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Monday, October 28, 2013

दूर से कभी आवाज़ आती
मैं कुछ पल
सहम कर
उस आवाज़ में
 बहुत कुछ तलाशने की कोशिश करती

आवाज़ के सहारे जानना चाहती
तुम्हारे मन के भाव क्या हैं
तुम्हारी तबीयत कैसी है
तुम ठीक तो हो न

उसमें जब ख़ुशी छलकती
मन पंछी गुनगुनाता और
तुम्हारे पास उड़ आना चाहता है
लेकिन, मन चुप रह महसूस करना चाहता है

तुम जब भी अनमने रहे
मैं दूर बैठी तुम्हारी आवाज़ को
अपने भीतर बहुत गहरे गुनगुनाती रही
पल-पल की नरमी-मिठास को
तुम्हारी आवाज़ यूँ ही बयां करती है

जिसे कभी-कभी
तुम नहीं बोलते हो
तब भी मैं सुनती रहती हूँ
तुम्हारी मीठी बातें, यूँ मेरे कानो में गूंजती हैं 

Wednesday, October 23, 2013

सांवरे बदन को निरख
मन ही मन असीसता है, मन
क्यों विमुख होते हो कान्हा
तुम बिन
अब तो उदास है, मन
क्यों दूर जाते हो तुम

जानते हो
सांवले घन में से झांकता
मन ही मन अठखेलियाँ करता है, मन
क्यों उन्मेष होते हो कान्हा
तुम बिन
अब तो खामोश है, मन
क्यों चुप हो जाते हो तुम

तुम्हारे
मीठी बांसुरी की धुन में रमता
मन ही मन नाचता है, मन
क्यों अभिलासित होते हो कान्हा
तुम बिन
अब तो निरखता है, मन
क्यों नहीं बजाते हो बांसुरी तुम

Tuesday, October 1, 2013

यह लौ बहुत धीरे-धीरे जलती है
हवा का एक झोंका
कब इसे बुझा दे
डरती हूँ मैं
अपनी हथेलियों की  ओट में
छुपा कर रखा है
जानती हूँ मैं
तपन से जल जाएगी  मेरी कोमल हथेली
जानते हो बहुत कुछ बस में नहीं होता
आँख बंद कर जिन्दगी जीना
कौन चाहता होगा भला
पर सूने परकोटे पर
दीया जलाये रखना जिद नहीं
जिन्दगी की सांसों को
भरते रहने का अंदाज़ भर है
इस लौ को तुम इतनी तेज से मत सांसें देना
वर्ना जिन्दगी अँधेरे से भर जाएगी
फिर,गुमनाम से फिरने लगेंगी
मेरी सांसे जिन्दगी को
 तलाशने के खातिर