shashiprabha
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Thursday, June 19, 2025
#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी/चर्चित पुस्तक ‘चंदन किवाड़-संस्कृति के आंगन में खुलती है!
Wednesday, May 14, 2025
#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी----गुंजायमान संध्या कवि जयदेव की अष्टपदी से
Friday, May 9, 2025
shashiprabha: #आज के कलाकार @शशिप्रभा तिवारी
#आज के कलाकार @शशिप्रभा तिवारी
#आज के कलाकार @शशिप्रभा तिवारी
मंगलोत्सव में गुरु का स्मरण
मंगलोत्सव का आयोजन पिछले दिनों इंडिया हैबिटैट सेंटर में किया गया। यह आयोजन बनारस घराने की प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका विदुषी गिरिजा देवी की स्मृति में था। गिरिजा दर्शन ट्रस्ट की ओर से गिरिजा देवी के 96वें जन्म दिवस पर यह समारोह आयोजित था।
आठ मई की शाम कुछ बोझिल सी थी। एक तरफ देश की सीमाओं पर तनाव का माहौल बना हुआ था। और लगातार पत्रकार मित्रों के संदेश आ रहे थे। जिससे हर किसी का थोड़े से तनाव में आ जाना लाजिमी था। इन सब के बावजूद, कलाकारों का संकल्प नमन करने योग्य है, क्योंकि आयोजिका शास्त्रीय गायिका और अप्पा जी की शिष्या सुनंदा शर्मा ने कार्यक्रम में शिरकत भी किया और आयोजन को सफलतापूर्वक संपन्न करवाया। शायद, इसलिए कला के उपासक भारतीय संस्कृति में वाग्देवी के आराधक श्रेष्ठ माने जाते हैं। वैसे भी भारत में तो युद्ध से पहले भी रणभेरी, नगाड़े, शंख आदि बजाने की परंपरा है। वास्तव में, यह नाद अराधन भी राष्ट्र अराधन का ही रूप है। अतः इस आयोजन में भाग लेने वाले कलाकारों के साथ-साथ सभागार में उपस्थित हर श्रोता वंदनीय है।
शास्त्रीय गायिका सुनंदा शर्मा ने अपनी गुरु को याद करते हुए, कहा कि अप्पा जी सिर्फ मेरी गुरु नहीं थीं, वे मेरी संगीत और जीवन यात्रा की प्रेरणा थीं। मंगलोत्सव का यह आयोजन मेरे लिए उनको एक श्रद्धांजलि है। साथ ही यह वादा भी कि मैं उनकी परंपरा को पूरे समर्पण से आगे बढाऊंगी।
पठानकोट में जन्मी और पली बढ़ी गायिका सुनंदा शर्मा ने अपने गुरु के साथ लंबा समय बीताया। वह बनारस में रहकर गुरु शिष्य परंपरा में संगीत की शिक्षा लीं, बल्कि बनारस की संस्कृति-संस्कारों को अपनाया है। इसलिए, उनके संगीत में सिर्फ बनारस घराने के सुर ही नहीं हैं, बल्कि बनारसीपन भी झलकता है। बहरहाल, समारोह में वह जुगलबंदी पेश करने को उपस्थित थीं। उनके साथ बांसुरीवादक रूपक कुलकर्णी थे। दोनों ही कलाकार एकल प्रस्तुति के लिए जाने जाते हैं। लेकिन, सुनंदा शर्मा और रूपक कुलकर्णी ने बहुत ही संतुलित और संयमित संगीत पेश किया। संगीत में मुख्य कलाकार को संगत करना एक बात होती है और जुगलबंदी विशेष हो जाती है। इस प्रस्तुति का आगाज, राग यमन कल्याण के आलाप से हुआ। दोनों ही कलाकारों ने सांध्यकालीन राग के आलाप में तीव्र मध्यम और अन्य शुद्ध स्वरों का प्रयोग मोहक था। इसी क्रम में सुनंदा ने मध्य लय में रचना ‘न जानू कैसी प्रीत‘ को सुरों में पिरोया। इसके बरक्स बांसुरी पर रूपक कुलकर्णी में लयकारी और तानों को पेश किया। तीन ताल में निबद्ध बंदिश की बढ़त में बोल और आकार की तानों का प्रयोग भी सरस था। अगले अंश में गायिका सुनंदा शर्मा ने मिश्र खमाज में ठुमरी ‘इतनी अरज मान मान ले‘ गाया। यह जत ताल में थी। अंत में, अप्पा जी की मशहूर कजरी ‘कहनवा मान ओ राधा रानी‘ को सुरों में पिरोया। तबले पर पंडित मिथिलेश झा और हारमोनियम पर डाॅ सुमित मिश्रा ने रसमय संगत किया। कलाकारों की इस प्रस्तुति ने अच्छा समां बांधा।
अगले कलाकार वरिष्ठ शास्त्रीय गायक पंडित साजन मिश्रा और उनके शिष्य स्वरांश मिश्रा थे। उन्होंने राग बागेश्वरी पेश की। उन्होंने राग बागेश्वरी के आलाप से गायन आरंभ करने के बाद, विलंबित लय की बंदिश को सुरों में पिरोया। बंदिश के बोल थे-‘रे कौन गत भई‘। यह एक ताल में निबद्ध थी। उन्होंने मध्य लय की बंदिश ‘एरी मैं कैसे घर जाऊं‘ को सुरों में ढाला। उन्होंने पंडित राजन मिश्रा रचित बंदिश ‘जमुना जल भरन न देत कन्हाई‘ को पेश किया। उन्होंने तराने को भी गाया। उनके साथ तबले पर पंडित विनोद लेले और हारमोनियम पर डाॅ विनय मिश्रा थे।
कार्यक्रम में गाने से पूर्व पंडित साजन मिश्र ने कहा कि आज का कार्यक्रम गुरु की याद में सुनंदा जी कर रही हैं। अप्पा जी बनारस घराने की वरिष्ठ कलाकार थीं। मेरा बचपन से उनसे तालुक था। यह अद्भुत संयोग है कि उनको समर्पित सुबह बनारस में एक कार्यक्रम में गाया और शाम को भी उन्हीं को समर्पित उत्सव में गा रहा हूं।
Tuesday, May 6, 2025
shashiprabha: #आज का कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी-------- गुरु मौन प्...
#आज का कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी-------- गुरु मौन प्रकाश है-ज्योति श्रीवास्तव
गुरु मौन प्रकाश है-ज्योति श्रीवास्तव
पिछले दिनों जयदेव उत्सव का आयोजन संचारी फाउंडेशन की ओर से किया गया। यह दो दिवसीय आयोजन एक और दो मई 2025 कां था। इंडिया हैबिटैट सेंटर में आयोजित उत्सव का समापन ओडिसी नृत्यांगना ज्योति श्रीवास्तव के नृत्य से हुआ। उन्होंने देवप्रसाद शैली का अनुसरण करते हुए, अभिनय से पगा नृत्य पेश किया। उनकी पहली पेशकश प्रोषितभर्तृका नायिका थी। उनका नृत्य अष्टपदी-‘विहरति वने राधा साधारणप्रणये‘ पर आधारित थी। यह रचना राग मिश्र काफी और जती ताल में निबद्ध थी। दूसरी प्रस्तुति अष्टपदी ‘रती सुख सारे गतम् अभिसारे‘ थी। इसमें वासकसज्जा नायिका के भावों को दर्शाया।
ओडिसी नृत्यांगना ज्योति श्रीवास्तव देश की जानीमानी ओडिसी नृत्यांगना हैं। उन्होंने गुरु दुर्गा चरण रणबीर और गुरु श्रीनाथ राउत की नृत्य रचनाओं को परंपरागत अंदाज में पेश किया। उन्होंने अभिनय में नायिका राधा और नायक कृष्ण के भावों को बहुत परिपक्वता और सुघड़ता से निभाया। उन्होंने नेत्रों, मुख और हस्तकों के जरिए एक एक बारीकी को खूबसूरती से उकेरा। अष्टपदी में राधा और कृष्ण के अलौकिक प्रेम का वर्णन है। देवप्रसाद ओडिसी नृत्य शैली में गुरुओं का मानना है कि राधा और कृष्ण दोनों एक हैं। राधा प्रकृति के हर अंश में कृष्ण का दर्शन करती है। नायिका राधा का विशेष प्रकृति प्रेम ही नृत्यांगना ज्योति के अभिनय में रूपायित होता दिखा। उनका अभिनय स्थूल से सूक्ष्म या द्वैत से अद्वैत को परिभाषित करता प्रतीत हुआ। इसमें नृत्य, गुरु और कला के प्रति समर्पण भाव का योगदान है, क्योंकि लंबे समय तक अपने नृृत्य कला को संजोकर रखना कलाकार के लिए एक चुनौती होती है। यह लगातार अभ्यास और कला के प्रति विशेष लगाव से ही संभव है। वास्तव में, अभिनय की सूक्ष्मता में अपने गुरु की शैली की शुद्धता कायम रखना आज के समय कलाकारों के लिए बड़ी जिम्मेदारी है। यही उनकी विशेषता भी है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों उनके गुरु दुर्गा चरण रणबीर पùश्री से सम्मानित हुए। गुरु को सम्मान मिलना एक शिष्य के लिए गौरव का विषय होता है। इस बात को ओडिसी नृत्यांगना ज्योति श्रीवास्तव भी मानती हैं। और इसी मद्देनजर उन्होंने गुरु के सम्मान में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रात्री भोज का आयोजन किया। इस सम्मान मिलन समारोह में राजधानी दिल्ली की कई नृत्यांगनाएं शामिल हुईं। इस अवसर पर गुरु दुर्गा चरण रणबीर, उनकी पत्नी और नृत्यांगना पुत्री भी उपस्थित थे।
ओडिसी नृत्यांगना ज्योति आगे कहती हैं कि गुरु के ज्ञान से पूरा जगत प्रकाशित होता है। आज मैं जो कुछ भी हूं, उसका पूरा श्रेय गुरु जी को ही जाता है। गुरु कृपा कई जन्मों के सुकर्म का फल होता है। हम अपनी संतान के जन्म के साथ ही उसके पालन पोषण में अपना सर्वस्व न्योछावर करते हैं। लेकिन कला जगत में गुरु को तो हम जानने के बाद ही उनसे जुड़ते हैं। उनको स्वीकार करते हैं। गुरु का सम्मान हम नहीं करते, तो यह कला के साथ बेईमानी है। गुरु के प्रति प्रेम, गुरु की सीख, गुरु की डांट, उनके द्वारा दी गई सजा, सब कुछ गुरु का प्रसाद है। उसे इसी रूप में हम ग्रहण करते हैं। तभी गुरु शिष्य का संबंध प्रगाढ़ बन पाता है। गुरु से जुड़कर ही हम कला के पथ के पथिक बन पाते हैं क्योंकि हमारी कलाएं अध्यात्मिक हैं। इसे अपनाने से पहले हमें भक्ति और अध्यात्म भाव से खुद को परिपूर्ण करना जरूरी है। गुरु दीपक की तरह है। दीपक कुछ बोलता नहीं है। दीपक मौन रहता है, उसका प्रकाश ही उसका परिचय देता है। सफल व्यक्ति कभी खुद को उजागर नहीं करते, बल्कि उनकी उपलब्धियां उन्हें उजागर करती हैं। गुण या कला या हुनर ही गुरु का प्रकाश है, जो शिष्यों के भी ज्योतिरूप में प्रकाशित होता है।