Popular Posts

Friday, November 29, 2024

shashiprabha: #आज के कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी -----बनारस घराने की...

shashiprabha: #आज के कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी -----बनारस घराने की...:                                          #आज के कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी                                           बनारस घराने की कथक नृत्य क...

#आज के कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी -----बनारस घराने की कथक नृत्य की एक शाम

                                        #आज के कलाकार@ शशिप्रभा तिवारी

                                          बनारस घराने की कथक नृत्य की एक शाम

नटवरी कथक फाउंडेशन की ओर से रस रंग सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। त्रिवेणी सभागार में आयोजित सांस्कृतिक संध्या में कथक नृत्यांगना अरूणा स्वामी ने बनारस घराने की नृत्य शैली में पेश किया। संतूर वादक डाॅ बिपुल कुमार ने वादन पेश किया। 24 नवंबर को संपन्न समारोह के साक्षी के तौर पर कथक नृत्यांगना नलिनी अस्थाना, लेखिका डाॅ चित्रा शर्मा, सितार वादक सईद जफर, शहनाई वादक लोकेश आनंद और अन्य कलाकार भी सभागार में मौजूद थे। कलाकारों को देखने-सुनने जब कलाकार वर्ग खुद उपस्थित होते हैं, तो सभा का माहौल और उत्साहवर्धक हो जाता है।   

त्रिवेणी सभागार में आयोजित समारोह में कथक नृत्यांगना अरूणा स्वामी ने संतुलित और सुघड़ता से कथक नृत्य पेश किया। उनके नृत्य में स्थिरता और परिपक्वता दिखा। वह गुरु सुनयना हजारीलाल की शिष्या है। उन्होंने निशा झावेरी से भी कथक की बारीकियों को ग्रहण किया है। वह अपने गुरु के साथ मंच प्रस्तुति देने के अलावा, अमेरिका, हांगकांग और ताइवान में नृत्य प्रस्तुत कर चुकी हैं। वह इनदिनों गुरुग्राम में कथक की नटवरी शैली को युवा कलाकारों को अपनी संस्था के माध्यम से सिखा रही हैं। 

पढंत पर उनकी गुरु सुनयना हजारीलाल मौजूद थे। गुरु की उपस्थिति से शिष्या का मनोबल ऊंचा होना स्वाभाविक है। सुनयना हजारीलाल खुद एक गुणी कलाकार हैं। उनके साथ तबले पर बाबर लतीफ, गायन पर सोहैब हसन और सितार पर रईस अहमद मौजूद थे। उन्होंने बीती शाम त्रिवेणी सभागार में गणेश वंदना से नृत्य आरंभ किया। नृŸा और भाव पक्ष को पेश किया। तराना भी उनके नृत्य का आकर्षण रहा। 


रस रंग समारोह में कथक नृत्यांगना अरूणा ने कृष्ण वंदना पेश किया। यह श्रीकृष्णाष्टकम के अंश-‘भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं‘ पर आधारित थी। यह आदिशंकराचार्य की रचना है। इसमें यमुना और कृष्ण जन्म के प्रसंग को बहुत मधुरता के साथ दर्शाया। बारिश के अंदाज को हस्तकों और पद घात से निरूपित किया। नृŸा पक्ष में गुरु जानकी प्रसाद की शैली को अरूणा ने प्रभावी तरीके से पेश किया। उनके नृत्य ठहराव के साथ नैसर्गिकता है, जो कथक नृत्यांगनाओं में कम देखने को मिलता है। उन्होंने इस अंश में ‘ता थेई तत्‘ के बोल पर लयकारी पेश किया। विलंबित लय में त्रिपल्ली, टुकड़े, परमेलू आदि पेश किया। मिश्र जाति की लड़ी में पैर का जानदार काम दिखा। वहीं, द्रुत तीन ताल में चतुश्र जाति की तिहाइयों और रेले की पेशकश खास रही। उन्होंने भाव अभिनय के लिए होरी का चयन किया था। इसके बोल थे-‘मानो मानो श्यम नंदलाल जी‘। अरूणा ने हस्तकों, पैर के काम, गतों, पलटे, चक्कर का प्रयोग बहुत सधे अंदाज में किया। नायिका राधा और नायक कृष्ण के भावों को दर्शाते हुए, उनके मुख के भावों और नेत्रों के भावों में बहुत सरलता और सहजता दिखी। उन्होंने अपने नृत्य का समापन तराने पर आधारित नृत्य से किया। यह राग वृंदावनी सारंग में निबद्ध था। 

युवा संतूर वादक डाॅ बिपुल कुमार राय ने समारोह में शिरकत है। डाॅ बिपुल ने संतूर वादन की शिक्षा सूफियाना घराने के संतूर वादक पद्मश्री पंडित भजन सोपोरी से प्राप्त की है। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स, एमफिल एवं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। वह आकाशवाणी के ए-ग्रेड के कलाकार हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के प्रतिष्ठित श्रेणी में है। वह साहित्य कला परिषद, दिल्ली सरकार के सांस्कृतिक सलाहकार एवं केंद्रीय विद्यालय गवर्निंग बाॅडी के सदस्य के रूप में अपनी सेवा प्रदान करते रहे हैं। उन्होंने मिश्र, आॅस्ट्रिªया, स्वीटजरलैंड, जर्मनी, कतर, चीन, थाईलैंड, श्रीलंका आदि देशों में संतूर वादन की प्रस्तुतियंा दी हैं। वह तानसेन समारोह, आकाशवाणी संगीत सम्मेलन, कला प्रकाश, संगीत नाटक अकादमी समारोह, सप्तक, संगीत विहान आदि समारोहों में शिरकत कर चुके हैं। पिछले साल संपन्न जी-20 के आयोजन में भी विदेशी मेहमानों के समक्ष उन्हें अन्य कलाकारों के साथ संतूर वादन का सौभाग्य मिला। 

संतूर वादक बिपुल राय ने मारवा थाट का राग मारवा बजाया। राग मारवा माधुर्य से परिपूर्ण राग है। सो वादक बिपुल ने राग की प्रकृति के अनुरूप आलाप में कोमल ऋषभ और तीव्र मध्यम स्वरों पर ठहराव रखते हुुए वादन किया। राग का विस्तार मध्य सप्तक में खिल उठा। उन्होंने मध्य और द्रुत लय की गतों को पेश करते हुए, जोड़-झाले को बजाया। अपने वादन के चरम पर ‘ना-धिंन्ना‘ को मोहक अंदाज में बजाया। उन्होंने अपने वादन का समापन राग पहाड़ी के धुन से किया। इसमें गढ़वाली लोकधुन की झलक मोहक अंदाज में पेश किया। उनके साथ तबले पर युवा तबला वादक बाबर लतिफ ने दिया। दोनों कलाकारों ने अच्छे तालमेल से वादन को सरस बना दिया।