यह राग जयजयवंती में पिरोई गई थी। महोत्सव की चौथी थी संध्या का समापन कलाक्षेत्र के कलाकारों की प्रस्तुति से हुआ। भरतनाट्यम नृत्य शैली में कलाकारों ने सीता स्वयंवर प्रसंग को पेश किया। उनकी प्रस्तुति मोहक और प्रभावकारी थी। समारोह के दौरान देवभूमि लोक कला सोसाइटी, बनवारी लाल और साथी, वेदप्रकाश और साथी, प्रीतम सिंह और साथी कलाकारों ने उतराखंड, राजस्थान और हरियाणा की लोक संगीत को पेश किया.
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