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Wednesday, March 13, 2024

महानाद महोत्सव में सुरों का नाद @शशिप्रभा तिवारी

 

                                                     महानाद महोत्सव में सुरों का नाद

                                      @शशिप्रभा तिवारी


संगीत में हम कहते हैं कि नाद ब्रह्म है। इसका मतलब है कि ध्वनि ही ईश्वर है। ऐसा इसलिए कि इस अस्तित्व का आधार कंपन है, नाद है। यही कंपन ही ध्वनि या नाद है। इसे हर इंसान महसूस कर सकता है। इस नाद को हम अपनी संासों में, अपनी दिल की धड़कन में, अपने चलने में, अपने बोलने में महसूस करते हैं। संगीत और ध्यान के लिए कहा जाता है कि अगर आप अपने भीतर एक खास अवस्था में पहुंच जाएं, तो यह पूरा जगत सिर्फ ध्वनि या नाद बन जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत इसी तरह के अनुभव और समझ पर आधारित है। यही नाद की पराकाष्ठा है महानाद महोत्सव। इस महानाद महोत्सव का आयोजन रागांजलि एकेडमी आॅफ परफाॅर्मिंग आट्र्स ने संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से किया। 



महानाद महोत्सव 9से 10 मार्च 2024 तक त्रिवेणी सभागार में संपन्न हुआ। इस समारोह के दूसरी संध्या में राजस उपाध्याय, पंडित मिथिलेश कुमार झा, डाॅ अविनाश कुमार, दुर्जय भौमिक, जाकिर धौलपुरी, राहुल एवं रोहित मिश्र, अंशुल प्रताप सिंह, सुमित मिश्र की गरिमामई उपस्थिति महत्वपूर्ण थी। राजस उपाध्याय को संगीत अपने पिता अतुल कुमार उपाध्याय से विरासत में मिली है। वह पुणे, पिंपरी, छिंदवाड़ा, नासिक, भोपाल आदि शहरों में अपना वायलिन वादन प्रस्तुत कर चुके हैं। इसके अलावा, वह विदेशों में भी कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके हैं।

महानाद महोत्सव में राजस उपाध्याय ने राग दुर्गा का वादन पेश किया। आलाप, जोड़ के बाद झप ताल और तीन ताल में बंदिशों को पेश किया। उनके साथ तबले पर संगत करने के लिए जाने-माने तबला वादक पंडित मिथिलेश झा थे। 

युवा शास्त्रीय गायक डाॅ अविनाश कुमारा नेे रामपुर सहसवान घराने की उत्कृष्ट परंपरा के कलाकार हैं। शास्त्रीय गायक डाॅ अविनाश कुमार को कई गुरुओं से संगीत सीखने का अवसर मिला है। वह दिल्ली, भोपाल, पुणे, आगरा, इंदौर, बंग्लौर, देवास, सोनभद्र शहरों में आयोजित समारोहों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। 

गायक अविनाश ने राग जोगकौंस पेश किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के अंत में भजन ‘भवानी दयानी महावाकवाणी‘ और ‘शारदे मां जगतजननी‘ पेश किया। उनके साथ तबले पर पंडित दुर्जय भौमिक और हारमोनियम पर जाकिर धौलपुरी ने संगत किया। 



महानाद महोत्सव में बनारस घराने के राग रस को पेश किया राहुल मिश्र और रोहित मिश्र की जोड़ी ने। राहुल मिश्र और रोहित को संगीत परिवार परंपरा से मिली है। पंडित बैजनाथ प्रसाद मिश्र, पंडित शारदा सहाय जैसे संगीतकारों के घराने के परिवार परंपरा के प्रतिनिधि हैं। दोनों ही पद्मविभूषण विदुषी गिरिजा देवी जी के गंडाबद्ध शिष्य हैं। उन्होंने महोत्सव में राग यमन और यमन कल्याण पेश किया। उन्होंने राग यमन में बंदिश ‘ऐसो ललना के संग माही‘ व ‘जाने न देत मग रोके‘ गाया। राम यमन कल्याण पर आधारित टप्प खयाल की बंदिश के बोल थे-‘झम झम झमके पायलिया‘ और ठुमरी ‘रंग सारी गुलाबी चुनरिया‘ पेश किया। उनके साथ तब गायिका मधुश्री नारायण जी केरल की मशहूर पाश्र्व गायिका हैं। 

पहली संध्या में उत्सव का आगाज मधुश्री के शास्त्रीय गायन से हुआ। मधुश्री को संगीत अपने पिता पंडित रमेश नारायण जी से विरासत में मिली। उन्होंने संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी के सानिध्य में संगीत सीखा है। इनदिनों वह पंडित अजय पोहनकर जी से ठुमरी गायन की बारीकियों को आत्मसात करने का प्रयास कर रही हैं। वैसे तो आपको कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। पर कुछ खास हैं, जिनमें फिल्मों में गाने के लिए केरल स्टेट फिल्म अवार्ड और केरल फिल्म क्रिटिक्स अवार्ड मिल चुके हैं। 

इस समारोह में मधुश्री ने राग पूरिया धनाश्री पेश किया। उन्होंने दु्रत ख्याल की बंदिश-‘दिन रैन कहुं न सोहावे‘ को बहुत मधुरता से गाया। वहीं राग सहाना कान्हड़ा में पंडित जसराज की रचना ‘ख्वाजा करम गति न जाने‘ को पेश किया। अपने गायन का समापन उन्होंने ठुमरी ‘याद पिया की आए‘ से किया। उनके साथ सहयोग करने वाले कलाकारों में शामिल थे-तबले पर आदित्य नारायण बनर्जी और हारमोनियम पर ललित सिसोदिया। 

महानाद महोत्सव के अगले कलाकार शहनाई वादक लोकेश आनंद थे। लोकेश आनंद को संगीत की शुरुआती शिक्षा अपने कालीचरण से मिली। उन्होंने पंडित अनंत लाल जी और पंडित दया शंकर जी के सानिध्य में शहनाई वादन सीखा। इसके बाद, संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी से मार्ग दर्शन प्राप्त करते रहे। कला के क्षेत्र में योगदान के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं। इनमें कुछ के नाम हैं-शहनाई रत्न, अभिनव कला सम्मान, संगीत रत्न, संगीत कला गौरव सम्मान आदि। शहनाई वादक लोकेश आनंद ने राग मधुकौंस बजाया। आलाप, जोड़ और झाले के बाद विलंबित और द्रुत लय की गतों को पेश किया। उन्होंने राग बहार में होली की धुन पेश कर समां बंाध दिया। उनके साथ तबले पर श्री हिरेन चटर्जी ने संगत  किया। 

महोत्सव की पहली संध्या के अंतिम कलाकार थे-सितार वादक पार्थो बोस। उन्हें मैहर घराने के गुरु पंडित मनोज शंकर का सानिध्य मिला। पंडित मनोज भारतरत्न पंडित रविशंकर के शिष्य थे। उनके गायन की मधुरता अद्भुत थी। अपने गुरु की परंपरा का पूरी तन्मयता और परिपक्वता का परिचय पार्थो बोस के वादन में नजर आया। उन्होंने राग गावती बजाया। समय कम होने के बावजूद उन्होंने परंपरा अनुसार आलाप, जोड़ और झाले को पेश किया। इसके बाद, मध्य लय और द्रुत लय की गतों को पेश किया। और अंत मंे राग भैरवी में एक रचना को बजाया। उनका वादन मधुर और रसीला था। प्रस्तुति गागर में सागर की अनुभूति थी। तबले पर इंद्रनील मलिक ने संतुलित और दमदार संगत की।



















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