खुद में कबीर, कबीर में हम
@शशिप्रभा तिवारी
ओडिशी नृत्य की जानी-मानी नृत्यांगना हैं-रंजना गौहर। उन्होंने ओडिशी नृत्य के साथ-साथ कथक, छऊ और मणिपुरी नृत्य को भी जानने की कोशिश की है। नृत्यांगना रंजना गौहर ने कई गुरूओं से नृत्य सीखा। इनमें प्रमुख रहे हैं-गुरू मयाधर राऊत, आलोका पाणिकर और गुरू श्रीनाथ राउत। उन्होंने नलदमयंती, वसंुधरा, उदयास्थ, गीत-गोविंद, होली की कहानी, श्रवण कुमार, एकलव्य, अलीबाबा चालीस चोर जैसी नृत्य रचनाएं की हैं। जिन्हें दर्शकों ने खूब सराहा है। उन्हंे संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, पद्मश्री, इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी अवार्ड आदि से भी सम्मानित किया जा चुका है। फिलहाल, रंजना गौहर ‘उत्सव डंास एकेडमी‘ के जरिए ओडिशी नृत्य की शिक्षा देती हैं और देश-विदेश में परफाॅर्मेंस देने में व्यस्त रही हैं। उनके शिष्य केविन बचन को पिछले दिनों संगीत नाटक अकादमी की ओर से उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा सम्मान प्रदान किया गया।
पिछले दिनों नौ से दस अगस्त तक उत्सव की ओर से सारे जहां से अच्छा समारोह आयोजित किया गया। इंडिया हैबिटैट सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में पहली शाम नृत्य रचना ‘खुद में कबीर, कबीर में हम‘ पेश की गई। समारोह के दूसरी संध्या में ओडिशी नर्तक और गुरु रंजना गौहर के शिष्य केविन बचन ने सीता के जीवन प्रसंग को पेश किया। जबकि मोहिनीअट्टम नृत्यांगना व गुरु जयप्रभा मेनन ने गंगावतरण के दृश्य का रूपायित किया। ओडिशी नृत्य युगल अशोक व बंदिता घोषाल ने अपने नृत्य में मानव जीवन में अहंकार की भूमिका को दर्शाया।
रंजना गौहर की नृत्य परिकल्पना ‘खुद में कबीर, कबीर में हम‘ की स्क्रिप्ट भीष्म साहनी की कृति कबीरा खड़ा बाजार पर आधारित थी। लेकिन, इस विषय को ओडिशी और समकालीन नृत्य शैली व अभिनय के साथ प्रस्तुत करना चुनौतीपूर्ण कार्य था, जिसे उन्होंने सूत्रधार के तौर पर बखूबी निभाया। नृत्य रचना का आरंभ संवाद ‘काशी के पास एक तालाब था लहरतारा तलाब‘ से होता है। यह संवाद ही, दर्शकों को बांध लेता है। साथ ही, संगीत और संवाद अदायगी रिकाॅर्डेड होते हुए भी प्रभावकारी थे। वहीं, कबीर की भूमिका में ओडिशी नर्तक केविन बचन ने अच्छे भाव को प्रकट किया। रचना ‘संत छाड़ि संत कोटिक मिले संता‘, ‘कबीरा जब हम पैदा हुए‘, ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया‘, ‘तूने रात गवाई खाए के‘, ‘आदि देव नमस्तुभ्यं‘, ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ‘, ‘नैया पड़ी मझधार‘, ‘करमगति टारी नाहीं टरे‘, ‘भजो रे मैया राम गोविंद हरि‘, ‘झीनी झीनी चदरिया‘ आदि को नृत्य रचना में पिरोया गया था। कबीर के जीवन चरित्र का यह चित्रण मार्मिक था। लोई की भूमिका में नृत्यांगना वृंदा ने मोहक नृत्य पेश किया। सामूहिक नृत्य में भी सभी नृत्यांगनाओं का आपसी संयोजन और तालमेल सुंदर और संतुलित था। उनके नृत्य में अच्छी तैयारी दिखी।
सारे जहां से अच्छा समारोह का आयोजन ओडिशी नृत्यांगना व गुरु रंजना गौहर पिछले अठारह सालों से राजधानी में आयोजित कर रही हैं। इस संदर्भ में वह कहती हैं कि विश्व में भारत एक ऐसा देश है, जहां की सांस्कृतिक विरासत अनूठी है। हमारी संस्कृति और हमारे संस्कार ही हमारी पहचान है। इसे अक्षुण्ण बनाए रखना देश के हर नागरिक और हर देशवासी का दायित्व है। हजारों साल की संस्कृति को संभाले रखना आज हमारे सामने बहुत बड़ी चुनौती है। हमारी संस्कृति में स्वतंत्रता को खास महत्व दिया गया है। हमारे यहंा पशु-पक्षी, पेड़-पौधों हर किसी के अस्तित्व को सम्मान और आदर दिया गया है। ऐसे में हमारे लिए हर नागरिक, हर इंसान, हर रिश्ता, हर चीज आदरणीय है। उसके अस्मिता को कायम रखने में मदद करना और उसे उन्मुक्त धरती और गगन में विचरण करने और जीवन जीने का अधिकार है।
समारोह के दौरान ध्रुपद गायक उस्ताद वसीफुद्दीन डागर और बांसुरी वादक अजय प्रसन्ना को सम्मानित किया गया। इस समारोह में अतिथि के तौर पर कई वरिष्ठ नृत्यांगना और कलाकार उपस्थित थे। इनमें गुरु मंजुश्री चटर्जी, गुरु गीता चंद्रन, गुरु शोवना नारायण, गुरु प्रतिभा प्रहलाद, गुरु गीतांजलि लाल, गुरु कौशल्या रेड्डी, गुरु संतोष नायर की उपस्थिति ने समारोह की रौनक बढ़ा दिया।
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