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Friday, August 30, 2024
shashiprabha: #आज के कलाकार ---शशिप्रभा तिवारी--मेरे लिए नृत्य स...
#आज के कलाकार ---शशिप्रभा तिवारी--मेरे लिए नृत्य साधना है-@डाॅ समीक्षा शर्मा
#आज के कलाकार ---शशिप्रभा तिवारी
मेरे लिए नृत्य साधना है- @ डाॅ समीक्षा शर्मापिछले दिनों इंडिया इंरनेशनल सेंटर में माॅनसून उत्सव 23 अगस्त को आयोजित था। इस समारोह में कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने एकल नृत्य प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने नवाचार करते हुए, स्वरचित नृत्य रचना कृष्ण अंग बहुरंग पेश किया। इस प्रस्तुति का आरंभ उन्होंने खाटू श्याम की वंदना से किया। इसमें उन्होंने खाटू श्याम के अवतरण और उनके जीवन व वंदन की कथा की व्याख्या पेश किया। यह वंदना रचना ‘खाटू श्या मजी अरज सुनो जी‘ पर आधारित थी। इस भजन की रचना समीक्षा शर्मा ने किया था। यह राग मिश्र मांड और दीपचंदी ताल में निबद्ध था। नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने प्रसंग को बहुत सरलता और सहजता से पेश किया। ‘शीश के दानी‘ व ‘भंवर में नैया‘ बोल को भाव और नाव की गत व सरपण गति से मोहक अंदाज में दर्शाया।
उनकी दूसरी प्रस्तुति थी-कृष्ण अंग बहुरंग। इस की परिकल्पना उन्होंने अपने गुरु पंडित राजेंद्र गंगानी के मार्गदर्शन में किया था। इसमें सांभरी के पशु पक्ष्यिों के प्रति प्रेम और प्राकृतिक प्रेम को विशेष् तौर पर समाहित किया गया था।
इसमें ऋषि संाभ्री के मछली प्रेम को दर्शाया। इसी के अगले अंश में विष्णु अवतार कृष्ण द्वारा कालिया मर्दन प्रसंग को दिखाया। इसके लिए सूरदास के पद तांडव गति मुंडन पर नाचत गिरिधारी का चयन किया गया था। इस प्रसंग को दर्शाने के क्रम में नृत्यांगना समीक्षा शर्मा ने मृग, गज, व्याघ्र, मीन, सर्प हस्तकों के जरिए दर्शाते हुए, गतियों को प्रभावकारी अंदाज में पेश किया। नृत्य में भाव पक्ष का प्रयोग संुदर था। इसके साथ तिहाइयों, टुकड़ो और गतों को बखूबी पेश किया। नृत्य का समापन कलिया मर्दन प्रसंग के बाद बावन चक्कर को प्रस्तुत किया।
नृत्यांगना समीक्षा ने बताया कि मैं बचपन से ही नृत्य करती हूं। नृत्य करने से मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती है। मैं समय के साथ अपना सफर करते हुए, धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही हूं। इसके बावजूद लगता है कि अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है।
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के इस आयोजन के दौरान अपनी प्रस्तुति के संदर्भ में उन्होंने बताया कि नृत्य के देवता भगवान शिव यानी नटराज को माना जाता है। हमलोग कृष्ण को नटनागर मानते हैं। वह भी कालिया सर्प के फन पर खड़े होकर नृत्य करते हैं। इस प्रसंग को कथक और अन्य नृत्य शैलियों के कलाकार कालिया मर्दन प्रसंग में पेश करते हैं। मैं कृष्ण से जुडे इस प्रसंग को थोड़े अलग तरीके से पेश करना चाहती थी। इसी क्रम में मुझे स्रांभि ऋषि प्रसंग का पता चला। फिर मैं मथुरा स्थित जैत गांव में गई। वहां मैंने लोककथा सुनी। यहां कालिया सर्प के मूर्ति को देखा। वहां लोगों ने बताया कि अंग्रेजों ने कालिया सर्प की मूर्ति पऱ गोलियां चलाई थी, जिससे उनके सिर से खून निकला था और ढेर सारे सर्प बिल में से निकल कर आ गए थे। इससे मुझे एक नया विचार मिला और मैंने इसे अपने प्रस्तुति में शामिल किया।
पंडित राजेंद्र गंगानी कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा के गुरु हैं। उनके संदर्भ में वह कहती हैं कि गुरु जी की सबसे बड़ी खूबी उनकी निरंतरता है। जब भी बात करिए तब वह सबसे पहले पूछते हैं कि आपने रियाज किया या नहीं। वह बिना नागा किए रोज रियाज करते हैं। उनकी यह बात मुझे बहुत प्रेरित करता है।
बहरहाल, इस समारोह में कथक नृत्यांगना समीक्षा शर्मा के साथ संगत करने वाले कलाकार थे-तबले पर निशित गंगानी, गायक शोएब हसन, पखावज पर महावीर गंगानीा, सारंगी पर अयूब खान और पढंत पर प्रवीण प्रसाद।
Thursday, August 1, 2024
shashiprabha: # आज का कलाकार शशिप्रभा तिवारी ----कला का संसार बह...
# आज का कलाकार शशिप्रभा तिवारी ----कला का संसार बहुत तेजी से बदला है--@शांतनु चक्रवर्ती
# आज का कलाकार शशिप्रभा तिवारी
कला का संसार बहुत तेजी से बदला है--@शांतनु चक्रवर्ती
भरनाट्यम नर्तक शांतनु चक्रवर्ती ने डाॅ सोनल मानसिंह से भरतनाट्यम सीखा है। वह गुरु वी कृष्णमूर्ति से दो दशक से दो दशक से भरतनाट्यम की बारीकियों को सीख रह हैं। गौरतलब है कि मुरली मनोहर डांस उत्सव, नवरात्री उत्सव, महाशिवरात्री उत्सव, सावन महोत्सव, रास पूर्णिमा महोत्सव-2023, संगीत नाटक अकादमी के योग पर्व-2021 व नाट्य गति उत्सव-2022 आदि में शिरकत कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने संस्कृति मंत्रालय के आयोजनों-सुर ताल उत्सव में अपनी कला का प्रदर्शन किया। अरविंदो आश्रम के 150 वीं जन्म समारोह में शिरकत किया। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद और दूरदर्शन की ओर से मान्यता मिली है।
मुझे लगता है कि हम सिर्फ शास्त्रीय नृत्य के कलाकार हैं। इसलिए सिर्फ डांस ही करेंगें। आज के समय में ये नहीं चल सकता है। एक अच्छे डांसर बनने के साथ, कलाकार को एक अच्छा स्पीकर या वक्ता भी बनना जरूरी है। इसका एक फायदा होता है कि आप की बात से आपके दर्शक प्रभावित हो सकें। मैं अपनी गुरु डाॅ सोनल मानसिंह जी से यह सब सीखा। वह बहुत प्रभावकारी तरीके से बोलती हैं। मैं अपनी मंच प्रस्तुति के समय भी यह कोशिश करता हूं कि दर्शकों को राग-ताल के अलावा, अपनी नृत्य रचना, उसकी परिकल्पना, उसकी कहानी भी लोगों को बताऊं ताकि लोगों को नृत्य समझ आए और वह दिलचस्पी के साथ नृत्य को देखें। वैसे भी भरतनाट्यम की ज्यादातर प्रस्तुति तमिल या संस्कृत में होती हैं।
भरतनाट्यम नर्तक शांतनु का मानना है कि शास्त्रीय कलाकार को शास्त्र का भी अच्छा जानकार होना चाहिए। इसके लिए उसे अध्ययन करना जरूरी है। वह कहते हैं कि हम कलाकारों को किताबें, साहित्य, शास्त्र संबंधी जरूर पढ़नी चाहिए। साथ ही, मूर्ति कला, चित्रकला, कविता आदि भी जानने और समझने की कोशिश करनी चाहिए। इससे हमारी प्रस्तुति और समृद्ध होती है। उत्तर भारत में रहता हूं। इसलिए तमिल के बजाय हिंदी या संस्कृत पर आधारित नृत्य वरणम के अंदाज में ज्यादा करता हूं। जैसे-तुलसीदास की रचना ‘श्रीराम चंद्र कपालु भजुमन‘ पर आधारित इस प्रस्तुति में अक्सर कलाकार अभिनय प्रस्तुत करते हैं। लेकिन, मैं दर्शकों को बांधने के लिए अभिनय के साथ जती पेश कर नृत्य को विस्तार देने का प्रयास करता हूं। मेरा प्रयास है कि भरतनाट्यम नृत्य को हिंदी भाषी दर्शक अच्छे से समझें, उसे देखें और उसे सराहें। इसी तरह मैंने संत दयानंद की रचना ‘भो शिव शंभो‘, स्वामी रविदास की रचना ‘कमल लोचन‘ की नृत्य रचनाएं भी की हैं। इसके लिए मैं अपने गुरु वी कृष्णमूर्ति जी का मार्गदर्शन आज भी लेता हूं। शास्त्रीय नृत्य जब मैं करता हूं, उसे करने से पहले मैं दर्शकों का ध्यान जरूर रखता हूं।
शांतनु आगे कहते हैं कि बीस साल पहले जब मैं शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में प्रोफेशनल डांसर आया था, तब स्थितियां अलग थीं। दर्शक और उनकी अपेक्षाएं बदल गईं है। मैं देवताओं को केंद्र में रखकर कोरियोग्राफी करना चाहता हूं। पर मुझे एकल नृत्य करने का अवसर बहुत कम मिलता है। फिल्मों की तरह शास्त्रीय नृत्य इनदिनों सामूहिक नृत्य या कोरियोग्राफी ज्यादा हो गई है। उसमें भी नर्तकों की अपेक्षा नृत्यांगनाएं ज्यादा होनी चाहिए। मुझे याद आता है जब मैं गुरु जी सीख रहा था, उन रचनाओं को आज एक मैच्योर डंासर के नजरिए से पेश करना चाहता हूं, पर मेरे लिए आयोजकों के पास अवसर नहीं हैं। वैसे करना तो बहुत कुछ चाहता हूं। सब कुछ बहुत बदल गया है। यहां तक कि दक्षिण भारत में भी आयोजकों की मांग होती है कि आप परंपरागत शास्त्रीय भरतनाट्यम नृत्य के बजाय कुछ नई कोरियोग्राफी पेश करिए। इसके अलावा, आज ज्यादातर आयोजक मुफ्त में या कम पैसे में प्रोग्राम करने को कहते हैं। यह कैसा दबाव है? हम कलाकारों के समझ के परे की बात हो गई है!
मैं सोचता हूं कि डिजिटल युग में सब कुछ आपके मोबाइल पर उपलब्ध है। लोग छोटे-छोटे रील्स देखते हैं। उन्हें कुछ भी फास्ट देखना अच्छा लग रहा है। इसमें क्लासिकल डांस के रील्स भी खूब लोकप्र्रिय हो गए हैं। इन चीजों से हमारे दर्शकों का टेस्ट भी काफी बदल गया है। वह धैर्य से घंटे भर की प्रस्तुति को देखने शायद आॅडिटोरियम या मंदिरों में जाने से अब बचना चाहती है। समझ नहीं आता है कि अपने अच्छे समय का सदुपयोग अपने लिए उपयोग करने के बजाय लोग जाया क्यों कर रहे हैं। क्योंकि शास्त्रीय नृत्य तो आत्म आनंद के लिए है न कि मनोरंजन के लिए। आत्म आनंद पाने के लिए आपकी सभी इंद्रियों को सहज और मन का स्थिर होना जरूरी है। ताकि उस आनंद की अनुभूति में आप एक क्षण नहीं बल्कि घंटों और दिनों तक निमग्न रहें। भारतीय कलाओं के इस जादू को समझना बहुत जरूरी है।
अपनी नृत्य प्रस्तुतियों के संदर्भ में, नर्तक शांतनु बताते हैं कि डाॅ पद्मा सुब्रह्मण्यम की संस्था नृत्योदया है। जो हर साल महाशिवरात्री महोत्सव का आयोजन चेन्नैई और अन्य शहरों के शिव मंदिरों में करते हैं। इस समारोह में हमलोगों को नृत्य पेश करने का सुखद अनुभव प्राप्त हुआ। गुरु जी की नृत्य रचना नटराज को महाशिवरात्री महोत्सव में प्रस्तुत किया। उस दौरान हमें तंजावुर बृहदेश्वर मंदिर, कंुभकोणम मंदिर, तिरूवायवुर, थिरुपुरुपोंडि के शिव मंदिरों में महाशिवरात्री नृत्य समारोह में शिरकत करने का आनंददायक अवसर प्राप्त हुआ। ये मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं। वास्तव में, उससे जुड़कर हमें अलौकिक अनुभव प्राप्त हुआ।