इस वसंत में
झील के किनारे
पलाश की डाल पर
लाल फूल की ओट में
पंछियों का जोड़ा बैठा था
पता नहीं
चिड़ी उदास-सी कुछ कहती
कभी फुदक के
इधर से उधर जाती है
चिड़ा अपनी चुप्पी में है
उसे चिड़ी कुरेदती है
क्यों? नाराज़ हो !
चाँद लम्हों का साथ आओ
शाम ढलने को आई है
दोनों मिल
गुनगुना लें जिंदगी के गीत गा लें
ना जानें!
कहाँ ?
फिर जिंदगी शाम हो जाए
कब, किसका साथ छूट जाए?
झील के किनारे
पलाश की डाल पर
लाल फूल की ओट में
पंछियों का जोड़ा बैठा था
पता नहीं
चिड़ी उदास-सी कुछ कहती
कभी फुदक के
इधर से उधर जाती है
चिड़ा अपनी चुप्पी में है
उसे चिड़ी कुरेदती है
क्यों? नाराज़ हो !
चाँद लम्हों का साथ आओ
शाम ढलने को आई है
दोनों मिल
गुनगुना लें जिंदगी के गीत गा लें
ना जानें!
कहाँ ?
फिर जिंदगी शाम हो जाए
कब, किसका साथ छूट जाए?