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Sunday, November 14, 2021

कलाएं-संवाद का सशक्त माध्यम ---शशिप्रभा तिवारी



 


 कलाएं-संवाद का सशक्त माध्यम 

शशिप्रभा तिवारी

बंगाल के घर-घर में जिस तरह से रवींद्र संगीत-नृत्य के सुर-ताल गंूजते हैं, वैसे ही असम में सत्रीय संगीत-नृत्य गंूजते हैं। असम में लगभग हर परिवार में सत्रीय नृत्य व संगीत के प्रति अनुराग है। ग्रामीण अंचल के आश्रम स्वरूप सत्रों में सत्रीय नृत्य पला-बढ़ा है। हालांकि, असम में शास्त्रीय नृत्य के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए कलाकार जुड़े हुए हैं। इस संदर्भ में, रंगायन संस्था की पहल सराहनीय है। रंगायन की संस्थापिका डाॅ शारोद सैकिया हैं। रंगायन फेस्टीवल आॅफ आर्ट एंड लिटरेचर का यह तीन दिवसीय आयोजन था। 

सत्रीय नृत्यांगना डाॅ शारोदी सैकिया बताती हैं कि सत्रीय नृत्य के अलावा, अन्य शास्त्रीय नृत्य शैलियों से असम के दर्शक जुड़ें। मैं मानती हूं कि कला और साहित्य की सभी विधाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती है। रंगायन उत्सव में शास्त्रीय नृत्य का समारोह रंग छंद आयोजित किया गया। इसमें ओडिशी नृत्यांगना अंजना मई सैकिया, कुचिपुडी नृत्यांगना टी रेड्डी लक्ष्मी, मोहिनीअट्टम नृत्यांगना जयप्रभा मेनन, कथक नृत्यांगना रूपारानी दास बोहरा और सत्रीय नृत्यांगना मीरनंदा बड़ठाकुर ने भागीदारी की। इसके अलावा, इस आयोजन में कथा रंग, चित्रकथा, रंग चर्चा, रंग कल्प, मुक्त रंग शामिल थे। इसमें चित्रकला, साहित्य, कविता, नाटक सभी विधाओं के कलाकार शिरकत करते रहे हैं।

                                              

शारोदी सैकिया मानती हैं कि सत्रीय नृत्य के प्रशिक्षण की कोई समेकित व्यवस्था नहीं है। सत्रों में परम्परा कायम है। वहाँ संगीत, नृत्य, वाद्यों, साहित्य सभी को समान महत्व दिया जाता है। जबकि, शहरों में सत्रीय के प्रशिक्षण संस्थाओं में ऐसा लगता है कि सब को अलग-अलग कर दिया गया है। इससे कई कलाकार अपनी क्षमता के अनुरूप चीज़ों को ग्रहण नहीं कर पाते। साथ ही नृत्य में उथलापन नज़र आता है। आजकल बच्चों से ज़्यादा जल्दी, माता-पिता का बच्चों को मंच पर पहुँचाने की हड़बड़ी है, जो कला की दृष्टि से सही नहीं है। साथ ही, सत्रों की आर्थिक स्थिति पर सरकार को विचार करना होगा। ताकि सत्र के युवा ब्रह्मचारी, वहाँ से पलायन कर, शहर की ओर रुख नहीं करें। तभी इसकी शुद्धता को कायम रखा जा सकता है। 

शारोदी सैकिया बताती हैं कि प्र्रोसीनियम या मंच के लिए तैयार की गई सत्रीय प्रस्तुतियाँ, बिना अपने आवश्यक गुणों के, कई बार अर्थहीन और भावहीन प्रतीत होती हैं। मुझे लगता है कि भातिमा, श्लोक और यहाँ तक कि धेमाली को भी मंच पर मोहक अंदाज़ में पेश किया जा सकता है। पहले तो ज़्यादातर सामूहिक सत्रीय प्रस्तुतियाँ ही होती थीं लेकिन गुरु रसेस्वर सैकिया ने मुझे हमेशा एकल नृत्य के लिए ही प्रेरित किया। जिससे भरतनाट्यम् और अन्य नृत्य शैलियों की तरह उसे भी सीखना और मंच पर पेश करना आसान हो जाए। 

रंगायन उत्सव में रंग छंद समारोह में ओडिशी नृत्यांगना अंजनामोई ने शिरकत किया। अंजनामोई ने ओडिशी नृत्य गुरू पवित्र कुमार प्रधान और गुरू केलुचरण महापात्र से सीखा है। उन्होंने प्रतिमा गौरी बेदी के सानिध्य में कई वर्षों तक नृत्य साधना की। अंजनामोई बताती हैं कि शुरू-शुरू में गुवाहाटी में ओडिशी नृत्य सीखती थी। फिर, छुट्टियों में भुवनेश्वर जाती। वहां गुरू जी से नृत्य सीखा। मेरी पहली मुलाकात प्रतिमा गौरी जी से दिल्ली में हुई थी। उन्होंने नृत्यग्राम बुलाया। उनके साथ काम करने का लंबा अवसर मिला। इनदिनों मैं सुजाता महापात्र से मार्ग दर्शन ले रही हूं।



ओडिशी नृत्यांगना अंजनामोई ने रंग छंद समारोह पल्लवी पेश किया। यह राग खमाज और झंपा ताल में निबद्ध था। दूसरी नृत्य प्रस्तुति अभिनय थी। यह सूफी संत सालबेग की रचना पर आधारित थी। इन दोनों नृत्य रचनाओं की परिकल्पना गुरू केलुचरण महापात्र की थी। इनका संगीत पंडित भुवनेश्वर मिश्र ने रचा था। सालबेग की रचना ‘आहे नील शैल प्रबलमत्त वरणे‘ में गजराज, द्रौपदी शील हरण व प्रहलाद के प्रसंगों को संचारी भाव में उन्होंने दर्शाया।

बहरहाल, रंग छंद समारोह में नृत्यांगना मीरनंदा बड़ठाकुर ने रामदानी और अभिनय पेश किया। उन्होंने एक ओर रामदानी में सत्रीय नृत्य के तकनीकी पक्ष को पेश किया। वहीं अभिनय में कृष्ण से जुड़े माखनचोरी प्रसंग को मोहक अंदाज में निरूपित किया। 

                                         

कुचिपुडी नृत्यांगना रेड्डी लक्ष्मी ने महाराजा स्वाति तिरूनाल की रचना ‘आज आए श्याम मोहन‘ पेश किया। यह राग शुद्ध सारंग और मिश्र चापू ताल में निबद्ध था। इसमें महाभारत के द्रौपदी प्रसंग का प्रभावपूर्ण चित्रण पेश किया। उनकी दूसरी पेशकश ‘दुर्गा स्तुति‘ थी। यह राग रेवती और आदि ताल में थी। यह गुरू जयराम राव और वन श्री राव की रचना थी। रचना ‘ए गिरिनंदिनी‘ और ‘दुर्गा स्तुति‘ पर देवी दुर्गा के रौद्र रूप का सुंदर विवेचन पेश किया। 


    

मोहिनीअट्टम नृत्यांगना जयप्रभा मेनन ने महाराजा स्वाति तिरूनाल की रचना ‘चलिए कंुजन में‘ को नृत्य पिरोया। राधा और कृष्ण के माधुर्य श्रंृगार का मोहक वर्णन पेश किया। उनकी दूसरी प्रस्तुति जीव थी। यह मरमा ताल में थी। मोहिनीअट्टम की शुद्ध नृŸा पक्ष को विशेषतौर पर उकेरा। 

                                  

कथक नृत्यांगना रूपारानी ने शिव स्तुति पेश किया। उन्होंने तीन ताल और एक ताल में शुद्ध नृŸा प्रस्तुत किया। उन्होंने विलंबित और द्रुत लय में उपज, उठान, थाट, आमद पेश किया। गजगामिनी, सादी और रूख्सार की गतों को गतनिकास में प्रस्तुत किया। वहीं कवि अतुलचंद्र हजारिका की कविता देवदासी को रूपा रानी ने अभिनय में ढाला। रूपारानी दास की यह भावपूर्ण प्रस्तुति थी। 


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