योग-सांस्कृतिक कूटनीति का अभिन्न अंग है!-ऊषा आर के
ऊषा आरके का नाम कला जगत में काफी लोकप्रिय है। इनदिनों ऊषा जी माॅस्को में भारतीय दूतावास के जवाहरलाल नेहरू संस्कृति केंद्र में बतौर निदेशक कार्यरत हैं। वह संस्कृति मंत्रालय में भी दायित्व निभा चुकी हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान यूनेस्को से योग, कुंभ मेला, वाराणसी व चेन्नैई को सृजनात्मक नगर आदि परियोजना को मान्यता दिलाने में सफल रहीं। उन्हें शास्त्रीय संगीत और नृत्य जगत के अनेक कलाकारों के साथ कार्य करने के अवसर मिले हैं। हाल ही में पूरे विश्व ने योग पर्व मनाया है। उसी संदर्भ में, माॅस्को में योग पर्व के बारे में ऊषा जी बता रही हैं-शशिप्रभा तिवारी
आपके अनुसार योग क्या है?
पूरी दुनिया में सभी यही मानते हैं कि योग करने से आप स्वस्थ रहोगे। आपके शरीर में लचीलापन होगा तो आप फुर्ती से कोई भी काम कर पाएंगें। आप भागदौड़ कर पाएंगें। आपकी तबीयत ठीक रहेगी तो आप सांस लेने का, शरीर के विभिन्न अंग सुचारू तंदरूस्त रहेंगें। यही संदेश भारत विश्व समाज तक योग के माध्यम से पहुंचाया है।
वास्तव में, योग सिर्फ शारीरिक व्यायाम भर नहीं है। यह अध्यात्मिक मार्ग भी है कि हम अपने मन के अंदर झांक कर देखें और मानसिक शक्ति को बढ़ाएं। यह महत्वपूर्ण बात है कि हमारा मानसिक स्तर, आत्मिक स्तर और सकारात्मक विचार का स्तर को मजबूत करना है। ये सारी चीजें जो हमारे भीतर समाहित हैं, इन्हें भी तलाशना है। दरअसल, योग को हमें पूरे 360 डिग्री के कोणात्मक या समग्र रूप में देखना उचित है। तभी हमें समझ आएगा। हम मंत्र के उच्चारण करने के लिए नहीं कर रहे है। सूर्य नमस्कार सिर्फ व्यायाम नहीं है। यह प्रार्थना है कि सूर्य की किरणें हमारे ज्ञान चक्षु को खोलें। वह मानस को उज्जव करें। उसके मंत्र के बारे में बताना चाहिए।
पतंजलि के सूत्र के अनुसार हम अपने चित्त को अंदर से विकार रहित बनाएं। मन की वृत्ति ही चित्त में परिलक्षित होती है। अगर हमारे मन की वृत्ति से नकारात्मक विचार निकल रहे हैं। इसे हम सकारात्मक कैसे बनाएं। मन को इन विकारों से कैसे बचाएं। मानस को विकार रहित बनाना और सकारात्मक सोच विकसित करना ही एक तरह से योग है। पतंजलि के योग सूत्रों को हम आमजन की भाषा में पिरोकर प्रस्तुत करेंगें तो यह महान कार्य होगा। पतंजलि ऋषि ने योग के सूत्रांे का ही तो संकलन अपने सूत्र के श्लोकों में किया है। उनको सरल भाषा में लोगों को बताना होगा। यही योग सिखाता हैै। योग सिर्फ शारीरिक प्रक्रिया नहीं है, यह आत्मिक क्रिया भी है।
योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता कैसे संभव हो पाया?
पहली बात तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूनेस्को ने इसे मान्यता प्रदान की। यह बहुत बड़ी चीज है। यह मानवीय सम्पत्ति है। पहले भी लोग भारत आकर योग सीखने आते थे। फिर, उसे नियमित करते थे। पर इसे योग दिवस-21जून को घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मोदी जी ने इसको विश्व उत्सव का रूप दे दिया। भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को प्रधानमंत्री योग खुद करते हैं। और पूरे विश्व को प्रेरित करते हैं। जो आप करते हो, उसे करके दिखा रहे हैं। यानि आपकी कथनी-करनी एकसार हैं, इससे उस स्तर पर सम्मान मिला। विश्व में जैसे अंतरराष्ट्रीय पिता या माता या अन्य दिवस मनाए जाने का सिलसिला चलता रहा है, वैसे ही इस योग दिवस को भी लोग विश्व स्तर पर मना रहे हैं। यह दिन हमें पे्ररित करता है कि हम स्वस्थ, सुखी और खुशहाली भरा जीवन जीएं।
मेरा योगदान रहा है। जब योग को यूनेस्को से मान्यता दिलाने के लिए काम हो रहा था, उस समय मुझे भी इस अभियान से जुड़ने और काम करने का अवसर मिला। मैं उस दौरान आयुष मंत्रालय के साथ काम किया। जिनका बहुत बड़ा योगदान रहा। तत्कालीन मंत्री श्रीपाद नाइक जी ने बहुत मनोयोग के साथ काम किया। पूरे देश के दस-बारह योग के वरिष्ठ विद्वानों की बैठक में सब कुछ तय हुआ। बहुत से विचार-विमर्श हुए। योग प्रकृति से जोड़ता है। आत्मा और शरीर को जोड़ता है। मानव शरीर के चक्र ऊर्जा के स्त्रोत हैं। ऐसी प्रक्रिया जिससे मानसिक, शारीरिक और आत्मिक तौर पर शरीर को स्वस्थ बनाए। ऐसा दिव्य ज्ञान पूरे विश्व में कहीं भी नहीं है।
क्या आपको लगता है कि योग की लोकप्रियता भारतीय ज्ञान परंपरा की स्वीकार्यता है?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग को आध्यात्मिक और सामाजिक स्वीकृति व समर्थन मिलना बहुत महत्वपूर्ण बात है। ये है-आपका जीवन जीने का मार्ग, अगर आपको स्वस्थ, सुखी और शांतिपूर्ण जीवन चाहिए। हमारे देश की परंपरा, संस्कृति, ज्ञान, व्यवहार, प्रयोग सभी को विश्व ने इसको सम्मान दिया है। इसकी महत्ता को स्वीकार किया है। हमारे परंपरागत ज्ञान की स्वीकार्यता बहुत है। लेकिन, हम को आधुनिक पीढ़ी को समझाना है कि संस्कृति, संस्कार, विरासत कभी बोरिंग नहीं हो सकते हैं। यह पुरानी चीजें लगातार उनको पुर्ननीविनीकरण या पुर्नपरिष्ककार होाता रहा है। अब, शादी की परंपरा को ही देख लीजिए। हमारे यहां शादियों के समारोह एक महीने तक चलता था। फिर दस दिन के होने लगे। इसके बाद, चार दिन के होने लगे। और अब तो सारे रीति-रिवाज एक दिन में ही पूरे किए जाने लगे हैं। इन सबके बावजूद हम अपने किसी रीति-रिवाज को छोड़ते नहीं है। सांस्कृतिक परंपरा और मूल्य को पूरी तरह से निभाते हैं।
हमारी ऋषियों ने, साधु संतों ने त्यागराज ने तेलुगु में एक रचना लिखी है। जिसमें वह कहते हैं कि इस मोहल्ले में कोई बड़े-बुजुर्ग नहीं है, जो जवान लड़कों को समझाए कि लड़कियों को छेड़ना नहीं चाहिए। अब ये गाना सत्रहवीं शताब्दी में भी प्रासंगिक था और आज भी है। जब निर्भया काण्ड हुआ, तब लोगों ने आवाज उठाई थी कि पुरूषों को स्त्री के प्रति या लड़कियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। जिस विषय पर आज लोग बात कर रहे हैं, उस विषय पर हमारे संत सत्रहवीं शताब्दी में ही बात कर चुके हैं। ऐसा नहीं है कि इन विषयों पर हमने नहीं सोचा। बस जरूरत है कि हमें उनको समय के साथ भूलने के बजाय सिर्फ याद रखने की जरूरत है।
आज सब लोग हाथ मिलाने के बजाय नमस्ते या प्रणाम करने लगे हैं। जबकि, कुछ समय पहले तक हाथ न मिलाने को बैकवर्ड माना जाता है। आज की तारीख में विश्व में हर देश में लोग नमस्ते करने लगे हैं। इतना ही नहीं, हमारे तो जीवन का अंग रही है-हल्दी और अदरक। इसे आज रूस, अमेरिका, यूरोप सभी जगह लोगों में अपनाने की होड़ लगी हुई है। रूस में खासतौर पर महिलाएं रात में बच्चों को दूध में हल्दी और केसर पकाकर पिला रहीं हैं और पी रही हैं। वास्तव में, हमारी परंपराएं हमेशा प्रासंगिक थीं और हैं। जरूरत है इसे पुरजोर तरीके से दुनिया के सामने रखने की जरूरत है।
रूस में योग कितना लोकप्रिय है?
रूस में तो योग जीवन शैली बन गई है। वर्ष-2015 से अब तक हर साल पचास हजार लोग योग करते हैं। यहां बहुत से शहर में जगह-जगह योग केंद्र, योग क्लास, योग शिक्षक हैं, जो योग बहुत समर्पित होकर सिखाते हैं। यहां योग से संबंधित मंत्रोच्चार, प्रदर्शन, सब कुछ मिल जाते हैं। हमारे जवाहर लाल नेहरू सांस्कृतिक कंेद्र में योग के औसतन सुबह से रात तक सात कक्षाएं चलती हैं। दिन भर में अस्सी लोग योग सीखने आते हैं। इनके अलावा, नृत्य सीखने वाले छात्र-छात्राएं भी योग सीखते हैं। कई डाॅक्टर भी सीखने आते हैं। हमारे राजदूत वेंकटेश वर्मा और विनय प्रधान का मुझे हर आयोजन में विशेष सहयोग मिलता है। हम हर महीने योग या आयुर्वेद पर गोष्ठी या परिचर्चा रखते हैं। हमें योग को खास प्रोत्साहित करते हैं।
योग भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसके जरिए अंतरराष्ट्रीय संबंध कैसे प्रगाढ़ बनाए जा सकते हैं?
हमारा अंतरराष्ट्रीय संबंध का विशेष आधार है-संस्कृति कूटनीति। इसे हम शाॅफ्ट पावर कहते हैं। सुषमा स्वराज जी का भी यही मानना था कि हम अपनी सांस्कृतिक मूल्यों से विश्व को जोड़ें। योग के जरिए हम इसे प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस वर्ष हमारा योग पर्व बहुत खास रहा। मैं बताना चाहूंगी कि यहां वोल्गा नदी के किनारे संगीत-नृत्य का विशेष समारोह समारा फेस्ट आयोजित किया जाता है। जैसे वाराणसी में गंगा महोत्सव होता है। मैं इसी के मद्देनजर यहां के संस्कृति मंत्री से मिलने गई। मैंने उन्हें सुझाव दिया कि वोल्गा फेस्ट में योग को जोड़ देने से बहुत अच्छा होगा। संभव हो तो इस फेस्ट का समापन योग पर्व से किया जाए। वह बहुत खुश हुईं। वह मान गईं। सो बारह से उन्नीस जून तक रोज सुबह सैकड़ों लोग इकट्ठे होकर योग करते थे। इसका समापन बहुत अद्भुत था। मेरे लिए इस आयोजन को शब्दों में बता पाना थोड़ा मुश्किल है।
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