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Tuesday, October 27, 2020
कृष्ण का विरह
कृष्ण का विरह
शशिप्रभा तिवारी
उन्होंने कथक की बानगी को शुद्ध नृत्त में दर्शाया। कथक नर्तक कदंब ने दस मात्रा के झप ताल में तकनीकी पक्ष को पेश किया। उन्होंने उपज में पैर के काम को प्रस्तुत किया। रचना ‘धा तक गिन थुंग तक किट धा‘ में खड़े पैर का काम उम्दा था। वहीं इसमें पंजे, एड़ी के काम के जरिए लयकारी दर्शाना आकर्षक था। एक अन्य रचना में उत्प्लावन, चक्कर और पैर का प्रभावकारी काम पेश किया। नर्तक कदंब ने परण में हस्तकों व अंग संचालन के साथ पैर का काम व चक्कर का प्रयोग किया। इसमें पखावज के बोलों व चक्कर का प्रयोग मनोरम था।
नृत्य का समापन कदंब ने चक्करों के विविध प्रस्तुति से किया। एक पेशकश में उन्होंने सीधे और उल्टे चक्कर का प्रयोग करते हुए, 32चक्करों को पेश किया। मिक्सर के चलने के अंदाज को सोलह चक्कर के माध्यम से पेश किया। वहीं, घूमते हुए 26चक्कर को प्रस्तुत किया। कदंब के नृत्य में बहुत सफाई और बोलों को बरतने में बहुत स्पष्टता थी। उन्होंने अपने नृत्य में हस्तक व अंगों का संचालन बड़ी नजाकत और सौम्यता से किया। उनके नृत्य में चक्करों, उत्प्लावन और बैठ कर सम लेने का अंदाज भी सहज था। कदंब के नृत्य देखकर, नृत्य के प्रति उनका समर्पण और लगन स्पष्ट झलकता है। उनकी तैयारी अच्छी है।
उन्होंने अपने व्यक्तित्व के अनुकूल कृष्ण का विरहोत्कंठित नायक के तौर पर चित्रित किया। भाव और अभिनय के लिए कृष्ण को बतौर चुनना एक अच्छी सूझ-बूझ का परिचय था। आमतौर पर, पुरूष कलाकार अभिनय करने से बचते नजर आते हैं या तो वो भजन पर अभिनय पेश कर अपनी प्रस्तुति को पूर्ण कर देते हैं। बहरहाल, कदंब ने रचना ‘केलि कदंब की विरह की ताप‘ पर राधा से मिलने को आतुर कृष्ण के भावों को बखूबी दर्शाया। इस पेशकश में राधिके की पुकार के साथ सोलह चक्कर का प्रयोग किया। यह रचना उनकी गुरू इशिरा पारीख की थी। जबकि, नृत्य रचना उनके गुरू मौलिक शाह ने की थी।
नर्तक कदंब ने अपनी प्रस्तुति का आगाज शिव वंदना ‘गंगाधारी‘ से किया। रचना ‘शीशधर गंग, बालचंद्र गले भुजंग‘ पर उन्होंने शिव के विभिन्न रूपों को निरूपित किया। नृत्य में 21 व सोलह चक्करों का प्रयोग आकर्षक था। रचना ‘तक थुंग धिकत ता थैया‘ के बोल पर रौद्र रूप का चित्रण किया। साथ ही, नर्तक कदंब ने ‘डमरू कर धर महेश‘ हस्तकों व पैर का काम विशेषतौर पर पेश किया। जबकि, धित तक थुंग लुंग ताम के बोल पर अर्धनारीश्वर रूप को दर्शाना मोहक था। कुल मिला कर कदंब का नृत्य ओजपूर्ण और पुरूष केंद्रित नृत्य था। उनके नृत्य में बिजली सी चमक और स्फूर्ति थी।
Wednesday, October 21, 2020
shashiprabha: विरासत काव्यधारा
विरासत काव्यधारा
Tuesday, October 20, 2020
नई पौध के अंकुर
नई पौध के अंकुर
शशिप्रभा तिवारी
बीते शाम अठारह अक्तूबर 2020 को संकल्प में कथक नर्तक शुभम तिवारी ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम शुभम तिवारी ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।
नर्तक शुभम तिवारी ओज और ऊर्जा से भरे हुए नजर आए। उनके गुरू व कथक नर्तक अनुज मिश्रा ने अपने वक्तव्य में सही कहा कि भारत युवाओं का देश है। भारतीय कलाओं और परंपराओं को संभालने का दायित्व युवा गुरू, शिष्य और कलाकारों पर है। इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने के लिए युवा कलाकारों को मंच प्रदान करना और प्रोत्साहन देना जरूरी है। आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।
दरअसल, इस संदर्भ में कथक नृत्यांगना विधा लाल, अलकनंदा कथक और उनकी पूरी टीम बधाई के योग्य है। इन सभी लोगों के प्रयास का परिणाम है-संकल्प का आयोजन। इस आयोजन में कथक नर्तक शुभम तिवारी ने अपने नृत्य का आरंभ शिव स्तुति से किया। श्लोक ‘कर्पूर गौरं करूणावतारं‘ में शिव के रूप को नर्तक शुभम ने दर्शाया। हस्तकों और भंगिमाओं का प्रयोग सहज था। शिव तांडव स्त्रोत के अंश के साथ छंद-‘चंद्रकला मस्तक पर सोहे‘ के जरिए शिव के रौद्र रूप का प्रदर्शन मोहक था। शुभम का वायलिन के लहरे पर चक्कर के साथ सम पर आना मनोरंजक था।
Thursday, October 15, 2020
shashiprabha: गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत...
गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना
गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना
किसी के जीवन की दिशा या दशा क्या होगी? इसे कोई नहीं जानता है। कहा जाता है कि मां-बाप किसी के जन्म के भागी होते हैं। कर्म के भागी तो आपको खुद बनना पड़ता है। कुछ ऐसा ही रहा है-कथक नृत्यांगना पंखुड़ी श्रीवास्तव के जीवन का सफर। पंखुड़ी बिहार की राजधानी शहर पटना में पली-बढ़ीं। वहीं, उन्होंने नृत्य सीखना शुरू किया। धीरे-धीरे जब समझ बढ़ी तब उन्होंने अपनी कला के कलि का विकसित करने के लिए उन्होंने राजधानी दिल्ली का रूख किया। आईए, उनकी इस यात्रा के बारे में कुछ जाने-सुने-शशिप्रभा तिवारी
आपने नृत्य क्यों और किससे सीखा है?