त्रिवेणी सभागार में पंडित कपिल देव सिंह संगीत समारोह
@ शशिप्रभा तिवारी
राजधानी दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में पंडित कपिल देव सिंह मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से संगीत समारोह का आयोजन बीते 12 सितंबर को संपन्न हुआ। इस ट्रस्ट की स्थापना दिसंबर 2018 में हुई थी। इसकी स्थापना डाॅ गीतांजलि चंद्रा ने की है।वह विख्यात तबला वादक पंडित कपिल देव सिंह की पौत्री हैं। यह ट्रस्ट स्वर्गीय पंडित कपिल देव सिंह की स्मृति में स्थापित की गई। पंडित कपिल देव सिंह देश के जाने-माने तबला वादक थे। वह बिहार की राजधानी पटना में रहते थे। पंडित कपिल देव सिंह को ताल सम्राट पंडित किशन महाराज जी के पहले शिष्य होने का गौरव मिला। वह पंडित जी के सबसे वरिष्ठ शिष्य थे। उम्र में वह अपने गुरु से मात्र एक साल ही छोटे थे। उन्होंने पटना में सुरताल संस्था की स्थापना की थी, जिसके जरिए लगभग 40 वर्षों तक लगातार संगीत समारोह का आयोजन करते रहे। उन्होंने कई उभरते हुए कलाकारों को मंच प्रदान किया। साथ ही, कई शिष्यों को भी तैयार किया।
डाॅ बिपुल ने संतूर वादन की शिक्षा सूफियाना घराने के मशहूर संतूर वादक पद्मश्री पंडित भजन सोपोरी से प्राप्त की है। डाॅ बिपुल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स, एमफिल एवं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। वह आकाशवाणी के ए ग्रेड कलाकार हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के प्रतिष्ठित श्रेणी में है। वह साहित्य कला परिषद, दिल्ली सरकार के सांस्कृतिक सलाहकार एवं केंद्रीय विद्यालय गवर्निंग बाॅडी के सदस्य के रूप में अपनी सेवा प्रदान करते रहे हैं। वह मिश्र, आॅस्ट्रिªया, स्वीटजरलैंड, जर्मनी, कतर, चीन, थाईलैंड, श्रीलंका आदि देशों में संतूर वादन की सफल प्रस्तुति कर चुके हैं। वह तानसेन समारोह, आकाशवाणी संगीत सम्मेलन, कला प्रकाश, संगीत नाटक अकादमी समारोह, सप्तक, संगीत विहान आदि समारोहों में शिरकत कर चुके हैं। उन्हें अभी हाल ही में संपन्न जी-20 के आयोजन में भी विदेशी मेहमानों के समक्ष संतूर वादन का अवसर मिला।
उस्ताद अकरम खां का संबंध अजराड़ा घराने से है। तबला वादक उस्ताद अकरम खां को उनके परदादा उस्ताद मोहम्मद शैफी खां और उस्ताद नियाजू खां से विरासत में मिली। वह परिवार परंपरा के सातवें पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। उन्हें अपने पिता उस्ताद हशमत अली खां का भी मार्गदर्शन मिला। उन्होंने तबला एकेडमी आॅफ अजराड़ा घराने की स्थापना की है। उन्हें उस्ताद विलायत खां, पंडित रविशंकर, पंडित राजन एवं पंडित साजन मिश्र, उस्ताद अमजद अली खां जैसे वरिष्ठ कलाकारों के साथ संगत किया है। उन्हें दिल्ली रत्न सम्मान, तबला भूषण, ज्ञानपीठ सम्मान, ताल सम्राट आदि सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।
संतूर वादक डाॅ बिपुल राय ने राग चंद्रकौंस बजाया। उन्होंने आलाप और जोड़ के बाद, विलंबित और द्रुत लय की गतों को पेश किया। दोनों गतें तीन ताल में निबद्ध थीं। उनके साथ इस समारोह में उस्ताद अकरम खां ने तबले पर संगत किया। बिपुल का संतूर सुरीला और रसमय था। उनके साथ तबला वादक अकरम खां ने लयकारी का संुदर समायोजन पेश किया।
हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका डाॅ सरिता पाठक यजुर्वेदी जी ने पंडित शंकर नाथ पाटिल जी से संगीत सीखना शुरू किया। गुरू शिष्य परंपरा में आप विदुषी सुलोचना वृहस्पति जी की सानिध्य में रहीं। रामपुर सहसवान घराने की प्रतिनिधि कलाकार डाॅ सरिता पाठक जी आकाशवाणी और दूरदर्शन की मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। आपने आकाशवाणी के लिए ‘उत्तराखंड के पर्वतों का संगीत‘, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उत्कर्ष केंद्र‘ जैसे धारावाहिकों का लेखन और प्रस्तुतिकरण किया है। आपने आचार्य वृहस्पति की 124बंदिशों को 24रागों में पिरोया है। यह आरकाइवल वर्क उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के लिए किया।
संगीत समारोह में हिंदुस्तानी शास्त्री गायिका डाॅ सरिता ने राग केदार पेश किया। उन्होंने राग केदार मंे आचार्य वृहस्पति की रचनाओं को सुरों में पिरोया। पहली विलंबित लय की बंदिश ‘लाज रखो महाराज‘ झप ताल में निबद्ध थी। जबकि, उन्होंने द्रुत एक ताल में दूसरी बंदिश को पेश किया। इसके बोल थे-‘पायल की धुन‘। उन्होंने राग देश में कजरी ‘बरखा ऋतु बीत गए‘ को प्रस्तुत किया। उनके साथ तबले पर पंडित सुधीर पांडे और सारंगी पर घनश्याम सिसोदिया थे। उनके अलावा, डाॅ सरिता के शिष्य उमेश साहू और शिष्या विधि सिंह ने तानपुरे पर संगत किया।
पंडित कपिल देव सिंह संगीत समारोह में अगली प्रस्तुति कथक नृत्य थी। इसे कथक नृत्यांकना सुश्री श्रुति सिन्हा जी पेश किया। वह लखनऊ घराने के पंडित मुन्ना शुक्ला जी की शिष्या रही हैं। इन दिनों वह श्रुति इंस्टीट्यूट आॅफ परफाॅर्मिंग आटर््स के जरिए कथक नृत्य के प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं। श्रुति को महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान, मार्ग दर्शक सम्मान आदि सम्मान मिल चुके हैं। वह देश-विदेश के अनेक शहरों में कथक नृत्य प्रस्तुत कर चुकी हैं।
कथक नृत्यांगना श्रुति सिन्हा ने अपनी प्रस्तुति का आगार गणेश वंदना से किया। उन्होंने अपनी नृत्य का समापन अभिनय से किया। यह दादरा ‘छोड़ो छोड़ो बिहारी देखे सारी नगरी‘ पर आधारित थी। उनकी शिष्याओं ने गुरु नमन पेश किया। यह रचना ‘गुरु चरण में शीश नवाऊं‘ पर आधारित थी। इन शिष्याओं ने तराने पर कथक के तकनीकी पक्ष को उजागर किया। इस प्रस्तुति में शिरकत करने वाली शिष्याएं थीं-नंदिनी, वान्या, निधि और श्वेता।
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