रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण
-शशिप्रभा तिवारी
ऊषा आरके का नाम कला जगत में काफी लोकप्रिय है। इनदिनों ऊषा जी माॅस्को में भारतीय दूतावास के जवाहरलाल नेहरू संस्कृति केंद्र में बतौर निदेशक कार्यरत हैं। वह संस्कृति मंत्रालय में भी दायित्व निभा चुकी हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान यूनेस्को से योग, कुंभ मेला, वाराणसी व चेन्नैई को सृजनात्मक नगर आदि परियोजना को मान्यता दिलाने में सफल रहीं। उन्हें शास्त्रीय संगीत और नृत्य जगत के अनेक कलाकारों के साथ कार्य करने के अवसर मिले हैं। इनदिनों वह देहरादून में रहकर सांस्कृतिक और कला परिदृश्य को नए आयाम से जोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
वैसे तो देखा जाए तो भरतनाट्यम और सुलेख या कैलिग्राफी में कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन, भारतीय परिदृश्य में मान्यता है कि सोलह कलाएं आपस में किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं। इस जुड़ाव का अहसास पिछले दिनों कार्यक्रम रामचित्र कथा में देखने को मिला। इसका आयोजन संस्कार भारती, संस्कृतिकर्मी ऊषा आर के और ओलंपस स्कूल ने किया। इस समारोह का आयोजन प्रांगण में दो सभाओं में किया गया। पहली सभा में सुलेख कलाकार परमेश्वर राजू ने कैलीग्राफी के जरिए मर्यादा पुरूषोत्तम राम की कथा का चित्रण पेश किया। वहीं सायंकालीन सभा में सत्यनारायण राजू ने भरतनाट्यम राम कथा नृत्य पेश किया।
भरतनाट्यम नर्तक सत्यनारायण राजू ने नृत्य की शिक्षा कई गुरुओं से प्राप्त की है। इनमें गुरू नर्मदा, गुरु सुभद्रा प्रभु, डाॅ माया राव और चित्रा वेणूगोपाल हैं। उनके नृत्य में गजब की परिपक्वता और ठहराव है, जो उनकी नृत्य साधना को इंगित करती है। इस समारोह में उन्होंने अपने आंगिक भाव-भंगिमा और अभिनय के जरिए राम के चरित्र को प्रभावकारी और आकर्षक अंदाज में पेश किया। उनकी प्रस्तुति में भक्ति, करूण, वात्सल्य, रौद्र रस का सुंदर समागम था। उन्होंने अपने नृत्य में प्रत्येक प्रसंग के पात्रों को बहुत ही संजीदगी, चपलता और परिपक्वता से निरूपित किया। शुरूआत में राम स्तुति ‘मेलि को रामा सीता‘ में राम के राजराजेश्वर रूप का निरूपण था। वहीं, तुलसीदास रचित भजन ‘ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया‘ के जरिए सत्यनारायण राजू ने कौशल्य के वात्सल्य भावों को दर्शाया। जबकि, अगले अंश में नर्तक सत्यनारायण राजू ने अहिल्या उद्धार, सीता स्वयंबर, राम वनगमन, कैकेई दशरथ संवाद आदि प्रसंगों को चित्रित किया। उन्होंने रचना ‘पट्टाभिषेक वेललो सीताराम‘ के जरिए अलग-अलग पात्रों का त्वरित निरूपण बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से किया। एक ओर मंथरा के भावों को अभिनीत किया वहीं, दूसरी ओर दशरथ के मनोभावों को आंखों के जरिए दर्शाना लासानी था।
उन्होंने केवट प्रसंग के चित्रण को पेश किया। इसके लिए रचना ‘भजुमन रामचरण सुखदाई‘ का चयन किया गया। अगले अंश में सीता हरण और जटायु प्रसंग को पेश किया गया। रचना ‘महावीरा संपाती सोधरा दशरथ मित्राः‘ के जरिए इस प्रसंग को दर्शाया। इस प्रस्तुति में संगीत बहुत प्रभावकारी था। राम भक्त शबरी के भावों का प्रदर्शन बहुत प्रभावकारी था। रचना ‘शबरी दांतुल वरकांतुल जगमंत्र‘ के जरिए शबरी और राम के भावों को प्रदर्शित किया। इस प्रस्तुति में प्रकाश प्रभाव का प्रयोग बहुत संुदर था और नर्तक सत्यनारायण का अभिनय भी बहुत मार्मिक था। उन्होंने रचना ‘हनुमंत देव नमो‘ में हनुमान के भावों को प्रदर्शित किया। इसके बाद लंका विजय के दृश्यों को दर्शाया। सत्यनारायण राजू ने अपनी प्रस्तुति का समापन तिल्लाना से किया।
इस आयोजन के दौरान उत्तराख्ंड के शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल, विधायक सविता कपूर, चित्रकार कोइली, बलदेव पराशर, कुलदीप कुमार, सुबोध कुमार, ललित अकादमी के पूर्व सचिव सुधाकर शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता अनुराग चैहान, संस्कार भारती के महानगर अध्यक्ष तनवीर सिंह और कोषाध्यक्ष् प्रेरणा गोयलकी उपस्थिति महत्वपूर्ण थी।
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