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Thursday, July 25, 2024

#आज के कलाकार-शशिप्रभा तिवारी---सीमाओं से परे है-कला @बाॅबी चक्रवर्ती, कुचिपुडी नृत्यांगना



 #आज के कलाकार-शशिप्रभा तिवारी

 सीमाओं से परे है-कला @बाॅबी चक्रवर्ती, कुचिपुडी नृत्यांगना

कुचिपुडी नृत्यांगना बाॅबी चक्रवर्ती मूलतः त्रिपुरा की निवासी हैं। उन्होंने शुरुआत में कथक नृत्य सीखा। फिर, उच्च शिक्षा के दौरान रवींद्रभारती विश्वविद्यालय में कुचिपुडी नृत्य सीखा।  यहां उन्हें डाॅ माधुरी मजूमदार का सानिध्य मिला। इनदिनों वह देश की जानीमानी कुचिपुडी नृत्यांगना गुरु वनश्री राव से नृत्य सीख रही हैं। बाबी चक्रवर्ती उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार से सम्मानित हैं। वह कोलकाता दूरदर्शन की मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। 

बाॅबी चक्रवर्ती के अनुसार शास्त्रीय नृत्य सीखना आसान नहीं है। वह कहती हैं कि कुचिपुडी या कोई भी शास्त्रीय नृत्य सीखना आसान नहीं है। क्योंकि यह तपस्या का मार्ग है। इसमें आपको विशेष समझदारी के साथ पौराणिक साहित्य और भारतीय दर्शन का ज्ञान भी होना चाहिए ताकि आप अपने नृत्य में आध्यात्मिक स्तर को पा सकें और उसे आत्मसात कर सकें। 

वह त्रिपुरा और कोलकाता में नृत्य प्रशिक्षण का कार्य निरंतर करती रहीं हैं। लेकिन खुद को भी निपुण बनाने के लिए अपनी गुरु के संपर्क में निरंतर रहती हैं। बहरहाल, बाॅबी बांग्लादेश के सिलहट शहर में भी कुचिपुडी नृत्य सिखाने जाती हैं। इस संदर्भ में वह बताती हैं कि लाॅक डाउन के दौरान मैं बहुत कठिन दौर से गुजर रही थी। व्यक्तिगत तौर पर परेशान थी। उन्हीं दिनों सिल्हट से एक कलाकार का फोन आया कि वह सात दिन का आॅन लाइन वर्कशाॅप करना चाहते हैं। इस तरह साल में दो या तीन वर्कशाॅप का सिलसिला शुरु हुआ। धीरे-धीरे वहां मेरे बीस शिष्य-शिष्याएं बन गए। उन्होंने इस समूह का नाम बी सी गौतम ग्रुप यानी बाॅबी चक्रवर्ती गौतम गु्रप रखा है। अब तो मैं वहां नियमित जाती हूं। वहां कला के प्रति लोगों का प्रेम और अनुराग देखकर मैं बहुत भावुक हो जाती हूं। वह मुझे भी प्रेरित करता है, कुछ नया करने और सीखने को।  

पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित नृत्य समारोह में संगम नृत्य रचना पेश किया गया। इसमें ओडिसी नृत्यांगना रीना जाना, कुचिपुडी नृत्यांगना बाॅबी चक्रवर्ती और भरतनाट्यम नृत्यांगना रित्विका घोष ने शिरकत किया। इस समारोह के बाद, कुचिपुडी नृत्यांगना बाॅबी चक्रवर्ती से संक्षिप्त बातचीत हुई। 

इंडिया हैबिटैट सेंटर के स्टेन सभागार में नृत्य रचना संगम का आरंभ कृष्ण वंदना से हुआ। यह राग श्री और आदि ताल में निबद्ध था। इसमें विष्णु के दशावतार का चित्रण किया गया। उनकी दूसरी प्रस्तुति संबंध था। यह राग वृंदावनी सारंग और एक ताली में निबद्ध था। इसमें सुर और ताल के माध्यम से वर्षा और घनश्याम को एकाकार होते रूप का निरूपण पेश किया गया। इसे तीनों नृत्यांगनाओं ने संयुक्त रूप से पेश किया। इस समारोह की अंतिम प्रस्तुति रास नृत्य थी। इसे बाॅबी, रीना और रित्विका ने एक साथ पेश किया। यह जयदेव की अष्टपदी ‘चंदन चर्चित नील कलेवर‘ पर आधारित थी। यह राग वंृदावनी सारंग और आदि ताल में निबद्ध था। कर्नाटक संगीत में निबद्ध रचना पर नृत्य की यह प्रस्तुति मनोरम थी। 

                                        

अगले अंश में एकल नृत्य नृत्यांगनाओं ने पेश किया। इस में कुचिपुडी नृत्यांगना बाॅबी चक्रवर्ती ने तरंगम पेश किया। यह राग मोहना और आदि ताल में निबद्ध था। यह नारायण तीर्थ की रचना पर आधारित था। बाॅबी ने विभिन्न ताल आवर्तन में चारी भेद का विशद विवेचन प्रस्तुत किया। गुरु वेम्पति चिन्ना सत्यम की इस नृत्य रचना में दुरूह फुट वर्क का प्रयोग दिखता है। इसे बाॅबी ने बखूबी निभाया। जबकि, ओडिशी नृत्यांगना रीना जाना ने जयदेव की अष्टपदी ‘निंदति चंदनम‘ पर अभिनय पेश किया। यह राग मिश्र काफी और एक ताली में निबद्ध था। इस रचना में राधा का चित्रण विरहोत्कंठिता नायिका के तौर पर किया गया। इसके अलावा, भरतनाट्यम नृत्यांगना रित्विका घोष ने अभिसारिका नायिका के भावों को दर्शाया। उन्होंने महाराजा स्वाति तिरूनाल की लोकप्रिय रचना ‘चलिए कुंजन में‘ का चयन किया था। यह रचना राग वृंदावनी सारंग और आदि ताल में निबद्ध था।


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