#आज के कलाकार -शशिप्रभा तिवारी
जिंदगी के मायने को कला ने बेहतर समझाया-@ सितार वादक पंडित उमाशंकर
सितार वादक पंडित उमाशंकर सिंह सेनिया घराने के पंडित देबू चैधरी के वरिष्ठ शिष्य हैं। उन्हें आशिष चटर्जी से सीखने का मौका मिला। वह अपने गुरु की तरह ही सत्रह तारों के पर्दे वाले सितार को ही बजाते हैं। उन्हें बिहार सरकार की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वह एकल वादन के साथ-साथ कथक नृत्य प्रस्तुति और नाट्य प्रदर्शन के दौरान भी अपने वादन से संगीत को समृद्ध करते रहे हैं। अब तक करीब दो सौ नाट्य मंच प्रस्तुतियों के दौरान वादन कर चुके हैं। उमाशंकर अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर, डेनमार्क, चीन, आॅस्टेªेलिया, ब्रिट्रªेन, जर्मनी, हांगकांग, ताइवान, चीन आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद और आकाशवाणी से भी जुड़े हुए हैं।
सितार वादक पंडित उमा शंकर विविधा समारोह में शिरकत करेंगें। यह समारोह कला मंडली की ओर से त्रिवेणी सभागार में आयोजित है। इस समारोह में नाटककार और संगीत नाटक अकादमी के उपसचिव सुमन कुमार, कथक नृत्यांगना प्रतिभा सिंह तबला वादक पंडित रामकुमार मिश्र, छऊ नर्तक त्रिअन प्रतिबिंब, तालवाद्य कचहरी गगन सिंह बैस और बाल कलाकार लक्ष्या शंकर शिरकत करेंगे। समारोह की संयोजिका कला मंडली की निदेशक डाॅ स्मिता पराशर हैं। यह समारोह 19 जुलाई को आयोजित है।
विविधा के इस आयोजन के क्रम में ही सितार वादक उमाशंकर जी से संक्षिप्त बातचीत हुई। उसी का एक अंश प्रस्तुत है-
‘कला‘ कलाकार को संपूर्ण व्यक्तित्व प्रदान करती है। कलाकार स्वभाव से संवेदनशील और भावुक होते हंै। वह अपने जीवन को शत-प्रतिशत कला के प्रति समर्पित करता है। मुझे लगता है कि भारतीय कलाकार को बनाने वाले गुरू होते हैं। गुरू ही एक कलाकार को कुंभार की तरह गढ़ते हैं। इसलिए आज मैं जो कुछ भी हूं, वह सिर्फ अपने गुरू आशीष चटर्जी और पंडित देबू चैधरी के वजह से हूं।
हमारे यहां कलाएं जीवन की हिस्सा रही हैं। पहले कलाएं सिर्फ रोजी-रोटी कमाने का जरिया नहीं थीं। पर समय के साथ यह जीविकोपार्जन का साधन बना। यह सच है कि मेरे लिए भी यह आय का एक साधन है। मैं अपनी कला से सिर्फ, इतनी अपेक्षा है कि मेरी जरूरतें पूरी हो जाए।
मेरे जीवन में कला का साथ हर पल है। मेरा साज सितार जिसे मैं हर रोज बजाता हूं। मेरी पहचान-मेरा संगीत और सितार है। मैं इसके बिना अपने वजूद की कल्पना नहीं कर सकता हूं। कला के जरिए लोगांे के बीच नजर आता हूं। शायद, अगर दूसरे किसी क्षेत्र में रहता तो मेरा एक सीमित दायरा होता। जबकि, कला ने मुझे देश-विदेश के लोगों से जोड़ा है। मेरा मानना है कि संगीत के बारह स्वर-‘सरेगमपधनि‘ से सृष्टि जुड़ी है। जैसे-स-सागर, रे-रेगिस्तान, ग-गगन, प-पर्वत, ध-धरती और नि-नीर। इसमें मा-मां या जननी, जो मध्यम है, जिनसे हम उत्पन्न हुए हैं। संपूर्ण से जुड़कर ही हम पूर्ण होते हैं। हमारे लिए संगीत के स्वर और ब्रम्हाण्ड पूर्णता का अहसास है। इससे ही हमारा जीवन संपूर्ण आकार लेता है।
कला की लगन मुझे हमेशा खुद में डुबोए रखती है। ऐसे में, मन कहता है-‘बावरा मन‘ जो है हर वक्त किसी राग, किसी बंदिश, किसी ताल के बारे में सोचता रहता है। वही दुनिया सरस और मनोरम लगती है। क्योंकि कला मन-से-मन की दूरी मिटाती है। कुछ वर्ष पहले की बात है। मैं कार्यक्रम के सिलसिले में शंघाई गया था। वहां मुझे स्कूली बच्चों के बीच संगीत पेश करना था। मैंने चीनी भाषा के अभिवादन के कुछ शब्द और एक बालगीत की धुन को तैयार किया। उन बच्चों के बीच उसे पेश किया। कार्यक्रम के समापन बच्चों ने मुझे प्यार से घेर लिया और आयोजक दंग रह गए। यह कमाल है-हमारे हिंदुस्तानी संगीत का। यह कलाकार को बच्चों के बीच बच्चा, युवाओं के बीच युवा और बुजुर्गांे के बीच उनके अनुकूल बन जाने की प्रेरणा देता है। वास्तव में, कला ने मुझे जिंदगी से परिचित करवाया है।
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