अपनी मूल से जुड़े -शशिप्रभा तिवारी
ओडिशी नृत्य गुरू मायाधर राउत राजधानी दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने अपने नृत्य विद्यालय जयंतिका के जरिए कई पीढ़ियों को ओडिशी नृत्य सिखाया है। उन्होंने अपनी पुत्री और शिष्या मधुमीता राउत को ओडिशी नृत्य का प्रशिक्षण दिया। मधुमीता राउत अपनी गुरू की परंपरा का अनुसरण करती हैं। वह अपने गुरू की नृत्य परंपरा को अपनी शिष्य-शिष्याओं को सौंप रही हैं। पिछले दिनों उन्होंने अपने गुरू के नब्बेवें जन्मदिन के अवसर पर आनंद उत्सव का आयोजन किया। दरअसल, गुरू के सम्मान में यह आयोजन एक महत्वपूर्ण कदम था।
आनंद उत्सव की अंतिम संध्या में 25मार्च को ओडिशी नर्तक लकी मोहंती ने एकल नृत्य पेश किया। उन्होंने देश पल्लवी से नृत्य आरंभ किया। इसकी नृत्य परिकल्पना गुरू कुमकुम मोहंती और संगीत दीपक बासु ने की थी। इस प्रस्तुति में नर्तक लकी मोहंती ने लयात्मक पद, हस्त और अंग संचालन पेश किया। एक-एक बारीकियों को उन्होंने बहुत ही गरिमा और संतुलन के साथ नृत्य में दर्शाया। उनके तकनीकी पक्ष की विशुद्धता आकर्षक और काफी सधी हुई थी।
उनकी अगली पेशकश गुरू मायाधर राउत की नृत्य रचना दुर्गा स्तुति थी। इसे लकी ने गुरू मायाधर राउत और नृत्यांगना व गुरू मधुमीता राउत के सानिध्य में सीखा है। यह ललिता सहस्रनाम और दुर्गा सप्तशती के श्लोकों पर आधारित थी। दुर्गा स्तुति राग अहीर भैरव और जती ताल में निबद्ध थी।
ओडिशी नृत्य के क्षेत्र में युवा नर्तक गिने-चुने हैं। उनमें से लकी मोहंती हैं। लकी मोहंती ने कटक के कला विकास केंद्र में ओडिशी नृत्य अपनी गुरू कुमकुम मोहंती से सीखा है। इसके अलावा, वह गुरू कंदु चरण बेहरा और गुरू मधुमीता राउत से समय-समय पर उनकी व उनके गुरूओं की चीजों को सीखते रहे हैं। इस संदर्भ में, ओडिशी लकी मोहंती कहते हैं कि जब भी मुझे अवसर मिलता है। मैं अपने गुरू के अलावा अन्य गुरूओं से सीखने की कोशिश करता हूं। ऐसे ही, गुरू मायाधर कटक आए तो मैं उनसे और मधुमीता दीदी से सीखने की कोशिश की। मुझे गुरू मायाधर जी की अभिनय पक्ष बहुत प्रभावित करता है। इसलिए जब भी मौका मिलता है, मैं उनके पास आकर ओडिशी नृत्य की बारीकियों को सीखता हूं।
ओडिशी नर्तक लकी दूरदर्शन के मान्यता प्राप्त कलाकार हैं। उन्हें संस्कृति मंत्रालय की ओर से सीनियर फेलाशिप मिल चुका है। उन्हें श्रृंगार मणि, ओडिशी युवा गंधर्व सम्मान, छत्तीसगढ़ प्रतिभा सम्मान मिल चुके हैं। अपने अनुभव को साझा करते हुए, लकी बताते हैं कि मैं उनदिनों रायपुर में रहता था। वहां मैं ओडिशी नृत्य सिखाता था। यह नृत्य वहां के युवाओं ने बहुत मन से सीखा। वहां खैरागढ़ विश्वविद्यालय के साथ भी मुझे काम करने का अवसर मिला। वास्तव में, मैं अपनी जन्मभूमि कटक से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सका और वापस यहां आ गया।
युवा साथियों को अपनी संदेश में ओडिशी नर्तक लकी मोहंती कहते हैं कि अपनी कला-संस्कृति को सीखने से आत्मसंतोष मिलता है। आप अपनी भाषा, अपने पहरावे और अपने गीत-संगीत से जुड़कर ही अपने व्यक्तित्व का सही विकास कर सकते हैं। इससे हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है और मन में शांति आती है। इतना ही नहीं आत्मविश्वास भी बढ़ता है। इसलिए, अपनी कला से जुड़िए ताकि आप अपनी मूल से जुड़े रह सकें।
कला जब शुद्ध रूप मे प्रस्तुत होता है तब आत्मिक शांति का अहसास दर्शक व कलाकार दोनों को होता है कला रंग का ये blogg बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteDhanyavad Sangeeta ji.Pathak ki ray mili bahut achcha laga.
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