Popular Posts
-
सुबह होने से पहले मुँह अँधेरे मैं गंगा के किनारे बैठी लहरों को निहारती हर धारा में तुम्हें देख रही थी वही तुम्हारी अंगुली थामे सड़क प...
-
कथक और पहाड़ी चित्रों का आपसी रंग कविता ठाकुर, कथक नृत्यांगना रेबा विद्यार्थी से सीख कर आए हुए थे। जिन्होंने लखनऊ घराने की तकनीक को सीखा थ...
-
बांसुरी ने जीवन की समझ दी-चेतन जोशी, बांसुरीवादक पहाड़ों, घाटियों, नदियों, झरने, जंगल और हरी-भरी वादियों...
-
अपनी मूल से जुड़े -शशिप्रभा तिवारी ओडिशी नृत्य गुरू मायाधर राउत राजधानी दिल्ली में रहते है...
-
युवा कलाकार...
-
सत्रीय नृत्य समारोह ...
-
'जीवन की सुगंध है-ओडिशी'-- मधुमीता राउत, ओडिशी नृत्यांगना उड़ीसा और बं...
-
जयंतिका की ओर से नृत्य समारोह ‘भज गोविंदम्‘ का आयोजन दिल्ली में हुआ। यह समारोह नौ अप्रैल को इंडिया हैबिटैट सेंटर के स्टेन सभागार में आयोजित ...
-
शास्त्रीय नृत्य की एक अनवरत परंपरा है। इसके तहत गुरूओं के सानिध्य में शिष्य-शिष्याएं कला की साधना करते हैं। गुरूमुखी विद्या का यह अवगाहन गु...
-
कला के विस्तार का एक और आयाम शशिप्रभा तिवारी ...
Wednesday, July 26, 2023
shashiprabha: सत्रीय नृत्य की नई पौध -शशिप्रभा तिवारी
सत्रीय नृत्य की नई पौध -शशिप्रभा तिवारी
सत्रीय नृत्य की नई पौध
-शशिप्रभा तिवारी
सत्रीय नृत्य गुरू जतीन गोस्वामी ने कहा कि सत्रीय नृत्य को इक्कीसवीं सदी के आरंभ में बतौर शास्त्रीय नृत्य परंपरा मान्यता प्रदान की गई। यह श्रीमंत शंकर देव की एक महान देन है। माना जाता है कि इस नृत्य की शुरूआत 15वीं शताब्दी में वैष्णव संप्रदाय के संत श्रीमंत शंकर देव ने की थी। जबकि, अंकीय नाट की शुरूआत श्रीमंत शंकर देव के शिष्य श्रीमंत माधवदेव ने की। एक शरण धर्म यानि सत्र के प्रांगण में सत्रीय नृत्य को सत्र में रहने वाले ब्रम्हचारी शिष्य करते थे। वह सहज रूप में नाट्यशास्त्र, अभिनय दर्पण और संगीत रत्नाकर जैसे शास्त्रों के मार्ग का अनुसरण अपने नृत्य, नाट्य व नृत्त में करते थे। यह नवधा भक्ति का एक जीता-जागता स्वरूप है।
असम की युवा सत्रीय नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी इस नृत्य शैली को राजधानी दिल्ली और अन्य प्रदेशों में लोगों तक पहुंचाने में जुटी हुई हैं। मीनाक्षी मेधी ने अध्यापक जीवनजीत दत्ता और हरिचरण भइयां से सीखा है। उन्हें संस्कृति मंत्रालय का जूनियर फेलोशिप मिल चुका है। पिछले एक दशक से वह अपनी संस्था सत्कारा के जरिए युवाओं और किशोरों को सत्रीय नृत्य शैली सिखा रही हैं और उन्हें इसे अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसी उद्देश्य नृत्य समारोह सुखानुभूति आयोजित की गई।
सत्रीय नृत्य शैली में पिरोई गई प्रस्तुति सुखानुभूति में मनुष्य के अवतरण को पुरुष और प्रकृति के माध्यम से दर्शाया गया। पुरुष आदि निरंजन और प्रकृति महामाया के प्रतिरूप हैं। अपने दैवीय लीलाओं के जरिए सृष्टि, स्थिति, लय और पंचभूत के जरिए आदि निरंजन और महामाया नया सृजन करते हैं। अपने कर्तव्य के पालन के जरिए एक ओर जहां चित्त निर्मल होता है, वहीं दूसरी ओर स्वर्ग के सुख की अनुभूति होती है। इसी की झलकियां श्रवण कुमार, श्रीराम, सावित्री-सत्यवान आदि के प्रसंगों को पेश किया गया।
नृत्य रचना के आरंभ में रचना ‘सर्वतीथमई माता सर्वदेवमयः पिता‘ के जरिए सूत्रधार का प्रवेश होता है। माता-पिता की भूमिका का चित्रण नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी ने पेश किया। अगले अंश में कलाकारों के दल ने मातृ-पितृ के सेवक पुत्र श्रवण कुमार के प्रसंग को चित्रित किया। इसके लिए रचना ‘नाम श्रवण अंध माता-पिता‘ का चयन किया गया था। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के वनवास प्रसंग के माध्यम से राजा दशरथ के चरित्र को रूपायित किया गया। रचना ‘दशरथ राजा सूर्यवंश‘ पर आधारित इस अंश में सीता हरण से लेकर रावण वध के प्रसंग को बहुत संक्षिप्त रूप से पेश किया गया। अगले अंश में, ‘सत्यवान पतिव्रता सावित्री‘ के माध्यम से पतिव्रता सावित्री की कथा को निरूपित किया गया। वहीं, महापापी के माध्यम से कुपुत्र और व्यसनी संतान से पीड़ित और दुखी माता-पिता के भावों को दर्शाया गया।
दरअसल, युवा प्रतिभाओं को सत्रीय नृत्य शैली से परिचित कराने का यह प्रयास अच्छा है। ऐसे की प्रयासों से कलाकार और प्रतिभा को मंच मिलता है, तो कला के विकास और संवर्द्धन में मदद मिलती है। इसी परिकल्पना सत्रीय नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी ने खुद की थी, इसलिए उनका उत्साहवर्द्धन जरूरी है। नृत्य परिकल्पना का आलेख श्रीराम कृष्ण महंत ने लिखा। इस प्रस्तुति में शिरकत करने वाली प्रतिभाओं में शामिल थे-पार्थ प्रतीम, पापुल, रेखा, प्रेरीणे, एन एच राजेश, श्रेया, अनुराधा, कृष्णा, मानन्या, आद्रिति, देवनिता, नायरा, अदित्रि और रीयांशि।
shashiprabha: रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण -शशिप्रभा तिवारी
रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण -शशिप्रभा तिवारी
रंग और नृत्य के जरिए राम का चित्रण
-शशिप्रभा तिवारी
ऊषा आरके का नाम कला जगत में काफी लोकप्रिय है। इनदिनों ऊषा जी माॅस्को में भारतीय दूतावास के जवाहरलाल नेहरू संस्कृति केंद्र में बतौर निदेशक कार्यरत हैं। वह संस्कृति मंत्रालय में भी दायित्व निभा चुकी हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान यूनेस्को से योग, कुंभ मेला, वाराणसी व चेन्नैई को सृजनात्मक नगर आदि परियोजना को मान्यता दिलाने में सफल रहीं। उन्हें शास्त्रीय संगीत और नृत्य जगत के अनेक कलाकारों के साथ कार्य करने के अवसर मिले हैं। इनदिनों वह देहरादून में रहकर सांस्कृतिक और कला परिदृश्य को नए आयाम से जोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
वैसे तो देखा जाए तो भरतनाट्यम और सुलेख या कैलिग्राफी में कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन, भारतीय परिदृश्य में मान्यता है कि सोलह कलाएं आपस में किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं। इस जुड़ाव का अहसास पिछले दिनों कार्यक्रम रामचित्र कथा में देखने को मिला। इसका आयोजन संस्कार भारती, संस्कृतिकर्मी ऊषा आर के और ओलंपस स्कूल ने किया। इस समारोह का आयोजन प्रांगण में दो सभाओं में किया गया। पहली सभा में सुलेख कलाकार परमेश्वर राजू ने कैलीग्राफी के जरिए मर्यादा पुरूषोत्तम राम की कथा का चित्रण पेश किया। वहीं सायंकालीन सभा में सत्यनारायण राजू ने भरतनाट्यम राम कथा नृत्य पेश किया।
भरतनाट्यम नर्तक सत्यनारायण राजू ने नृत्य की शिक्षा कई गुरुओं से प्राप्त की है। इनमें गुरू नर्मदा, गुरु सुभद्रा प्रभु, डाॅ माया राव और चित्रा वेणूगोपाल हैं। उनके नृत्य में गजब की परिपक्वता और ठहराव है, जो उनकी नृत्य साधना को इंगित करती है। इस समारोह में उन्होंने अपने आंगिक भाव-भंगिमा और अभिनय के जरिए राम के चरित्र को प्रभावकारी और आकर्षक अंदाज में पेश किया। उनकी प्रस्तुति में भक्ति, करूण, वात्सल्य, रौद्र रस का सुंदर समागम था। उन्होंने अपने नृत्य में प्रत्येक प्रसंग के पात्रों को बहुत ही संजीदगी, चपलता और परिपक्वता से निरूपित किया। शुरूआत में राम स्तुति ‘मेलि को रामा सीता‘ में राम के राजराजेश्वर रूप का निरूपण था। वहीं, तुलसीदास रचित भजन ‘ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया‘ के जरिए सत्यनारायण राजू ने कौशल्य के वात्सल्य भावों को दर्शाया। जबकि, अगले अंश में नर्तक सत्यनारायण राजू ने अहिल्या उद्धार, सीता स्वयंबर, राम वनगमन, कैकेई दशरथ संवाद आदि प्रसंगों को चित्रित किया। उन्होंने रचना ‘पट्टाभिषेक वेललो सीताराम‘ के जरिए अलग-अलग पात्रों का त्वरित निरूपण बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से किया। एक ओर मंथरा के भावों को अभिनीत किया वहीं, दूसरी ओर दशरथ के मनोभावों को आंखों के जरिए दर्शाना लासानी था।
उन्होंने केवट प्रसंग के चित्रण को पेश किया। इसके लिए रचना ‘भजुमन रामचरण सुखदाई‘ का चयन किया गया। अगले अंश में सीता हरण और जटायु प्रसंग को पेश किया गया। रचना ‘महावीरा संपाती सोधरा दशरथ मित्राः‘ के जरिए इस प्रसंग को दर्शाया। इस प्रस्तुति में संगीत बहुत प्रभावकारी था। राम भक्त शबरी के भावों का प्रदर्शन बहुत प्रभावकारी था। रचना ‘शबरी दांतुल वरकांतुल जगमंत्र‘ के जरिए शबरी और राम के भावों को प्रदर्शित किया। इस प्रस्तुति में प्रकाश प्रभाव का प्रयोग बहुत संुदर था और नर्तक सत्यनारायण का अभिनय भी बहुत मार्मिक था। उन्होंने रचना ‘हनुमंत देव नमो‘ में हनुमान के भावों को प्रदर्शित किया। इसके बाद लंका विजय के दृश्यों को दर्शाया। सत्यनारायण राजू ने अपनी प्रस्तुति का समापन तिल्लाना से किया।
इस आयोजन के दौरान उत्तराख्ंड के शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल, विधायक सविता कपूर, चित्रकार कोइली, बलदेव पराशर, कुलदीप कुमार, सुबोध कुमार, ललित अकादमी के पूर्व सचिव सुधाकर शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता अनुराग चैहान, संस्कार भारती के महानगर अध्यक्ष तनवीर सिंह और कोषाध्यक्ष् प्रेरणा गोयलकी उपस्थिति महत्वपूर्ण थी।
Monday, July 24, 2023
shashiprabha: आंध्रप्रदेश की कलमकारी का कमाल दिखातीं -शशिप्रभा ...
आंध्रप्रदेश की कलमकारी का कमाल दिखातीं -शशिप्रभा तिवारी
आंध्रप्रदेश की कलमकारी का कमाल दिखातीं
-शशिप्रभा तिवारी
कुचिपुडी नृत्यांगना और गुरु वनश्री राव ने आंध्रप्रदेश की नृत्य शैली कुचिपुडी को तो अपनाया ही है। उन्होंने वहां की चित्रकला शैली कलमकारी को नया रूपाकार देकर, एक नई पहल की है। उन्होंने अपने प्रयासों न सिर्फ सैकड़ों कलमकारी के चित्रकारों को बल्कि सैकड़ों दर्जियों को भी इस काम से जोड़ा। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के स्वरोजगार और महिला सशक्तिकरण के संदेश को दिल से अपनाया है। उन्होंने कलमकारी के कलाकारों की कूची और चित्रकारी को परंपरागत साड़ी के अलावा उसे आधुनिक डिजाइन्स, पैटर्न और परिधानों से जोड़कर एक नई शुरूआत की है। उन्होंने कलमकारी के नए अवतार को आंगिकम नाम दिया है। उनके ब्रांड का नाम आंगिकम है।
अक्सर, कलाकार अपनी कला को विस्तार देकर, उसे नया आयाम देते हैं। युवा कलाकारों को अपने साथ शामिल कर कुछ नया करने की प्रेरणा देते हैं। वहीं दूसरी ओर वह विभिन्न शैलियों की दूरियों को खत्मकर उन्हें जुड़ने का भी अवसर प्रदान करते हैं। कुचिपुडी नृत्य की वरिष्ठ नृत्यांगना व गुरु वनश्री राव ने अपने साथ भरतनाट्यम, कुचिपुडी और छऊ के कलाकारों को जोड़कर रसा यूनाइटेड की स्थापना की है। इसके जरिए उन्होंने कई नृत्य रचनाओें को पेश कर शास्त्रीय नृत्य जगत में एक नई पहल की है।
आंध्रप्रदेश के मछलीपत्तनम और कलहस्ती जैसे शहर कलमकारी के मुख्य केंद्र हैं। इसके बारे में वनश्री राव बताती हैं कि कलमकारी पहले चित्र और मंदिर की दीवारों पर की जाती थी। लेकिन, अब इसके डिजाइन कपड़ों पर भी नजर आने लगी है। मैंने अपने डिजाइनर्स साड़ी और वीयर्स के लिए कलमकारी को ही चुना।
डिजाइनर वनश्री राव बताती हैं कि कलमकारी के कलाकार विश्वनाथ रेड्डी का मुझे खास सहयोग मिला है। वह हुनरमंद चित्रकार हैं। वह कलम के जरिए चित्रों को बनाते हैं और नेचुरल कलर के इंक का इस्तेमाल डिजाइन बनाने में करते हैं। कलमकारी के लिए वह
बांस के टुकड़े या खजूर के पत्ते से कलम तैयारी करते हैं। डिजाइन की पैटर्न की आउटलाइन के लिए इमली की डाल को जला कर काली स्याही बनाई जाती है, उससे की जाती हैं। साथ ही, जिस कपड़े पर चित्रकारी की जाती है, उसे कई दिनों तक भैंस के दूध में भिंगोकर रखा जाता है, इससे चित्रकारी करना आसान हो जाता है। पर इसे सूखने में काफी समय लगता है। एक साड़ी को डिजाइन करने में तकरीबन छह महीने का समय लगता है।
वैसे तो कलमकारी के लिए चित्रकार अपनी कला मेें महाभारत, रामायण के साथ-साथ शिव पुराण और अन्य आध्यात्मिक और पौराणिक कथा को आधार बनाया जाता है। इस संबंध में फशन डिजाइनर वनश्री राव बताती हैं कि मैंने अपनी परिकल्पना से शिव विवाह, लोटस लेक व्यू जैसे नए कंसेप्ट को अपने साड़ी की डिजाइन के तौर पर इस्तेमाल किया है। इसे लोगों ने बहुत पसंद किया।
आप संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित कुचिपुडी नृत्यांगना हैं। फिर, आप फैशन जगत में कैसे आईं? इस सवाल के जवाब में हंसते हुए, वनश्री राव बताती हैं कि शुरू-शुरू में मैं अपने लिए ब्लाउज और जैकेट्स वगैर डिजाइन करवा कर अपने टेलर से सिलवाती थी। उन्हें पहनकर मैं जब कभी किसी समारोह में जाती, तब लोग मुझसे पूछते कि आपने किस डिजाइनर से खरीदा है। उस समय मैं हंस कर टाल जाती थी। उसी दौरान, मेरे पति गुरु जयराम राव जी ने मुझसे कहा कि तुम अपना काम शुरू करो और इस उपक्रम के लिए उन्होंने मुझे करीब पच्चीस हजार रूपए भी दिए। यह बात वर्ष 2009 की है। इसके बाद, यह सिलसिला चल पड़ा।
इस संदर्भ में वह आगे कहती हैं कि मैंने उन पैसों से दस डिजाइनर्स ब्लाउज तैयार किए। संयोग है कि उसी समय हमलोगों का सैन फैंसिस्को जाना हुआ। वहां मैं हर रोज साड़ी पहनती और तरह-तरह के अपनी डिजाइन की हुई तरह-तरह के ब्लाउज पहनती। हमारी आयोजिका जो खुद डांसर थी, मेरे ब्लाउज की डिजाइन से बहुत प्रभावित हुई। उसने मुझसे पूरे ब्लाउज ही खरीद लिया, इससे मेरा मनोबल और ऊंचा हो गया और आत्मविश्वास भी बढ़ गया। साड़ी और ब्लाउज के अलावा, जैकेट्स, कुर्ता, शाॅल, स्टाॅल, स्कर्ट आदि भी कलमकारी में लेकर आई। यह चुनौतीपूर्ण था। लेकिन, लोगों ने इस नए प्रयोग को पसंद किया।
अमेरिका से लौटने के बाद, मैंने फिर से सात मंगलगिरि साड़ी खरीदकर, उसमें अपने स्केच को चित्रकार विश्वनाथ रेड्डी से बनवाया। सौभाग्यवश, उन डिजाइनर्स साड़ी पर कस्तूरी मेनन जी की नजर पड़ गई। वह उन दिनों कमला क्राफ्ट कौंसिल की अध्यक्ष थीं। उन्हें मेरी साड़ियां पसंद आ गईं, उन साड़ियों को उन्होंने कोलकाता के एक प्रदर्शनी में भेजा। उसके उद्घाटन के लिए मशहूर गायिका ऊषा उत्थुप आईं थीं। वह मुझसे मिलकर और मेरी डिजाइंस से बहुत खुश हुईं। इस तरह कोलाकाता में मेरे डिजाइन की बहुत मांग थी। इसी क्रम में जयपुर डाॅट काॅम वालों ने भी मेरी साड़ियांे को डिस्प्ले किया। उनके आॅन-लाइन शाॅपिंग में एक दिन में ही मेरी साड़ियां बिक जाती हैं। मेरे कस्टमर दुबई, लंदन, अमेरिका, आॅस्टेलिया आदि देशों में हैं। मुझे खुशी है कि तसलीमा नसरीन, रितु कुमार, सत्यपाॅल, नसरीन जैसे लोग मेरी डिजाइंस किए वीयर्स को पहनते हैं और उसे पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, मैं अपनी डांस कोरियोग्राफी में भी खुद के डिजाइन किए परिधान ही कलाकारों को पहनाती हूं। मेरे क्लाइंट्स में डाॅक्टर, प्रोफेसर, सांसद, आईएएस अधिकारी सभी शामिल हैं। यह मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।
एक बिजनेस वीमेन के तौर पर वनश्री मानती हैं कि कोई भी व्यवसाय आपसी विश्वास पर चलता है। कोविड के समय जब काम लगभग बंद थे, तब भी मैंने अपने मास्टर टेलर अकरम और चित्रकार विश्वनाथ रेड्डी को उनके वेतन देती रही। हालांकि, वह मेरे लिए भी कठिन दौर था। कोविड के पहले मेरा हर महीने का छह से सात लाख का बिजनेस था। वह लगभग बंद हो गया था। इसके बावजूद मैं उनको हर महीने उनकी सैलरी देती रही ताकि उनको घर-गृहस्थी को चलाने में परेशानी नहीं आए।
गौरतलब है कि कुचिपुडी नृत्यांगना वनश्री राव ने गुरू जयराम राव और गुरू वेम्पति चिन्ना सत्यम से नृत्य सीखा है। वह नृत्य को अपना जीवन मानती हैं। कुछ साल पहले वह भूटान में नृत्य प्रस्तुत करने गईं थी। उसका जिक्र करते हुए, वह कहती हैं कि यात्रा के दौरान मुझे अहसास हुआ कि मेरी ऊर्जा और सक्रिया का एकमात्र स्त्रोत नृत्य है। इसलिए जब तक सांसे चलती रहेंगीं मैं युवा कलाकारों के साथ नृत्य करती रहूंगी। मेरी युवावस्था काफी संघर्षपूर्ण रहा। मुझे याद नहीं आता कि मैंने खुद को कभी सोलह या अठारह के उम्र की कोई रूमानियत पल में जीया हो। कभी यह लगा हो कि मैं बहुत खूबसूरत हूं या कभी खुद को संवारने की कोशिश की हो। उस समय तो सिर्फ एक ही सपना था, खुद को कामयाब बनाना है। मैं उस उम्र में भी अपनी जिम्मेदारी समझती थी, यह जानती थी कि मेरा एक फैसला मेरी जिंदगी के रूख को पूरी तरह बदल देगा। बहुत समझदारी और जिम्मेदारी से अपने कदम बढ़ाया करती थी। हां, मैंने जो भी करना चाहा, वो काम किया। क्योंकि, आज कल लोगों को उदास या अवसाद में देखती हूं कि वह अपने जीवन में करना कुछ और चाहते थे पर कुछ और ही करते रहे।
कुचिपुडी नृत्यांगना और डिजाइनर वनश्री राव कहती हैं कि दरअसल, बचपन में तो हमें समझ नहीं आता कि जिंदगी क्या है? पर किशोरावस्था आते-आते इतना समझ तो आने ही लगा कि जो जन्म लेगा, उसका मरना निश्चित है। यानी जीवन नश्वर है। इसलिए, यह जीवन मूल्यवान है। वैसे भी मानव जीवन एक बार ही मिलता है। मैं पुर्नजन्म में भी विश्वास करती हूं। हालांकि, यह पता नहीं कि अगला जन्म कब और किस रूप में होगा। क्यांेकि, मुझे लगता है कि एक जीवन में हम सब कुछ नहीं कर पाते, इसलिए हमारा पुर्नजन्म होता है। फिर, जीवन के इस मुकाम पर मैं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि बचपन और युवा अवस्था में बहुत संघर्ष की हूं। इस संघर्ष में मुझे अपने परिवार, भाई-बहन और पति का पूरा-पूरा साथ मिला। और मैंने जो भी चाहा वो काम किया और उसमें मुझे सफलता भी मिली।