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Monday, December 14, 2020
shashiprabha: बहे निरंतर अनंत आनंद धारा
बहे निरंतर अनंत आनंद धारा
बहे निरंतर अनंत आनंद धारा
शशिप्रभा तिवारी
हर इंसान अपने करियर की शुरूआत शून्य से करता है। धीरे-धीरे सफर आगे बढ़ता है और करवां बनता जाता है। कथक नर्तक संदीप मलिक ने कभी अपने करियर की शुरूआत अपनी गुरू श्रीलेखा मुखर्जी के सानिध्य में किया था। अब उन्होंने अपनी संस्था सोनारपुर नादम की स्थापना की है। इसी से जुड़े हुए हैं, उनके शिष्य-शिष्या सौरभ पाल व मंदिरा पाल।
बीते रविवार तेरह दिसंबर को सौरभ व मंदिरा पाल ने कथक नृत्य पेश किया। दोनों कलाकार आत्मविश्वास से भरे हुए दिखे। उनके नृत्य में अच्छी तैयारी, रियाज, समर्पण, सहजता और स्पष्टता दिखी। पश्चिम बंगाल के इन कलाकारों को देखकर, एक बार मन ने एक बात दोहराया कि वाकई, बंगाल आज भी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है। और, ऐसे कलाकार इस बात को प्रमाणित कर देते हैं।
इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। यह उन्नीसवां एपीसोड था। उम्मीद है कि आने वाले समय में कलाकारों के सहयोग से यह सिलसिला जारी रहेगा।
युगल कथक नृत्य का आरंभ शिव स्तुति से हुआ। यह रचना ‘डमरू हर कर बाजै‘ के बोल पर आधारित थी। इस स्तुति में सौरभ और मंदिरा ने शिव के अनादि, त्रिशूलधर, वृषभवाहन, गंगाधर, पीनाकधर, भूतनाथ रूपों को हस्तकों और भंगिमाओं से दर्शाया। ‘शिव छम्म‘ व ‘डमरू बाजै‘ पर विशेष बल देते हुए, उन्होंने हस्तकों और पैर के काम से मनोहारी नृत्य पेश किया। इसके अलावा, इक्कीस चक्करों का प्रयोग भी मोहक था।
मंदिरा और सौरभ ने अपने युगल नृत्य में शुद्ध नृत्त को पिरोया। इस अंश में विलंबित लय में धमार ताल के जरिए कथक के तकनीकी पक्ष को रेखांकित किया। चैदह मात्रा में उन्होंने चक्करों के साथ आमद की। उन्होंने थाट, तिहाई, टुकड़े को नृत्य में शामिल किया। एक रचना ‘दिग थेई थेई तत ता‘ पर नायक-नायिका के अंदाज को दर्शाया। एक अन्य रचना में थुंग का अंदाज मोहक था। वहीं, उन्होंने ‘गिन कत धा ता किट‘, ‘धित ताम थुंग थुंग‘ व ‘ना धिंना‘ के बोलों को नृत्य में समाहित किया। नृत्य में इक्कीस चक्कर के प्रयोग के साथ हस्तकों का रखाव और बोलों को बरतने का तरीका संवरा हुआ था।
उन्होंने सोलह मात्रा में द्रुत लय में कथक नृत्त पक्ष को पेश किया। तीन ताल में उन्होंने एक तिहाई ‘धिनक धा‘ पेश की। इसमें प्रकृति व संगीत के वाद्यों को विशेष तौर पर चित्रित किया। उठान की पेशकश में उत्प्लावन का प्रयोग सधा हुआ था। उन्होंने कविगुरू रवींद्रनाथ ठाकुर की रचना ‘बहे निरंतर अनंत आनंद धारा‘ को नृत्य में पिरोया। भाव और अभिनय का यह संुदर समायोजन था। इस पेशकश में इक्कीस चक्करों के साथ लयकारी का प्रयोग किया गया। यह नृत्य भी सौंदर्यपूर्ण था। कथक नर्तक संदीप मलिक का नृत्य समायोजन प्रशंसनीय था।
Tuesday, December 8, 2020
shashiprabha: बनारस घराने की कथक का रस
बनारस घराने की कथक का रस
बनारस घराने की कथक का रस
शशिप्रभा तिवारी
बीते शाम 6दिसंबर 2020 को संकल्प में युवा नृत्यांगना दर्शना मूले ने कथक नृत्य पेश किया। दर्शना मूले बनारस घराने की गुरू स्वाती कुर्ले की शिष्या हैं। वह बारह सालों से अपनी गुरू की सानिध्य में हैं। उनके नृत्य में बनारस घराने का ठाठपना तो है ही, साथ ही, एक ठहराव, अच्छी तैयारी और परिपक्वता दिखी। वह नृत्य करते समय भी आत्मविश्वास से भरी नजर आईं।
संकल्प के इस आॅनलाइन आयोजन में उनके साथ गायन पर श्रीरंग, तबले पर संदीप कुर्ले और पढंत पर गुरू स्वाति कुर्ले थीं। इस पेशकश के दौरान, संगतकारों की संगत मधुर और प्रसंग के अनुरूप थी। कहीं कोई जल्दीबाजी और शोर नहीं था, जो कथक में ऐसी संगति कम देखने-सुनने को मिलती है। इसके लिए संगतकार तारीफ के काबिल हैं। स्वाति कुर्ले ने विशेषतौर पर द्रौपदी वस्त्र हरण के प्रसंग की परिकल्पना गत भाव के रूप में किया, वह सराहनीय है। उन्होंने कथा वाचन की बैठकी शैली में इसे पेश किया, जो पुरानी परंपरा की झलक थी। इसके साथ ही नाट्य संगीत का प्रभाव प्रत्यक्ष जान पड़ा।
इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है। इसी के मद्देनजर कथक नृत्यांगना दर्शना मूले का नृत्य देखने का अवसर मिला।
दर्शना मूले ने अपनी प्रस्तुति की शुरूआत कृष्ण वंदना से की। उन्होंने इस रचना ‘गोविंदम गोकुलानंदम गोपालम‘ पर कृष्ण के रूप का विवेचन किया। इसके बाद, तीन ताल में शुद्ध नृत्त पेश किया। उन्होंने विलंबित लय में उठान ‘ता किट तक ता धा‘ में पैर के काम के साथ 21चक्कर का प्रयोग मोहक था। वहीं ‘धा किट थुंग थुंग धा गिन‘ के बोल पर थाट बंाधना सधा हुआ था। पंडित मुकंुद देवराज की रचना पर चलन पेश किया। इसमें एड़ी व पंजे का काम विशेष था।
द्रुत लय में बंदिश ‘धा किट‘ के बोल पर दोपल्ली का अंदाज पेश किया। साथ ही, पंडित रविशंकर मिश्र रचित परण को अपने नृत्य में शामिल किया। दर्शना ने परण ‘धा गिन किट धा‘ को तिश्र, चतुश्र व मिश्र जाति का अंदाज प्रदर्शित किया। गत निकास में सादी गत को पेश किया। इसमें पलटे, फेरी, अर्धफेरी व हस्तकों का प्रयोग बहुत ही नजाकत से किया। गुरू गोपीकृष्ण की रचना ‘किट तक थुंग थुंग‘ को दर्शना ने नाचा। परण की इस प्रस्तुति में बैठकर सम लेना सरस प्रतीत हुआ।
Saturday, December 5, 2020
shashiprabha: पटियाला के कलाकार की चमक
पटियाला के कलाकार की चमक
पटियाला के कलाकार की चमक
Tuesday, November 24, 2020
shashiprabha: युवा कलाकारों का साथ -- शशिप्रभा तिवारी
युवा कलाकारों का साथ -- शशिप्रभा तिवारी
युवा कलाकारों का साथ
शशिप्रभा तिवारी
बीते शाम 22नवंबर 2020 को संकल्प में कथक नर्तक राहुल शर्मा ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम राहुल शर्मा ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। वाकई युवा गुरू के युवा शिष्य राहुल के नृत्य में अच्छी तैयारी दिखी।
नर्तक राहुल शर्मा ओज और ऊर्जा से भरे हुए नजर आए। उनके गुरू व कथक नर्तक कुमार शर्मा ने अपने वक्तव्य में सही कहा कि भारत युवाओं का देश है। भारतीय कलाओं और परंपराओं को संभालने का दायित्व युवा गुरू, शिष्य और कलाकारों पर है। हमारा काम कथक और अन्य शैलियों के साथ प्रयोग के लिए ज्यादा जाना जाता है। हमें लोग कथक राॅकर्स के नाम से भी जानते हैं। इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने के लिए युवा कलाकारों को मंच प्रदान करना और प्रोत्साहन देना जरूरी है। आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।
युवा कथक नर्तक राहुल शर्मा पिछले सात-आठ सालों से अपने गुरू कुमार शर्मा के सानिध्य में है। वह सीखने के साथ-साथ परफाॅर्म भी करते रहे हैं। वह संभावना से भरे नजर आते हैं। उन्होंने संकल्प के आयोजन के दौरान आकर्षक नृत्य पेश किया। उनके साथ संगत करने वाले कलाकारों में शामिल थे-गायन व हारमोनियम पर कुमार शर्मा, तबले पर ऋषभ शर्मा और पढंत पर शिवानी शर्मा।
कथक नर्तक राहुल शर्मा ने अपनी पेशकश का आरंभ ध्यान श्लोक से किया। नाट्यशास्त्र के श्लोक ‘आंगिकम् भुवनस्य‘ के संदर्भ को नृत्य में पिरोया। इसमें उन्होंने भंगिमाओं और मुद्राओं के जरिए जटाधारी, नीलकंठ, गंगाधर, नटराज, त्रिशूलधर को बखूबी दर्शाया। उन्होंने पंद्रह मात्रा के ताल पंचम सवारी को शुद्ध नृत्त में प्रस्तुत किया। विलंबित लय में उपज को पेश किया। थाट में नायक के खड़े होने का अंदाज मोहक था। इसमें सरपण गति, चक्कर और उत्प्लावन का प्रयोग सहज था। वह हर रचना में सम पर आकर, वहीं से अगली रचना की शुरूआत कर रहे थे। प्रस्तुति के क्रम में, राहुल का इतना ऊर्जावान होना अनूठा नजर आ रहा था। रचना ‘ता थेई थेई तत् के बोल को बखूबी नृत्य में समाहित किया। वहीं, परण आमद के पेशकश में ‘क्रान धा कत धा‘ के बोल पर प्रभावकारी काम पेश किया। नृत्य में एक ही रचना में एक व दो पैरों के जरिए चक्कर का प्रयोग करना लासानी था।
मध्य लय में नर्तक राहुल शर्मा ने घुड़सवारी का अंदाज पेश किया। रचना ‘किट तक धिंन ना‘ में हस्तकों व पैरों के काम से घोड़े के संचालन का अंदाज पेश किया। एक से सात अंकों की तिहाई, परण ‘धा न धा‘, तीन धा से युक्त रचना को भी अपने नृत्य में शामिल किया। उन्होंने परमेलू को भी नाचा। कृष्ण और पनहारिन राधिका के भावों को ठुमरी में पेश किया। राहुल शर्मा ने ठुमरी ‘रोको न डगर मेरो श्याम‘ के अभिनय में पेश करने से पहले पृष्ठभूमि की आधार भूमि तैयार की। इसके लिए उन्होंने घूंघट, मटकी, बांसुरी, गुलेल की गतों को पेश किया। साथ ही, तिहाई में राधा, कृष्ण और छेड़छाड़ के भावों का दर्शाया। अंत में द्रुत लय में लगभग 48चक्करों की प्रस्तुति मोहक थी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि राहुल अपनी पूरी क्षमता के साथ कथक की साधना में जुटे रहें, तो आने वाले समय में कला जगत को एक बेहतरीन कलाकार मिल पाएगा।
Monday, November 9, 2020
shashiprabha: युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी
युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी
युवाओं के कंधे पर संस्कृति की जिम्मेदारी
शशिप्रभा तिवारी
कथक नृत्यांगना विधा लाल लेडी श्रीराम काॅलेज की छात्रा रही हैं। वर्ष 2011 में गीनिज वल्र्ड रिकार्ड में उनका नाम दर्ज हुआ, जब उन्होंने एक मिनट में 103चक्कर कथक नृत्य करते समय लगाया। उन्हें नृत्य में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए खैरागढ़ विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक मिला है। इसके अलावा, विधा लाल को बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार, जयदेव राष्ट्रीय युवा प्रतिभा पुरस्कार, कल्पना चावला एक्सीलेंस अवार्ड व फिक्की की ओर से यंग वीमेन अचीवर्स अवार्ड मिल चुका है। विधा लाल कथक नृत्य गुरू गीतांजलि लाल से सीखा है। इनदिनों वह अपने फेसबुक पेज-विधा लाल कथक एक्पोनेंट पर आॅन लाइन डांस फेस्टीवल सीरिज 2020 का आयोजन किया है। यह नृत्य उत्सव ‘संकल्प‘ 2अगस्त को शुरू हुआ।
अब तक इस आयोजन में 14 कलाकार शिरकत कर चुके हैं। पिछले रविवार की शाम-आठ नवंबर 2020 को संकल्प में कथक नृत्यांगना स्वाति माधवन ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम स्वाति माधवन ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।
नृत्यांगना स्वाति माधवन ओज और ऊर्जा से भरी हुई नजर आई। स्वाति माधवन ने एस दिव्यसेना से भरतनाट्यम नृत्य सीखा है। वह कथक नृत्य, नर्तक मुल्ला अफसर खां से सीख रही हैं। वह सिंगापुर की फाइन आट्र्स सोसायटी और स्वर्ण कला मंदिर से जुड़ी हुई हैं। उनके गुरू नर्तक मुल्ला का कहना है कि कथक नृत्य सतत् साधना का सिलसिला है। इसे सीखने के लिए कलाकार में समर्पण और लगन की जरूरत है। तभी इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने में अपना दायित्व निभा सकते हैं। क्योंकि आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।
जयपुर घराने के पंडित राजेंद्र गंगानी के शिष्य हैं, नर्तक मुल्ला अफसर। सो उनके नृत्य में उनके गुरू का अंदाज सहज झलकता है। और वही उनके सिखाने में भी दिखा। नृत्यांगना स्वाति माधवन के नृत्य के हर अंदाज में उनके गुरू की छाप साफ दिखाई दे रही थी। उन्होंने अपने नृत्य का आरंभ गणेश वंदना से किया। गणपति श्लोक पर आधारित पेेशकश में हस्तकों, मुद्राओं और भंगिमाओं के जरिए उन्होंने गणेश के रूप को निरूपित किया। इसके बाद, तीन ताल में शुद्ध नृत्त को पिरोया। उनकी प्रस्तुति में अच्छी तैयारी दिखी।
उपज में पैर का काम पेश किया। सरपण गति और चक्कर का प्रयोग किया। स्वाति ने रचना ‘ता थेई तत् थेई‘ और ‘किट ता धा किट धा‘ में पैर की गतियों और आंगिक चेष्टाओं को पेश किया। वहीं, परण आमद ‘धा किट किट धा‘ में उत्प्लावन और चक्कर का प्रयोग मोहक दिखा। गणेश परण ‘गं गं गणपति‘ में गणेश के रूप का चित्रण मार्मिक था। उन्होंने गिनती की तिहाई में पैर का काम पेश किया। परण ‘कृष्ण करत तत् थेई‘ में कृष्ण की लीला को दर्शाया। परमेलू की पेशकश में पक्षी की उड़ान के साथ मयूर की गत का प्रयोग चक्करदार रचना ‘धा धा धा धित ताम‘ में सुंदर था। एक अन्य परमेलू ‘थर्रि थर्रि कूकू झनन झनन‘ को भी पूरी ऊर्जा के साथ स्वाति ने नाचा। उन्होंने पंडित राजेंद्र गंगानी की रचना ‘सावन गरजत गरजत‘ में भावों को पेश किया। इसकी कोरियोग्राफी उनके नृत्य गुरू ने की थी। इसमें भाव के साथ मयूर की गत, पलटे, चक्कर, फेरी, अर्धफेरी का प्रयोग सुघड़ता से किया।
Sunday, November 1, 2020
कला खुशबू की तरह है
शशिप्रभा तिवारी
भारतीय संस्कृति में या यूं कहें कि आम जीवन में विद्या आपकी सबसे बड़ी दौलत है। वाकई, विद्या या कोई गुण या कोई हुनर आपको समृद्ध बनाता है, आपको जोड़ता है, आपको आनंद देता है। और जब कला की साधना आनंद प्राप्ति के लिए की जाए तो बात ही क्या? इस कोरोना संकट काल में जब लोग मिल-जुल नहीं पा रहे हैं। ऐसे में कला की खुशबू आपके पास कभी संगीत तो कभी नृत्य तो कभी चित्र के रूप में आती है। इस खुशबू को कलाकार फूल की तरह धारण करते हैं। और लोगों तक पहुंचाते हैं। व्यक्तित्व की यह खुशबू सभी को संस्कृति और संस्कारों को भी समाहित किए रहती है। संकल्प ऐसी ही खुशबू आप तक कलाकारों के जरिए पहंुचा रहा है।
नृत्य समारोह संकल्प का आयोजन इनदिनों कला जगत मंे काफी चर्चित हो रही है। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। एक नवंबर की शाम एक नई प्रतिभा वंदना सेठ से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिला।
कथक नृत्यांगना वंदना सेठ कथक नृत्यांगना व गुरू प्राची दीक्षित की शिष्या हैं। वैसे वंदना ने कृष्ण कुमार धारवाड़ और पंडित राम मोहन महाराज से भी नृत्य सीखा है। वंदना के नृत्य में लखनऊ घराने की सौम्यता, सरसता और नजाकत बखूबी झलकती है। उन्होंने कथक की बारीकियों को अपने नृत्य में सुघड़ता से समाहित किया है। संकल्प के आयोजन में वंदना ने गणेश वंदना से आरंभ किया। उन्होंने गणेश वंदना ‘सुमिरौं सिद्धि विघ्नहरण मंगल करण‘ में गणपति के रूप को दर्शाया।
तीन ताल में निबद्ध शुद्ध नृत्त को वंदना ने पेेेश किया। उन्होंने रचना ‘धा धिंन धिंन धा तिन तिन‘ में हस्तकों और पैर का काम प्रस्तुत किया। एक अन्य रचना में सलामी की गत का अंदाज मोहक था। उठान ‘थेई थेई तत् तत् ता‘ में फेरी व चक्कर के साथ बैठकर सम लिया। वंदना ने परण आमद पेश किया। ‘धा किट धा‘ के बोल से युक्त इस पेशकश में चक्कर का प्रयोग मोहक था। उन्होंने गुरू प्राची दीक्षित की रचना कवित्त पेश की। दुर्गा देवी के रौद्र रूप का चित्रण इस कवित्त में था। इसके बोल थे-घन घन घंटा बाजै, कर कर त्रिशूल साजै। इस कवित्त को वंदना सुंदर तरीके से निभाया।
कथक नृत्यांगना वंदना ने कुछ टुकड़े, तिहाइयों और चक्रदार तिहाइयों को भी अपनी प्रस्तुति में नाचा। उन्होंने नृत्य मंे चक्करों का प्रयोग बहुत ही सधे अंदाज में किया। साथ ही, नृत्य करते हुए, वह बहुत सहज और ठहराव के साथ नजर आईं। अपनी प्रस्तुति का समापन पंडित बिंदादीन महाराज की रचना ‘ऐसे राम हैं दुखहरण‘। अपनी गुरू की नृत्य परिकल्पना को वंदना ने भाव-अभिनय में साकार किया। नृत्य में द्रौपदी वस्त्र हरण व वामन प्रसंग का निरूपण समीचीन था।
Tuesday, October 27, 2020
कृष्ण का विरह
कृष्ण का विरह
शशिप्रभा तिवारी
उन्होंने कथक की बानगी को शुद्ध नृत्त में दर्शाया। कथक नर्तक कदंब ने दस मात्रा के झप ताल में तकनीकी पक्ष को पेश किया। उन्होंने उपज में पैर के काम को प्रस्तुत किया। रचना ‘धा तक गिन थुंग तक किट धा‘ में खड़े पैर का काम उम्दा था। वहीं इसमें पंजे, एड़ी के काम के जरिए लयकारी दर्शाना आकर्षक था। एक अन्य रचना में उत्प्लावन, चक्कर और पैर का प्रभावकारी काम पेश किया। नर्तक कदंब ने परण में हस्तकों व अंग संचालन के साथ पैर का काम व चक्कर का प्रयोग किया। इसमें पखावज के बोलों व चक्कर का प्रयोग मनोरम था।
नृत्य का समापन कदंब ने चक्करों के विविध प्रस्तुति से किया। एक पेशकश में उन्होंने सीधे और उल्टे चक्कर का प्रयोग करते हुए, 32चक्करों को पेश किया। मिक्सर के चलने के अंदाज को सोलह चक्कर के माध्यम से पेश किया। वहीं, घूमते हुए 26चक्कर को प्रस्तुत किया। कदंब के नृत्य में बहुत सफाई और बोलों को बरतने में बहुत स्पष्टता थी। उन्होंने अपने नृत्य में हस्तक व अंगों का संचालन बड़ी नजाकत और सौम्यता से किया। उनके नृत्य में चक्करों, उत्प्लावन और बैठ कर सम लेने का अंदाज भी सहज था। कदंब के नृत्य देखकर, नृत्य के प्रति उनका समर्पण और लगन स्पष्ट झलकता है। उनकी तैयारी अच्छी है।
उन्होंने अपने व्यक्तित्व के अनुकूल कृष्ण का विरहोत्कंठित नायक के तौर पर चित्रित किया। भाव और अभिनय के लिए कृष्ण को बतौर चुनना एक अच्छी सूझ-बूझ का परिचय था। आमतौर पर, पुरूष कलाकार अभिनय करने से बचते नजर आते हैं या तो वो भजन पर अभिनय पेश कर अपनी प्रस्तुति को पूर्ण कर देते हैं। बहरहाल, कदंब ने रचना ‘केलि कदंब की विरह की ताप‘ पर राधा से मिलने को आतुर कृष्ण के भावों को बखूबी दर्शाया। इस पेशकश में राधिके की पुकार के साथ सोलह चक्कर का प्रयोग किया। यह रचना उनकी गुरू इशिरा पारीख की थी। जबकि, नृत्य रचना उनके गुरू मौलिक शाह ने की थी।
नर्तक कदंब ने अपनी प्रस्तुति का आगाज शिव वंदना ‘गंगाधारी‘ से किया। रचना ‘शीशधर गंग, बालचंद्र गले भुजंग‘ पर उन्होंने शिव के विभिन्न रूपों को निरूपित किया। नृत्य में 21 व सोलह चक्करों का प्रयोग आकर्षक था। रचना ‘तक थुंग धिकत ता थैया‘ के बोल पर रौद्र रूप का चित्रण किया। साथ ही, नर्तक कदंब ने ‘डमरू कर धर महेश‘ हस्तकों व पैर का काम विशेषतौर पर पेश किया। जबकि, धित तक थुंग लुंग ताम के बोल पर अर्धनारीश्वर रूप को दर्शाना मोहक था। कुल मिला कर कदंब का नृत्य ओजपूर्ण और पुरूष केंद्रित नृत्य था। उनके नृत्य में बिजली सी चमक और स्फूर्ति थी।
Wednesday, October 21, 2020
shashiprabha: विरासत काव्यधारा
विरासत काव्यधारा
Tuesday, October 20, 2020
नई पौध के अंकुर
नई पौध के अंकुर
शशिप्रभा तिवारी
बीते शाम अठारह अक्तूबर 2020 को संकल्प में कथक नर्तक शुभम तिवारी ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में इस रविवार की शाम शुभम तिवारी ने अपने नृत्य से समां बांध दिया। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।
नर्तक शुभम तिवारी ओज और ऊर्जा से भरे हुए नजर आए। उनके गुरू व कथक नर्तक अनुज मिश्रा ने अपने वक्तव्य में सही कहा कि भारत युवाओं का देश है। भारतीय कलाओं और परंपराओं को संभालने का दायित्व युवा गुरू, शिष्य और कलाकारों पर है। इस धरोहर को संवारने और समृद्ध बनाए रखने के लिए युवा कलाकारों को मंच प्रदान करना और प्रोत्साहन देना जरूरी है। आने वाले समय में संस्कृति की बागडोर इन्हीं के कंधों पर होगी।
दरअसल, इस संदर्भ में कथक नृत्यांगना विधा लाल, अलकनंदा कथक और उनकी पूरी टीम बधाई के योग्य है। इन सभी लोगों के प्रयास का परिणाम है-संकल्प का आयोजन। इस आयोजन में कथक नर्तक शुभम तिवारी ने अपने नृत्य का आरंभ शिव स्तुति से किया। श्लोक ‘कर्पूर गौरं करूणावतारं‘ में शिव के रूप को नर्तक शुभम ने दर्शाया। हस्तकों और भंगिमाओं का प्रयोग सहज था। शिव तांडव स्त्रोत के अंश के साथ छंद-‘चंद्रकला मस्तक पर सोहे‘ के जरिए शिव के रौद्र रूप का प्रदर्शन मोहक था। शुभम का वायलिन के लहरे पर चक्कर के साथ सम पर आना मनोरंजक था।
Thursday, October 15, 2020
shashiprabha: गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत...
गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना
गुरूओं से बहुत कुछ सीखा-पंखुड़ी श्रीवास्तव, कथक नृत्यांगना
किसी के जीवन की दिशा या दशा क्या होगी? इसे कोई नहीं जानता है। कहा जाता है कि मां-बाप किसी के जन्म के भागी होते हैं। कर्म के भागी तो आपको खुद बनना पड़ता है। कुछ ऐसा ही रहा है-कथक नृत्यांगना पंखुड़ी श्रीवास्तव के जीवन का सफर। पंखुड़ी बिहार की राजधानी शहर पटना में पली-बढ़ीं। वहीं, उन्होंने नृत्य सीखना शुरू किया। धीरे-धीरे जब समझ बढ़ी तब उन्होंने अपनी कला के कलि का विकसित करने के लिए उन्होंने राजधानी दिल्ली का रूख किया। आईए, उनकी इस यात्रा के बारे में कुछ जाने-सुने-शशिप्रभा तिवारी
आपने नृत्य क्यों और किससे सीखा है?
Wednesday, September 30, 2020
एक नया आगाज-शशिप्रभा तिवारी
एक नया आगाज
शशिप्रभा तिवारी
बीते शाम 27सितंबर 2020 को संकल्प में युवा नृत्यांगना शिखा शर्मा ने कथक नृत्य पेश किया। इस कार्यक्रम का आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट ने अपने फेसबुक पेज पर किया। इस आयोजन में आईपा, आर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग दिया है। नृत्य समारोह ‘संकल्प‘ में हर रविवार की शाम युवा कलाकार नृत्य पेश करते हैं। हर शाम एक नई प्रतिभा से परिचित होने का अवसर दर्शकांे को मिलता है।
कथक नृत्यांगना रानी खानम लखनऊ घराने की परंपरा को निभाने वाली बेहतरीन नृत्यांगना हैं। उन्हें गुरू रेबा विद्यार्थी और पंडित बिरजू महाराज के सानिध्य में कथक नृत्य सीखने का अवसर मिला। नृत्यांगना व गुरू रानी खानम परंपरागत तकनीकी पक्ष के साथ-साथ नई-नई रचनाओं को नृत्य में प्रस्तुत करती रही हैं। उनकी कुछ नृत्य रचनाओं को काफी सराहना मिलती रही है। उन्होंने कई बंदिशों, सूफी कव्वाली और गजलों को बखूबी नृत्य में पिरोया है, जिसने एक अलग छाप छोड़ी है। वह राजधानी दिल्ली में लंबे समय से नृत्य प्रस्तुति के साथ-साथ तालीम दे रहीं हैं। उसी की एक झलक ‘संकल्प‘ के आयोजन में दिखी। इस आॅन लाइन कार्यक्रम में उनकी शिष्या शिखा शर्मा ने नृत्य पेश किया।
देश के अन्य शहरों की तरह राजधानी में कथक के प्रति लोगों का रूझान काफी ज्यादा है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। इनमें शायद, एक वजह गुरूओं की उपलब्धता भी हो सकती है। बहरहाल, कथक नृत्य प्रस्तुति का आरंभ शिष्या शिखा शर्मा ने तीन ताल में शुद्ध नृत्त से किया। विलंबित लय में आमद के साथ मंच पर प्रवेश सुंदर था। उन्होंने थाट, परण, टुकड़े, तिहाइयों को नृत्य में पिरोया। एक रचना में बैठकर, सम लेने का अंदाज मनोरम दिखा। जो अक्सर, उनकी गुरू का भी एक अंदाज रहा है। शिखा ने तिहाई पेश की। इसमें दोनो पैरों के साथ पंजे और एड़ी का काम दर्शाया। उन्होंने द्रुत लय में नृत्य को आगे बढ़ाया। अन्य रचनाओं में ‘ता किट धा‘, तीन धा से युक्त रचना और ‘ना धिंन्ना‘ को पैर के काम में काफी स्पष्टता और संतुलन के साथ पेश किया। उन्होंने सादी गत और रूख्सार की गत को अपने नृत्य में शामिल किया। उनके द्वारा पेश चक्रदार रचना की पेशकश भी अच्छी थी। नृत्य के क्रम में पल्टा, फेरी, अर्धफेरी, कलाइयों के घुमाव का प्रयोग सुंदर था। उसमें उनकी तैयारी और मेहनत दिख रही थी।

Monday, September 21, 2020
युवा कलाकारों की धमक
युवा कलाकारों की धमक
शशिप्रभा तिवारी
कथक नृत्य में गुरू-शिष्य परंपरा की अनवरत प्रवाह है। यह प्रवाह कला जगत में बखूबी दिखती है। कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर ने बतौर नर्तक अपनी अच्छी पहचान कायम की है। वह नृत्य प्रस्तुति के साथ-साथ कथक सिखा भी रहीं हैं। गौरी दिवाकर ने संस्कृति फाउंडेशन-सर्वत्र नृत्यम के माध्यम से अपनी शिष्याओं को अवसर भी देती रहीं हैं।
बीते शाम 20सितंबर को उनकी शिष्या निदिशा वाष्र्णेय और सौम्या नारंग ने युगल कथक नृत्य पेश किया। इसकी नृत्य परिकल्पना गौरी दिवाकर ने की थी। संगीत रचना गौरी के गुरू जयकिशन महाराज की थी। जबकि, श्लोक को सुर में पिरोया था, गायक समीउल्लाह खां ने। वाकई, मंच पर जब कोई कलाकार नृत्य करता है, तब बहुत से लोगों का साथ होता है। जो पर्दे के पीछे रहकर अपना सहयोग देते हैं।
‘संकल्प‘ का यह साप्ताहिक आयोजन विधा लाल कथक एक्पोनेंट के फेसबुक पेज पर होता है। इस आयोजन में आईपा, आॅर्गेनिक कृषि, हर्बीलाइट और नुपूर अकादमी ने भी अपने सहयोग कर रहे हैं। गौरी दिवाकर शिष्याएं निदिशा और सौम्या ने अपनी सहज, सौम्य और नजाकत भरी प्रस्तुति से मन मोह लिया। उन्होंने अपने नृत्य में शुद्ध नृत्त की तकनीकी पक्ष को खासतौर पर पेश किया। उनके नृत्य में अच्छा ठहराव और तेज था। दोनों का आपसी तालमेल बेहतरीन था।
निदिशा और सौम्या ने ओम श्लोक से नृत्य आरंभ किया। श्लोक ‘ओमकार विंदु संयुक्तं‘, ‘कारूण्य सिंधु भवदुखहारी‘ व ‘सर्व मंगल मांगल्ये‘ के मेलजोल से वंदना पेश किया गया। हस्तकों, मुद्राओं, भंगिमाओं के जरिए शिव, शक्ति और ओमकार को दर्शाया। लास्यपूर्ण निरूपण के साथ यह शुरूआत मनोरम थी। सोलह मात्रा के तीन ताल में उन्होंने शुद्ध नृत्त को पिरोते हुए, उपज पेश किया। पैर के दमदार काम को ‘तक-धिकिट-धा-कित-धा‘ के बोल को पिरोया। अगली रचना ‘ता थेई तत ता‘ और ‘तक थुंगा‘ का अंदाज दर्शाया। अंकों की तिहाइयों की प्रस्तुति में संतुलित और दुरूस्त पद संचालन पेश किया। इसमें एक से आठ, एक से चार और एक से सात अंकों की तिहाइयां थीं। रचना ‘थैइया थैइया थैइया थेई ता धा‘ और ‘तक दिगित धा‘ में पंजे और एड़ी का काम आकर्षक था। उन्होंने एक अन्य रचना को नृत्य में शामिल किया। इसमें दस चक्करों का प्रयोग प्रभावकारी था। वहीं ‘धित ताम थंुगा थुंगा ता धा और गिन धा का अंदाज देखते बन पड़ा।
वास्तव में, उभरते युवा कलाकारों से यही उम्मीद रहती है कि वह तकनीकी पक्ष की बारीकियों को समझें और गुरू के मार्गदर्शन में इसे ग्रहण करें। नृत्यांगना गौरी दिवाकर खुद एक अच्छी कलाकार हैं। और कला जगत में प्रतिष्ठित होने के बावजूद अपने गुरूओं से दिशा निर्देश ग्रहण करने के लिए उत्सुक रहती हैं। ऐसे में निदिशा और सौम्या से यह उम्मीद रहेगी कि वो सीखने और रियाज के क्रम को लगातार जारी रखें। उन्होंने अच्छी तैयारी अपने नृत्य में प्रदर्शित किया। इससे उनके उत्साह, क्षमता और ऊर्जा का पता चलता है।
Saturday, September 19, 2020
अलविदा संस्कृति अग्रदूत-डाॅ कपिला वात्स्यायन
अलविदा संस्कृति अग्रदूत-डाॅ कपिला वात्स्यायन