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Wednesday, July 16, 2025
shashiprabha: #आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी ------रश्मि खन्ना --...
#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी ------रश्मि खन्ना -----नई पौध तैयार करने में जुटी हैं
#आज के कलाकार@शशिप्रभा तिवारी
रश्मि खन्ना -----नई पौध तैयार करने में जुटी हैं
नृत्य सीखना और सिखाना दोनों आनंद की अनुभूति से गुजरना है। ऐसा भरतनाट्यम नृत्यांगना और गुरु रश्मि खन्ना मानती हैं। वह गुरु कल्याणी शेखर की शिष्या हैं, जिनके गुरु के एन दंडयुद्धपाणी पिल्लै रहे। गुरु रश्मि ने भरतनाट्यम के अलावा, लोकनृत्य, कथक और छऊ भी सीखा है। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य कला परिषद और दूरदर्शन की मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। रश्मि ने कर्नाटक संगीत की शिक्षा विजय लक्ष्मी कृष्णन और विद्वान जी इलंगोवन के सानिध्य में ग्रहण की है। नटुवंगम की बारीकियों को हेमंत लक्ष्मण से सीख रही हैं।
गुरु रश्मि मानती हैं कि कला की दुनिया में सीखना निरंतर चलता रहता है। वह कहती हैं कि मैं अपनी गुरु कल्याणी शेखर से बहुत प्रभावित रही। जब तक वह जीवित रहीं, मैं अपनी सारी व्यस्तताओं के बावजूद हर वृहस्पतिवार उनके सान्निध्य में रह कर व्यतीत करती थी। मुझे उन्होंने बहुत ज्ञान दिया है। उसको संभाल कर पाऊं। वही मेरे लिए बहुत है। इनदिनों मैं गुरु गोविंदराजन पर शोधकार्य कर रही हूं। उन्होंने राजधानी दिल्ली में रहकर भरतनाट्यम नृत्य और कर्नाटक संगीत के क्षेत्र में अपूर्व योगदान दिया है। उन्होंने जी इलंगोवन, मैरी इलंगोवन और जी रघुरामन जैसे बहुत से कलाकारों को तैयार किया। अपने शोध के माध्यम से मैं उनको आज की पीढ़ी के सामने लाना चाहती हैं।
बहरहाल, राजधानी दिल्ली में उन्होंने अपने नृत्य संस्थान का नामकरण गुरु कल्याणी शेखर के नाम पर कल्याणी कला मंदिर रखा है। यह संस्थान पिछले पच्चीस सालों में लगभग दौ सौ प्रस्तुतियों का आयोजन कर चुका है। कल्याणी कला मंदिर में लगभग दो सौ छात्राएं भरतनाट्यम सीख रही हैं। अब तक गुरु रश्मि खन्न ने बीस छात्राओं को अरंगेत्रम के जरिए मंच प्रवेश की अनुमति प्रदान की है। इन प्रस्तुतियों में गुरु के एन दंडयुद्धपाणी पिल्लै, गुरु कल्याणी शेखर और गुरु रश्मि खन्न की नृत्य रचनाओं को पेश किया गया है। नृत्य समारोह में गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर, काजी नजरूल, तुलसीदास, संत कबीरदास, महाराजा स्वाति तिरूनाल आदि की रचनाओं पर आधारित प्रस्तुतियां दर्शकों को मोह लेती हैं।
गुरु रश्मि खन्ना ने एकल साधना के जरिए अपनी शिष्याओं को अरंगेत्रम के लिए तैयार किया है। पिछले दिनों इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित अरंगेत्रम समारोह में उनकी दो युवा शिष्याएं आद्या और श्रेशा ने नृत्य प्रस्तुत किया। उनकी युगल प्रस्तुति में प्रथम पुष्पांजलि थी। यह राग गंभीर नाटई और आदि ताल में निबद्ध थी। इसके अगले अंश में गणेश तांडव थी। मराठी अंभग रचना ‘तांडव नृत्य करि गजानन‘ राग हंसध्वनि और आदि ताल में निबद्ध थी। वरणम में वात्सल्य भाव का विवेचन था। इसमें परिवार के महत्व को पेश किया गया। रचना ‘नंदनंदन आरा रो इंदुड‘ राग आभोगी और आदि ताल में निबद्ध थी। संत दयानंद सरस्वती की रचना ‘भो शंभो स्वयंभो‘ पर आधारित अगली पेशकश थी। यह राग रेवती और आदि ताल में निबद्ध थी। गायक जी इलंगोवन रचित और संगीतबद्ध रचना पर आद्या और श्रेशी ने नृत्य में पिरोया। ‘राम मेरे राम, श्याम मेरे श्याम‘ को इलंगोवन ने राग पीलू का आधार लेकर गाया। अंतिम प्रस्तुति तिल्लाना थी। यह राग हिंदोलम में थी।
अरंगेत्रम समारोह में प्रस्तुत नृत्य रचनाओं की परिकल्पना गुरु कल्याणी शेखर और गुरु रश्मि खन्ना ने की थी। शिष्याएं आद्या और श्रेशा ने संुदर नृत्य पेश किया। उनका अंग संचालन, पैर संचालन, भाव भंगिमा उम्र और अनुभव के अनुकूल था। समय के साथ धीरे धीरे वह दोनों और परिपक्व होंगी।
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मंगलोत्सव में गुरु का स्मरण
मंगलोत्सव का आयोजन पिछले दिनों इंडिया हैबिटैट सेंटर में किया गया। यह आयोजन बनारस घराने की प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका विदुषी गिरिजा देवी की स्मृति में था। गिरिजा दर्शन ट्रस्ट की ओर से गिरिजा देवी के 96वें जन्म दिवस पर यह समारोह आयोजित था।
आठ मई की शाम कुछ बोझिल सी थी। एक तरफ देश की सीमाओं पर तनाव का माहौल बना हुआ था। और लगातार पत्रकार मित्रों के संदेश आ रहे थे। जिससे हर किसी का थोड़े से तनाव में आ जाना लाजिमी था। इन सब के बावजूद, कलाकारों का संकल्प नमन करने योग्य है, क्योंकि आयोजिका शास्त्रीय गायिका और अप्पा जी की शिष्या सुनंदा शर्मा ने कार्यक्रम में शिरकत भी किया और आयोजन को सफलतापूर्वक संपन्न करवाया। शायद, इसलिए कला के उपासक भारतीय संस्कृति में वाग्देवी के आराधक श्रेष्ठ माने जाते हैं। वैसे भी भारत में तो युद्ध से पहले भी रणभेरी, नगाड़े, शंख आदि बजाने की परंपरा है। वास्तव में, यह नाद अराधन भी राष्ट्र अराधन का ही रूप है। अतः इस आयोजन में भाग लेने वाले कलाकारों के साथ-साथ सभागार में उपस्थित हर श्रोता वंदनीय है।
शास्त्रीय गायिका सुनंदा शर्मा ने अपनी गुरु को याद करते हुए, कहा कि अप्पा जी सिर्फ मेरी गुरु नहीं थीं, वे मेरी संगीत और जीवन यात्रा की प्रेरणा थीं। मंगलोत्सव का यह आयोजन मेरे लिए उनको एक श्रद्धांजलि है। साथ ही यह वादा भी कि मैं उनकी परंपरा को पूरे समर्पण से आगे बढाऊंगी।
पठानकोट में जन्मी और पली बढ़ी गायिका सुनंदा शर्मा ने अपने गुरु के साथ लंबा समय बीताया। वह बनारस में रहकर गुरु शिष्य परंपरा में संगीत की शिक्षा लीं, बल्कि बनारस की संस्कृति-संस्कारों को अपनाया है। इसलिए, उनके संगीत में सिर्फ बनारस घराने के सुर ही नहीं हैं, बल्कि बनारसीपन भी झलकता है। बहरहाल, समारोह में वह जुगलबंदी पेश करने को उपस्थित थीं। उनके साथ बांसुरीवादक रूपक कुलकर्णी थे। दोनों ही कलाकार एकल प्रस्तुति के लिए जाने जाते हैं। लेकिन, सुनंदा शर्मा और रूपक कुलकर्णी ने बहुत ही संतुलित और संयमित संगीत पेश किया। संगीत में मुख्य कलाकार को संगत करना एक बात होती है और जुगलबंदी विशेष हो जाती है। इस प्रस्तुति का आगाज, राग यमन कल्याण के आलाप से हुआ। दोनों ही कलाकारों ने सांध्यकालीन राग के आलाप में तीव्र मध्यम और अन्य शुद्ध स्वरों का प्रयोग मोहक था। इसी क्रम में सुनंदा ने मध्य लय में रचना ‘न जानू कैसी प्रीत‘ को सुरों में पिरोया। इसके बरक्स बांसुरी पर रूपक कुलकर्णी में लयकारी और तानों को पेश किया। तीन ताल में निबद्ध बंदिश की बढ़त में बोल और आकार की तानों का प्रयोग भी सरस था। अगले अंश में गायिका सुनंदा शर्मा ने मिश्र खमाज में ठुमरी ‘इतनी अरज मान मान ले‘ गाया। यह जत ताल में थी। अंत में, अप्पा जी की मशहूर कजरी ‘कहनवा मान ओ राधा रानी‘ को सुरों में पिरोया। तबले पर पंडित मिथिलेश झा और हारमोनियम पर डाॅ सुमित मिश्रा ने रसमय संगत किया। कलाकारों की इस प्रस्तुति ने अच्छा समां बांधा।
अगले कलाकार वरिष्ठ शास्त्रीय गायक पंडित साजन मिश्रा और उनके शिष्य स्वरांश मिश्रा थे। उन्होंने राग बागेश्वरी पेश की। उन्होंने राग बागेश्वरी के आलाप से गायन आरंभ करने के बाद, विलंबित लय की बंदिश को सुरों में पिरोया। बंदिश के बोल थे-‘रे कौन गत भई‘। यह एक ताल में निबद्ध थी। उन्होंने मध्य लय की बंदिश ‘एरी मैं कैसे घर जाऊं‘ को सुरों में ढाला। उन्होंने पंडित राजन मिश्रा रचित बंदिश ‘जमुना जल भरन न देत कन्हाई‘ को पेश किया। उन्होंने तराने को भी गाया। उनके साथ तबले पर पंडित विनोद लेले और हारमोनियम पर डाॅ विनय मिश्रा थे।
कार्यक्रम में गाने से पूर्व पंडित साजन मिश्र ने कहा कि आज का कार्यक्रम गुरु की याद में सुनंदा जी कर रही हैं। अप्पा जी बनारस घराने की वरिष्ठ कलाकार थीं। मेरा बचपन से उनसे तालुक था। यह अद्भुत संयोग है कि उनको समर्पित सुबह बनारस में एक कार्यक्रम में गाया और शाम को भी उन्हीं को समर्पित उत्सव में गा रहा हूं।